सीरिया में सैनिक भेजे तो छिड़ सकता है विश्व युद्ध
आमने सामने, ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, बड़ी ख़बरें February 12, 2016 , by ख़बरें आप तकसीरिया में जमीनी जंग के लिए सैनिक भेजने के सऊदी अरब, तुर्की के इरादों पर रूस भड़क उठा है। जर्मनी पहुंचे रूस के प्रधानमंत्री दमित्री मेदवदेव ने शुक्रवार को धमकी दी कि ऐसा करने से धरती पर एक और विश्व युद्ध छिड़ सकता है।दरअसल, ऐसी संभावना जताई जा रही है कि सीरिया में जमीनी फौज भेजने की सऊदी अरब और तुर्की की पहल के बाद अमेरिका भी इसमें शामिल हो सकता है। राष्ट्रपति बशर अल असद के नेतृत्व वाली सीरियाई फौजों के अलेप्पो में बढ़त बनाने से चिढ़े सऊदी अरब और तुर्की ने यह रुख दिखाया है। अलेप्पो के आधे से ज्यादा हिस्से पर आईएस, अल नुसरा फ्रंट, अहरार अल शाम जैसे कई विद्रोही गुटों का कब्जा है। सऊदी अरब, तुर्की सीरिया में असद विरोधी विद्रोही गुटों की गुपचुप मदद कर रहे हैं। रूस असद के समर्थन में खड़ा है।
सीरिया पर वार्ता के लिए म्यूनिख पहुंचे रूसी पीएम ने एक इंटरव्यू में आगाह किया कि जमीनी फौज उतारने का कोई भी प्रयास स्थायी युद्ध की ओर ले जाएगा। सबको पता है कि अफगानिस्तान और लीबिया में क्या हुआ। लिहाजा सभी पक्षों को वार्ता की मेज पर बैठकर हल निकालना चाहिए। उल्लेखनीय है कि रूसी हवाई हमलों की मदद से कुर्द विद्रोहियों ने तुर्की-सीरिया सीमा पर एक हवाई ठिकाने पर कब्जा कर लिया है, जिससे तुर्की चिढ़ा है। अलेप्पो में हवाई हमले को लेकर अमेरिका और रूस में तनातनी बढ़ी है।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री फिलिप हेलमंड ने कहा कि समझौता तभी सफल होगा, जब रूस नरमपंथी विद्रोही गुटों पर बमबारी बंद करेगा। तुर्की ने भी कहा है कि रूस नागरिकों पर हमले करना बंद करे। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उपप्रवक्ता मार्क टोनर ने भी कहा कि गत महीनों में असद शासन के प्रति रूसी समर्थन और हाल में अलेप्पो की घेरेबंदी ने संघर्ष को और तेज कर दिया है और स्थिति को और बिगाड़ दिया है।
विश्व की प्रमुख शक्तियों के बीच सीरिया में एक हफ्ते के भीतर युद्धविराम पर सहमति बनाने और विद्रोही के कब्जे वाले इलाकों में मानवीय मदद पहुंचाने की एक योजना पर शुक्रवार को सहमति बनी। लेकिन रूस, ब्रिटेन और अमेरिकी अगुआई वाले नाटो संगठन के उग्र बयानों से युद्धविराम पर सहमति मुश्किल दिख रही है। अमेरिका के विदेश मंत्री जाॠन कैरी और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव समेत 17 देशों के प्रतिनिधि म्यूनिख में हुई इस वार्ता में शामिल हुए। इसमें सहमति बनी कि युद्धविराम लागू होने के बाद आईएस और अल नुसरा फ्रंट को छोड़कर अन्य विद्रोही गुटों के कब्जे वाले इलाके में हमले नहीं किए जाएंगे।
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