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49 हस्तियों ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखा पत्र, कहा- “जय श्री राम” हिंसा भड़काने का नारा बना दिया गया

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49 हस्तियों ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा। इनमें इतिहासकार रामचंद्र गुहा, अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा, फिल्मकार श्याम बेनेगल, अनुराग कश्यप और मणि रत्नम समेत अलग-अलग क्षेत्रों की हस्तियां शामिल हैं। सभी ने पत्र में लिखा- इन दिनों “जय श्री राम” हिंसा भड़काने का एक नारा बन गया है। इसके नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं। यह दुखद है। इन मामलों पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।
2016 में दलितों के खिलाफ उत्पीड़न की 840 घटनाएं हुईं: रिपोर्ट
पत्र के अनुसार- मुस्लिमों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रही लिंचिंग पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट्स के मुताबिक 2016 में दलितों के खिलाफ उत्पीड़न की 840 घटनाएं हुईं। लेकिन, इन मामलों के दोषियों को मिलने वाली सजा का प्रतिशत कम हुआ है।
पत्र के मुताबिक- जनवरी 2009 से 29 अक्टूबर 2018 तक धार्मिक पहचान के आधार पर 254 घटनाएं हुईं। इसमें 91 लोगों की मौत हुई जबकि 579 लोग घायल हुए। मुस्लिमों (कुल जनसंख्या के 14%) के खिलाफ 62% मामले, ईसाइयों (कुल जनसंख्या के 2%) के खिलाफ 14% मामले दर्ज किए गए।
‘मई 2014 के बाद ऐसे हमले 90 % बढ़े’
पत्र में प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए आगे कहा गया- मई 2014 के बाद से जबसे आपकी सरकार सत्ता में आई, तब से इनके खिलाफ हमले के 90% मामले दर्ज हुए। आप संसद में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की निंदा कर देते हैं, जो पर्याप्त नहीं है। सवाल यह है कि ऐसे अपराधियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई?
पत्र में लिखा गया- इन घटनाओं को गैर-जमानती अपराध घोषित करते हुए तत्काल सजा सुनाई जानी चाहिए। यदि हत्या के मामले में बिना पैरोल के मौत की सजा सुनाई जाती है तो फिर लिंचिंग के लिए क्यों नहीं? यह ज्यादा जघन्य अपराध है। नागरिकों को डर के साए में नहीं जीना चाहिए।
“जय श्री राम” एक हथियार बन गया- पत्र
उन्होंने लिखा- इन दिनों “जय श्री राम” एक हथियार बन गया है। इसके नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं। यह चौंकाने वाली बात है। अधिकांश हिंसक घटनाएं धर्म के नाम पर हो रही है। यह मध्य युग नहीं है। भारत में राम का नाम कई लोगों के लिए पवित्र है। इसको अपवित्र करने के प्रयास रोके जाने चाहिए।
पत्र के अनुसार- सरकार के विरोध के नाम पर लोगों को ‘राष्ट्र-विरोधी’ या ‘शहरी नक्सल’ नहीं कहा जाना चाहिए और न ही उनका विरोध करना चाहिए। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। असहमति जताना इसका ही एक भाग है।

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