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सरकार ने पूंजीगत सामान नीति को मंजूरी दी, 2.1 करोड़ नये रोजगारों पर निगाह

ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, दिल्ली

सरकार ने देश के पूंजीगत सामान क्षेत्र के लिए अपनी तरह की पहली नीति को आज हरी झंडी दिखा दी. इस योजना का उद्देश्य देश को विश्वस्तरीय विनिर्माण केंद्र (हब) बनाना तथा 2025 तक 2.10 करोड़ अतिरिक्त अवसर सृजित करना है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आज यहां हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का फैसला किया गया. आधिकारिक बयान में कहा गया है,‘ इस नीति से भारत को पूंजीगत सामान के लिए विश्व स्तरीय केंद्र बनाने के दृष्टिकोण को अमली जामा पहनाने में मदद मिलेगी.
यह मेक इन इंडिया दृष्टिकोण में मजबूत स्तंभ के रूप में समग्र विनिर्माण में मजबूत भूमिका निभाएगी. ‘ इसके अनुसार,‘ पूंजीगत सामान क्षेत्र के लिए यह अपनी तरह की पहली नीति है जिसका स्पष्ट उद्देश्य पूंजीगत सामान से उत्पादन को 2025 में बढकर 7,50,000 करोड रुपये करना है जो 2014-15 में 2,30,000 करोड रूपये था. इस क्षेत्र से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रोजगार को 84 लाख से बढकर तीन करोड किया जाना है. ‘ इस नीति का मकसद समूची विनिर्माण गतिविधियों में पूंजीगत सामान का हिस्सा मौजूदा 12 प्रतिशत से बढाकर 2025 तक 20 प्रतिशत तक पहुंचाना है. केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा,‘अगर देश में विनिर्माण गतिवधियों के साथ साथ पूंजीगत सामान विनिर्माण हुआ तो समूची अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलेगा. ‘
इस नीति का उद्देश्य 2025 तक प्रत्यक्ष घरेलू रोजगार की मौजूद संख्या 14 लाख को बढाकर कम से कम 50 लाख करना तथा अप्रत्यक्ष रोजगारों की संख्या को 70 लाख से बढाकर 2.5 करोड़ करना है. इस तरह से इस अवधि में कम 2.1 करोड लोगों को अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा. आधिकारिक बयान के अनुसार,‘ भारी उद्योग विभाग इस नीति के उद्देश्यों को समयबद्ध तरीके से हासिल करेगा और वह नीति की मंशाओं की रुपरेखा के तहत योजनाओं के लिए मंजूरी लेगा. ‘ नीति का मकसद भारत के पूंजीगत सामान क्षेत्र में घरेलू उत्पादन का हिस्सा 2025 तक 60 प्रतिशत से बढाकर 80 प्रतिशत करना भी है.
इसके अनुसार पूंजीगत वस्तुओं के ‘निर्यात को बढाकर उत्पादन के मौजूदा 27 प्रतिशत के स्तर से बढाकर 40 प्रतिशत किया जाना है. बयान के अनुसार इस नीति का उद्देश्य पूंजीगत सामान क्षेत्र के लिए पास पलटने वाली कार्यनीतियां बनाना है. इसमें जिन कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान दिया गया है उनमें वित्तपोषण, कच्चा माल, नवोन्मेष व प्रौद्योगिकी, उत्पादकता, गुणवत्ता, पर्यावरण अनुकूल विनिर्माण गतिवधियां, निर्यात को बढावा देना तथा घरेलू मांग पैदा करना शामिल है.

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