Comments Off on हमारा प्रयास जैविक खेती 8

हमारा प्रयास जैविक खेती

कृषि / पर्यावरण

फसल जो प्राथमिक मुख्य पोषक तत्व भूमि से लेते हैं- वे हैं नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश। इनमें से सबसे ज्यादा अवशोषण नाइट्रोजन का होता है, क्योंकि पौधों की बढ़वार के लिए नाइट्रोजन की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। जो नाइट्रोजन हम मिट्टी में डालते हैं उसका 40-50 प्रतिशत ही पौधे उपयोग में ले पाते हैं। 55 से 60 प्रतिशत भाग या तो जमीन के अंदर पानी के साथ चला जाता है या वायुमण्डल में उड़ जाता है एवं दोनों ही परिस्थितियों में पौधे को नाइट्रोजन नहीं मिल पाता। अन्य पोषक तत्वों की तुलना में भूमि में उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा थोड़ी कम होती है। इसलिए पौधों को नाइट्रोजन तो हम दे लेकिन ऐसे विकल्प के रूप में दें, जो मिट्टी तथा पौधे दोनों को पोषित करें।
यह आर्थिक खेती तथा टिकाऊ खेती दोनों ही दृष्टिकोण से अच्छा है।
नाइट्रोजन से संबंधित जैव उर्वरक निम्न प्रकार के होते हैं।
राइजोबियम कल्चर : राइजोबियम कल्चर के प्रत्येक एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं। यह नमी को संरक्षित रखने वाला जीवाणुओं का मिश्रण है। यह जैव उर्वरक विशेषकर दलहनी फसलों के लिए बनाया गया है। अगर हम राइजोबियम जैव उर्वरक से बीजोपचार करते हैं तो ये बीज पर चिपक जाते हैं तथा बीज अंकुरण के समय जीवाणु जड़ मूल रोग द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रंथियों का निर्माण करते हैं तथा ये ग्रंथियां जितनी अधिक बनती है पौधों के द्वारा जमीन में नाइट्रोजन स्थिरीकरण उतना ही अधिक होता है, क्योंकि ये क्रिया ग्रंथियों की संख्या पर निर्भर करती है तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण की स्थिति में पैदावार अधिक व अच्छी मिलती है।
राइजोबियम कल्चर प्रयोग के लिए उपयुक्त फसलें हैं: दलहनी (चना, मूंग, अरहर,उर्द, मटर आदि) तिलहनी (सोयाबीन, व मूंगफली) एवं इसके अतिरिक्त बरसीम एवं सभी प्रकार के बीन्स (राजमा को छोड़कर)
राइजोबियम कल्चर प्रयोग करने की विधि : आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ घोलकर गर्म करें फिर उसे थोड़ा ठण्डा कर लें इसके बाद इस घोल को ठण्डा करके 200 ग्राम का राइजोबियम कल्चर मिला लें। दस किलो बीजों को किसी साफ सतह पर इकट्ठा करके जैव उर्वरक के घोल के बीजों पर धीरे-धीरे डालें और हाथ से तब तक उलटते-पलटते रहें जब तक सभी बीजों पर समान पर्त कल्चर की न चढ़ जाए। अब उपचारित बीजों को किसी छायादार स्थान पर फैलाकर सुखा लें।
राइजोबियम कल्चर के लाभ:
1. राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से 10 से 30 कि.ग्रा./हेक्टेयर नाइट्रोजन की बचत होती है।
2. इसके प्रयोग से फसल का उत्पादन बढ़ जाता है।
3. इन फसलों की कटाई के बाद अगली उगाई जाने वाली फसलों का उत्पादन बढ़ जाता है।
फास्फेटिक जैव उर्वरक: फास्फेटिका जैव उर्वरक के एक ग्राम में लगभग 10 करोड़ जीवाणु होते हैं। अघलुनशील उर्वरक जीवाणुओं द्वारा घुलनशील अवस्था में बढ़त दिये जाते हैं।
फास्फेटिक जैव उर्वरक के लाभ:
द्य फॉस्फेटिक जीवाणु खाद मिट्टी में उपलब्ध फॉस्फोरस की 30 से 50 प्रतिशत की बचत होती है तथा इसके प्रयोग करने से 10-20 प्रतिशत फसलोत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।
1. जड़ों का विकास अधिक अच्छे से होता है, जिससे उपज अच्छी प्राप्त होती है।
विभिन्न फसलों में प्रयोग करने की मात्रा:
धान की फसल में 1.5 कि.ग्रा., गेहूं, ज्वार, मिर्च, टमाटर, बैंगन, प्याज व गोभी में 2.0 कि.ग्रा., मक्का व कपास में 500 ग्राम तथा सूरजमुखी व सरसों में 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
जैव उर्वरक से उपचार की विधि
मृदा उपचार: आवश्यकतानुसार जैव उर्वरक को 35 से 50 कि.ग्रा. कम्पोस्ट खाद या मिट्टी के साथ मिश्रण बनाकर अंतिम जुताई के समय या फसल की पहली सिंचाई से पूर्व समान रूप से एक एकड़ में छिड़क दें।
बीजोपचार: आवश्यकतानुसार जैव उर्वरक की मात्रा की लगभग 1.5 लीटर पानी प्रति एकड़ बीज के हिसाब से तब तक हाथों से मिलायें जब तक जैव उर्वरक की पर्त समान रूप से न चढ़ जाए।
पौध जड़ उपचार: 4 लीटर पानी में 1 कि.ग्रा. जैव उर्वरक डालकर घोल बना लें तथा पौधे की जड़ों को 2-3 मिनिट इस घोल में डुबोकर रखें। फिर तत्काल पौधों की रोपाई कर देनी चाहिए।
एजेटोवैक्टर: यह जैव उर्वरक स्वतंत्रजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण एजेटोवैक्टर या एजोस्पाईरिलम जीवाणु का एक नम चूर्ण रूप उत्पाद है। इसमें एक ग्राम में लगभग 10 करोड़ जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक किसी भी फसल दलहनी जाति की फसलों को छोड़कर प्रयोग किया जा सकता है।
एजेटोवैक्टर, एजोस्पाईरिलम जैव उर्वरक से लाभ:
1. इसके प्रयोग से 20 से 30 कि.ग्रा. नत्रजन की बचत की जा सकती है।
2. फसलों में 20 से 30 प्रतिशत तक पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है।
3. इस जैव उर्वरक के व्यवहार से पौधों में तने तथा जड़ों का अधिक विकास होता है।
4. इसके प्रयोग से फसलें भूमि से फॉस्फोरस का अधिक उपयोग करते हैं जिससे कल्ले अधिक निकलते हैं।
5. इसके प्रयोग से फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जिससे रोग जल्दी आक्रमण नहीं करता तथा फसल अच्छी होती है।
प्रयोग विधि- इसका प्रयोग मृदा उपचार द्वारा, बीजोपचार द्वारा, पौध जड़ उपचार द्वारा एवं कन्द उपचार द्वारा 2 कि.ग्रा. से लेकर 3.5 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की दर से विभिन्न फसलों में किया जा सकता है।
नील हरित शैवाल – धान में नील हरित शैवाल जैव उर्वरक का प्रयोग 12.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर रोपाई के एक सप्ताह बाद करना चाहिए। यदि धान की फसल में किसी खरपतवारनाशी का प्रयोग किया गया हो तो नील हरित शैवाल प्रयोग के 3-4 दिन बाद करना चाहिए।

Back to Top

Search