शहाबुद्दीन पर 2003 में डीपी ओझा ने कसा शिकंजा
अपराध, ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार September 11, 2016 , by ख़बरें आप तकमुस्लिमों वोटरों में अच्छी पकड़ रखने के कारण मो. शहाबुद्दीन को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद का राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा है। 2003 में डीपी ओझा ने डीजीपी बनने के साथ ही मो. शहाबुद्दीन पर शिंकजा कसना शुरू कर दिया। उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर कई पुराने मामले फिर से खोल दिए थे । जिन मामलों की जांच का जिम्मा सीआईडी को सौंपा गया था, उनकी भी समीक्षा कराई गई।
माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन के खिलाफ वारंट जारी हुआ और उन्हें अदालत में आत्मसर्पण करना पड़ा था । शहाबुद्दीन के आत्मसमर्पण करते ही सूबे की सियासत गरमा गई और मामला आगे बढ़ता देख राज्य सरकार ने डीपी ओझा को डीजीपी पद से हटा दिया । इधर सत्ता के टकराव के कारण ओझा को वीआरएस लेना पड़ा। जब रत्न संजय सीवान के एसपी बने, तो शहाबुद्दीन के खिलाफ एक बार फिर कार्रवाई शुरू हुई। उस समय राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था। जेल में रहने के बाद भी शहाबुद्दीन को दर्जनों मामलों में साजिशकर्ता के रूप में अभियुक्त बनाया गया, जिनमें तेजाब कांड में दो सगे भाईयों को तेजाब से नहलाकर मारने और इन दोनों के बड़े भाई को भी पिछले साल डीएवी मोड़ के पास गोली मार कर हत्या कराने का आरोप भी लगा है, जो तेजाबकांड का चश्मदीद गवाह भी था। 2004 में सीवान के व्यवसायी चंदा बाबू के दो बेटे गिरिश व सतीश का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई थी।
राजद के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन का सफर बड़ा ही दिलचस्प रहा है। शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई1967 को सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में हुआ था। सीवान के चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे। उन्होंने माकपा व भाकपा (मार्क्सवादी – लेनिनवादी) के खिलाफ जमकर लोहा लिया और इलाके में ताकतवर राजनेता के तौर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। भाकपा माले के साथ उनका तीखा टकराव रहा। सीवान में दो राजनीतिक धुरिया थीं तब एक शहाबुद्दीन व दूसरा भाकपा माले। जीरादेई विधानसभा सीट से 1990 व 1995 में जीत हासिल कर शहाबुद्दीन विधायक बने।
शहाबुद्दीन पर फिलहाल 30 मामले में ट्रायल चल रहा है। जबकि आठ मामले में वे बरी हो चुके हैं। सात मामले में उन्हें सजा हो चुकी है। जिस मामले में उन्हें सजा हुई है वे उस अवधि को जेल में पुरी कर चुके हंै या हाईकोर्ट से जमानत पर हैं। 1986 में हुसैनगंज थाने में पहला केस दर्ज हुआ। 1990 में निर्दलीय विधायक बनने के बाद मो. शहाबुद्दीन लालू प्रसाद के नजदीक चले गए। फिर विधायक और सांसद भी बने। राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की मुसलमान वोटरों के अलावा अन्य वोटरों में पकड़ है।
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