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‘हार्ट ऑफ एशिया’ सम्मेलन में आतंकी पनाहगाहों को नेस्तनाबूद करने का संकल्‍प

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हार्ट ऑफ एशिया’ सम्मेलन में आतंकवाद का मुकाबला करने का मुद्दा केंद्र में रहा और इसने पाकिस्तान को एक साफ संदेश भेजा है कि आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है. हालांकि, इस बुराई से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए एक क्षेत्रीय ढांचा बनाने के अफगानिस्तान के प्रस्ताव को अंतिम रुप नहीं दिया जा सका.
सम्मेलन में दो दिनों की चर्चा में बडे क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियां एवं समूह शामिल हुए. इस चर्चा के बाद ‘अमृतसर घोषणापत्र’ जारी किया गया जिसने क्षेत्र में आतंकी पनाहगाहों को नेस्तनाबूद करने, आतंकी नेटवर्क को सभी वित्तीय, तरकीबी और साजो सामान सहयोग को बाधित करने की अपील की.भारत और अन्य जगहों पर सीमा पार से हुए कई हमलों की पृष्ठभूमि में इस सम्मेलन का आयोजन हुआ. इस सम्मेलन (एचओए) ने अफगानिस्तान और क्षेत्र के कई हिस्सों में सुरक्षा की गंभीरता पर गंभीर चिंता जाहिर की. एचओए ने कहा कि लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद, तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, अल कायदा, आईएस और इससे संबद्ध संगठनों, टीटीपी, जमात उल अहरार, जुंदुल्ला तथा विदेशी आतंकी समूहों जैसे संगठनों को रोकने के लिए संयुक्त कोशिश किए जाने की जरुरत है.
भारत ने आज यह सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक प्रयासों पर जोर दिया कि फिर से सिर उठा रहीं आतंकवादी और चरमपंथी ताकतों को किसी भी तरह पनाह और सुरक्षित ठिकाने नहीं मिल सकें. यहां ‘हार्ट ऑफ एशिया’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि अफगानिस्तान के पडोसियों की खास तौर पर यह जिम्मेदारी बनती है.
अस्वस्थ चल रहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रतिनिधि के तौर पर सम्मेलन को संबोधित करते हुए जेटली ने कहा, ‘‘न तो अच्छे और बुरे आतंकवादियों के बीच कोई फर्क करने की जरुरत है और न ही एक समूह को दूसरे समूह के खिलाफ लड़ाने की जरुरत है.’
जेटली ने कहा कि तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, अल-कायदा, दाएश, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद वगैरह आतंकवादी संगठन हैं और उनसे उसी तरह निपटना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘आतंकवाद और चरमपंथ का खात्मा, हिंसा छोड़ने सहित अंतरराष्ट्रीय तौर पर स्वीकार्य नियम-कायदों पर अमल, अल-कायदा एवं आतंकवादी संगठनों से रिश्ते तोड़ना और लोकतंत्र एवं मानवाधिकारों को लेकर प्रतिबद्धता अफगानिस्तान में सफल मेल-मिलाप एवं चिरकालिक शांति के लिए जरुरी है.’
इस साल ‘हार्ट ऑफ एशिया – इस्तांबुल प्रोसेस’ का विषय ‘‘चुनौतियों से निपटना, समृद्धि हासिल करना’ है. जेटली ने कहा कि जब अफगानिस्तान बदलाव से जुडी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अफगानिस्तान के सभी दोस्तों से पुरजोर एवं लगातार समर्थन की जरुरत होगी, जिससे वह इन चुनौतियों से निपट सके और टिकाउ शांति एवं समृद्धि हासिल कर सके.
जेटली ने कहा कि अफगानिस्तान ने दशकों तक भयावह हिंसा का सामना किया है और पिछले कुछ महीनों में वहां आतंकवाद की तीव्रता एवं गुंजाइश दोनों बढ़ी है. उन्होंने कहा, ‘‘आतंकवादी संगठनों ने क्षेत्र पर कब्जे की और उस पर नियंत्रण बनाए रखने की समन्वित कोशिशें की हैं. तालिबान ने दक्षिण-पश्चिम, जहां वे पारंपरिक तौर पर ज्यादा मजबूत नहीं थे, के साथ-साथ उत्तर एवं उत्तर-पूर्व के क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की है.’
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘ये घटनाएं सिर्फ इस तथ्य को रेखांकित करती हैं कि न तो इन संगठनों की विचारधारा में और न ही उद्देश्यों में कोई बदलाव आया है. आतंकवाद की बुराई, जो न सिर्फ एक या दो देशों को बल्कि पूरे क्षेत्र को खतरे में डालती है, ने मौजूदा साल को पिछले काफी लंबे समय में सबसे बदतर साल बना दिया.’ उन्होंने कहा कि अपनी तरफ से भारत अफगानिस्तान के साथ काम करके काफी खुश है. अफगानिस्तान के साथ काम करके भारत आतंकवाद एवं हिंसा से मुकाबले के मामले में अपनी क्षमता बढ़ा रहा है. जेटली ने कहा कि अफगानिस्तान से संपर्क बढाना इस देश और क्षेत्र के साथ भारत के सहयोग का आधार है.
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में विशाल यूरेशियाई भू-क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों के बीच जमीनी पुल के तौर पर काम आने की पूरी संभावना है. उन्होंने कहा कि टीएपीआई गैस पाइपलाइन, टीएटी रेलवे लाइन, सीएएसए 1000 जैसी कई परियोजनाएं हैं जिनसे अफगानिस्तान में समृद्धि आएगी और इससे मध्य एशियाई एवं दक्षिण एशियाई क्षेत्रों को करीब आने का भी मौका मिलेगा.

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