Comments Off on सरस्वती पूजा में ढोंग नहीं भावना जरूरी 6

सरस्वती पूजा में ढोंग नहीं भावना जरूरी

विडियो

बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की आराधना की जाती है. हम में से हर किसी को आज भी अपने बचपन का दिन याद होगा, जब सरस्वती पूजा का कई सप्ताह से इंतजार होता था और मां वीणावादिनी की विदाई के बाद हम बच्चों की आंखें भर जाती थीं और उसी पल से फिर एक बार मां के आने का इंतजार होता था. बहरहाल, सरस्वती पूजा का स्वरूप कितना बदला है, इस पर प्रभात खबर डॉट कॉम ने अलग-अलग क्षेत्र के प्रमुख लोगों से बातचीत की. हमने उनके छात्र जीवन से आज के समय में सरस्वती पूजा में आये बदलाव पर बातचीत की.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं सबसे बड़ी राहत इस मौके पर मिलती थी कि हमें सरस्वती पूजा में पढ़ना नहीं पड़ता था किताबें प्रतिमा के पास जमा हो जाती थीं. कोई भी पढ़ने के लिए नहीं कहता था. इसके बाद कॉलेज में सरस्वती पूजा का अलग ही रंग देखने को मिला. यहां पूजा का मतलब शराब, भांग और अपशब्द था. जबरत चंदा उगाही होती थी. ये सब देखकर मोहभंग हो गया. 1974 की बात है उस वक्त मैं हॉस्टल में था. नयी-नयी आजादी मिली थी. मुझे भी जबरन चंदा उगाही के लिए ले गये. बीच रास्ते पर बांस रख कर दोनों तरफ आने-जाने वाले लोगों से चंदा वसूला जा रहा था. एक व्यक्ति ने जीप चढ़ाने की कोशिश की. इसके बाद खूब हंगामा हुआ, मेरा मन टूट गया. सिर्फ आज ही नहीं उस वक्त भी बंदूक के दम पर चंदा की उगाही होती थी. आज भी सरस्वती पूजा में यह ज्यादा होता है. जिस पूजा में दिखावा ज्यादा होता, उससे जुड़ी इस तरह की घटनाएं बढ़ जाती हैं. आज भी हम पूजा करते हैं हमारे यहां अबीर गुलाल की परंपरा है. बड़े गुरुजनों को चरणस्पर्श करने की परंपरा है जो चल रही है.
सरस्वती के वरद पुत्र ‘निराला’ ने जीवन का विष पीकर बहाई हिंदी में ‘अमृतमयी गंगा’
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ऋता शुक्ल अपने बचपन को याद करते हुए कहतीं हैं – मेरे पिता हिंदी के प्रोफेसर थे हमारे यहां गुरु और शिष्य की परंपरा बहुत पुरानी है. हम आज भी उसका पालन करते हैं. सरस्वती पूजन में गरिमा का होना आश्वयक है. आजकल चलन बदल गया है. बच्चे धूम-धड़ाका और शोर की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. बच्चों को बोध नहीं है. सरस्वती के शाश्वत स्वरूप काे धारण करना है. चंदे के लिए तंग करना गलत है. मैंने आपके अखबार में ही पढ़ा की एक दंपती पर तेल डाल दिया गया. अब पारंपरिक चीजें नहीं रह गयीं. बहुत कुछ बदल गया है. इस दिन निराला का भी जन्मदिन है. एक दिन किसी ने निराला से पूछा कि आपका जन्म भी सरस्वती पूजन के दिन हुआ है इस पर निराला ने बहुत अच्छा जवाब दिया था मैं मां सरस्वती को मानता हूं ढोंग को नहीं. पूजा पाठ में बाहरी दिखावा उचित नहीं है.
झारखंड के जाने-माने फिल्म मेकर मेघनाथ 1971 में कलकत्ता की पूजा याद करते हुए कहते हैं, मैं तो बचपन से नास्तिक हूं लेकिन उस वक्त मैंने बच्चों के साथ सरस्वती पूजा में हिस्सा लिया था. पिताजी के निधन के बाद मैं कलकत्ता आया था. मैंने सजावट का काम संभाला था उस वक्त मैंने हावड़ा ब्रिज का डिजाइन बनाया था. हमलोग उस वक्त अच्छे तरीके से सरस्वती पूजा मनाते थे. चंदे के पैसे की दारू नहीं पीते थे. आजकल तो चंदा का कुछ हिस्सा शराब के लिए अलग से रख दिया जाता है. मैं नास्तिक हूं लेकिन चाइल्ड नास्तिक नहीं हूं. मैं किसी की आस्था पर सवाल नहीं करता. उसके मन की भावना को समझता हूं. हां, अगर कोई धर्म के नाम पर अपना हित साधता है तो उसे नहीं छोड़ता. मैं 50 साल पहले मुंबई के मलाड में रहता था. मेरे स्कूल के पास एक हनुमान मंदिर था. मैं हाल में ही वहां गया तो मुझे याद आया कि मैं कैसे पंडित जी को ब्लैकमेल करता था. मैंने नारियल के लिए उन्हें कई बार ब्लैकमेल किया. मैं उन्हें धमकाता था कि आप मुझे नारियल दो नहीं तो बता दूंगा कि आप किस मद्रासी होटल को नारियल बेचते हैं.
केंद्रीय विश्वविद्यालय, झारखंड के जनसंचार विभाग के पूर्व डीन संतोष कुमार तिवारी अपने कई जगहों के अनुभवों का जिक्र करते हुए कहते हैं, अब सब व्यापार हो गया है. वे कहते हैं : बड़ौदा विश्वविद्यालय में जब मैं प्रोफेसर के रूप में काम कर रहा था तो महसूस किया कि पहले यहां पूजा नहीं होती थी, लेकिन फिर होने लगी. अब पूजा फैशन, पैसे का खेल हो गया है. पूजा में पैसा जुड़ गया, जिससे आस्था पीछे रह गयी. मैंने सिर्फ सरस्वती पूजा में नहीं बल्कि गणेश पूजा, नवरात्र में भी देखा है कैसे बड़े आयोजन के नाम पर व्यापार होता है. कुछ जगहों पर अभी भी फिल्मी गीतों का प्रवेश नहीं हुआ है. गाने बजते हैं लेकिन भक्ति वाले. मेरे पिताजी के कमरे में मां सरस्वती की एक मूर्ति और उनके गुरु की एक मूर्ति थी. रोज सुबह उठ कर वह इन दोनों का वंदन करते थे. मैने आज तक दोनों मूर्तियां संभाल कर रखी है.

Back to Top

Search