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हमारा देश सेकुलरिज्म का सबसे शानदार मॉडल-वेंकैया नायडू

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राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी का आज इस पद पर व देश के उपराष्ट्रपति के रूप में आखिरी दिन है. कल देश के नये उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति के रूप में वेंकैया नायडू अपनी जिम्मेवारी संभाल लेंगे. मूलत: कूटनीतिज्ञ रहे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से दूर-दूर तक संबंध या तालमेल नहीं रहा. उल्टे समय-समय पर उनके बयान ऐसे रहे, जिसे भाजपा वालों की ऐसी प्रतिक्रिया रही कि हामिद अंसारी ने उन्हें निशाना बनाते हुए ही यह बात कही. हामिद ने अपने नियंत्रण वाले चैनल राज्यसभा टीवी को दिये आखिरी इंटरव्यू में कहा कि लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों की रक्षा जरूरी है. इसी तरह उन्होंने राज्यसभा में भी सभापति के रूप में भी अपना भाषण दिया और कहा बेबाक आलोचना को अनुमति नहीं देने पर लोकतांंत्रिक व्यवस्था पतन की ओर बढते हुए निरंकुश होने लगती है. उधर, नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने हामिद अंसारी के इस बयान पर कहा है कि भारत सेकुलरिज्म का सबसे शानदार मॉडल है. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का भाव नहीं है. उन्होंने कहा है कि अलग भाषा, अलग वेश फिर भी अपना एक देश, विविधता में एकता भारत की विशेषता. वेंकैया ने कहा है कि भारत सबसे सहिष्णु देश हैं. यह लोग एक-दूसरे का सम्मान करते हैं. वहीं, शिवसेना नेता संजय राउत ने भी हामिद अंसारी के बयान की आलाेचना की है. उन्होंने कहा कि पद छोड़ते समय ऐसा बयान वह भी सिर्फ मुसलमानों के लिए उचित नहीं है. भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने सीधा हमला बोलते हुए कहा कि वे अब मुसलमानों का नेता बनना चाहते हैं.
राज्यसभा में हामिद अंसारी का अंतिम भाषण : ‘मुझपे इल्जाम इतने लगाये गये, कि बेगुनाही के अंदाज जाते रहे’
उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियों की स्वतंत्र और बेबाक आलोचना को अनुमति नहीं देने पर लोकतांंत्रिक व्यवस्था पतन की ओर बढते हुए निरंकुश होने लगती है. राज्यसभा में बतौर सभापति अपने एक दशक के कार्यकाल के अंतिम दिन आज अंसारी ने अपने विदाई भाषण में यह बात कही. अंसारी ने पूर्व उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘ ‘लोकतंत्र तब पतनोन्मुखी होकर निरंकुश होने लगता है जब विपक्षी दलों को सरकार की नीतियों की स्वतंत्र और बेबाक आलोचना करने की इजाजत नहीं दी जाये. ‘ ‘
हालांकि उन्होंने आगाह भी किया कि आलोचना करने के सदस्यों के अधिकार को संसद की कार्यवाही में मनमाफिक बाधा पहुंचाने के अधिकार तक नहीं ले जाने दिया जा सकता है. इसलिए सदन में सभी के अपने पास अगर अधिकार हैं तो दायित्व भी हैं. साथ ही अंसारी ने यह भी कहा कि ‘ ‘लोकतंत्र में अल्पसंख्यक समूहों के संरक्षण की विशिष्टता भी निहित है लेकिन साथ ही इन समूहों की अपनी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं. ‘ ‘
उन्होंने सदन में शोर शराबे और हंगामे के बीच जल्दबाजी में कानून बनाने से बचने की नसीहत देते हुए कहा कि राज्यसभा लोकतंत्र का पवित्र स्तंभ है जिसमें बहस और चर्चाएं बाधक नहीं, बल्कि ये सूझबूझ भरे फैसलों के लिए अत्यावश्यक कार्यवाही हैं. अंसारी ने सभापति के आसन को क्रिकेट के अंपायर या हॉकी के रैफरी की तरह बताते हुए कहा कि इस भूमिका में आसन खेल और खिलाड़ियों को देख तो सकता है लेकिन खुद खिलाड़ी नहीं बन सकता है. स्पष्ट है कि नियमों से आबद्ध आसन को नियमों के दायरे में ही सदन का संचालन करना होता है. उन्होंने बीते एक दशक में सदन के कुशल संचालन में सभी सदस्यों के सकारात्मक सहयोग की भूमिका को मुख्य रूप से उत्तरदायी बताया. उन्होंने समूचे सदन की उनके लिए व्यक्त की गयी भावनाओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए उर्दू का शेर पढते हुए कहा कि ‘ ‘मुझपे इल्जाम इतने लगाये गये, कि बेगुनाही के अंदाज जाते रहे.’ ‘
अंसारी ने सदन के एक दिवंगत सदस्य द्वारा उन्हें कार्यभार संभालते समय दी गई सलाह को अपने सफल कार्यकाल का सूत्र बताया। अंसारी ने कहा कि उक्त सदस्य ने कहा था कि ‘ ‘कल के बाद आपको बहुत तकलीफ होगी, मुझे आपसे हमदर्दी है कि आप इसे झेल जायें और सलाह भी है कि हम लोग कितना भी हल्ला करें, आप अपने चेहरे पर गुस्सा मत दिखाइये और हमेशा हंसते रहिये। हम सब के सब लोग देश के दुश्मन नहीं हैं, लेकिन हम सब एक मुस्कान पर फिदा हो जाते हैं और चुपचाप बैठ जाते हैं. ‘ ‘ अंसारी ने कहा कि इस सलाह ने मेरी राह आसान बना दी। अंसारी ने कहा कि अब जबकि मैं दायित्व मुक्त हो रहा हूं, मेरी इच्छा है कि आप सभी इस सदन के प्रति अपनी जिम्मेदारी ऐसे ही निभाते रहें.

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