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शहरी परिवेश के बढ़ते दबदबे के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रो में आयोजित होने वाले मेलों की संख्या में काफी इजाफा

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बच्चों में चूड़ा दही खा कर मेला घूमने की तमन्ना कुलांचे मारती रहती है. मेले की तैयारी में जुटे बच्चे नये नये तरकीब अपना कर पैसों का जुगाड़ करते है. ताकि ताज़ी जलेबी, तीखे स्वाद के आयोजन की पुरानी परंपरा रही है. दिनोदिन शहरी परिवेश के बढ़ते दबदबे के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रो में आयोजित होने वाले मेलों की संख्या में काफी इजाफा होते जा रहा है. पहले जिले में मशहूर था डेहरी का मेला. अब अकेले सासाराम प्रखंड के अंतर्गत दर्जन भर मेले लगने लगे.
बभनपुरवा मेले में आये 70 वर्षीय सरयू सिंह कहते है, आज बच्चों में उत्साह देख कर अपना बचपन याद आ गया. मकर संक्रांति जिसे हम लोग खिचड़ी के नाम से जानते थे. पहले गंगा नहाने के लिए लोग बक्सर जाया करते थे. मेला में मशहूर डेहरी जाने की ललक रहती थी. मेले में खरीददारी के लिए एक महिना पहले से ही अपने ही खेतो में लगे धान की खड़ी फसल से धान चुराकर बेच कर पैसा जुटाते थे. घर से जो मिलता था उसका अलग मजा. अब वो कहा नसीब है. ना खुल कर जलेबी खा सकते है ना ही गरम-गरम पकौड़ी का आनंद. सासाराम शहर से सटे बेदा, अमरा तालाब, लेरुआ, मोकर, लालगंज नहर, दरिगांव जैसे पुराने जमुहार, अकोढ़ी गोला सहित ढेरों मेले लगे हुए थे.
इन मेलों की खासियत थी कि खाने पीने की चीजों के अलावे ग्रामीण घरों में उपयोग में आने वाली सामग्रियां भी उपलब्ध थी. खरीददार पर निर्भर था कि जो ख़रीदे. अधिकांश युवाओं की रूचि बांस की लाठियों में दिखी जिनकी कीमत उसकी सुन्दरता पर निर्भर थी. महिलाओं के लिए साधारण किस्म के संदौर्य प्रसाधन तो बच्चों के लिए फुलौने, लकड़ी की घोडा गाडी, बांसुरी जैसी सामग्री उपलब्ध थी. बेदा मेले का दूकानदार राम स्वरुप बताता है कि खिचड़ी के मेले से हमारी बड़ी उम्मीदें बंधी रहती है. आज भी उसने उम्मीद से अधिक कमाई की. महिलाओं को आज सुबह से ही स्नान कर पूजा पाठ करते देखा गया. अधिकांश घरों में लोगो को स्नान के बाद चावल काला तिल छूने के बाद ही उन्हें तिलवा तिलकुट का प्रसाद दिया गया. छुए हुए चावल दान दिए जाने की पुरानी परंपरा आज भी बरकरार देखी गई. घरों में चूड़ा दही के बाद लोग खिचड़ी भी खाए.
लोगों का मानना है कि इस बार इस पर्व के शनिवार को पड़ने से इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है. वैसे भी शनिवार को खिचड़ी खाने की परंपरा रही है. आज तो पर्व ही था. इस बार के मकर संक्रांति के मेलों का परिदृश्य कुछ बदला हुआ लगा. पहले शराब के प्रचलन से अक्सर इन मेलों में लड़ाई झगड़े का डर बना रहता था. इस बार पुलिस को भी बहुत चिंता नहीं थी. कही से किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली है.

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