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व्रतियों ने डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य

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लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान गुरुवार को नहाय-खाय के साथ आरंभ हुआ। दूसरे दिन शुक्रवार को खरना की पूजा के बाद शनिवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया। रविवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ महापर्व का समापन हो जाएगा। प्रात:कालीन अर्घ्‍य का मुहूर्त रविवार सुबह 6.29 बजे के बाद का है।
छठ को लेकर पूरे बिहार में उत्‍साह का माहौल है। शनिवार को सायंकालीन अर्घ्‍य के दौरान नदी व तालाबों के घाटों पर भीड़ उमड़ पड़ी। लोगों ने अपने घरों में भी अस्‍थाई घाट बनाकर पूजा की।
सीएम नीतीश व राज्यपाल ने दी शुभकामनाएं
छठ के सायंकालीन अर्घ्‍य के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी स्टीमर से घाटों का जायजा लेने निकले। इस दौरान उन्होंने व्रतियों को महापर्व की शुभकामनाएं भी दीं। उनके साथ बिहार के राज्यपाल फागू सिंह चौहान भी थे। उन्‍होंने भी लोगों को छठ की शुभकामनाएं दीं।
पटना के छठ घाटों पर रहा मेले जैसा माहौल
दोपहर 2.30 बजे से श्रद्धालु घाटों पर जुटने लगे थे। शाम जैसे ही सूर्य डूबने लगा, पटना से लेकर बिहार के अन्य भागों में व्रतियों ने भगवान भास्‍कर को अर्घ्‍य दिया। पटना में गंगातट पर मेले जैसा नजारा देखने को मिला। इस दौरान सड़कों से लेकर घाटों तक छठ गीत गूंजते रहे।
इसके पहले शुक्रवार को खरना के लिए व्रतियों ने सुबह से निर्जला व्रत रखा तथा रात में गेहूं के आटे की रोटी, गुड़़-चावल और दूध से बनी खीर के साथ फल-फूल व मिठाई से पूजा की। पूजा के बाद उन्‍होंने प्रसाद ग्रहण किया। फिर, 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो गया।
गुरुवार को व्रतियो ने किया नहाय-खाय
खरना के पहले गुरुवार को व्रतियों ने स्नान करने के बाद नहाय-खाय का प्रसाद कद्दू की सब्जी, चने की दाल और चावल बनाया। व्रतियों के प्रसाद ग्रहण करने के बाद अन्‍य लोगों ने वही प्रसाद ग्रहण किया। कुछ लोगों ने नदियों के तट पर प्रसाद बनाया तो कुछ ने घरों में ही नहाय-खाय की पूजा की।
चार दिवसीय अनुष्ठान के मौके पर ग्रह-गोचरों के शुभ संयोग
पटना के पंडित राकेश झा ने कहा कि कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को रवियोग में गुरुवार को नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो गया है। वहीं शुक्रवार को व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला व्रत कर तीन नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देेने के साथ व्रत का समापन करेंगी। शनिवार दो नवंबर को व्रती सायंकालीन अर्घ्य त्रिपुष्कर योग में देंगी। रविवार को सर्वार्थ-सिद्धि योग में भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगी।
पंडित झा ने धर्मग्रंथों के हवाले से बताया कि सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत किया था। वे कुष्ठ रोग से पीडि़त थे।
भगवान सूर्य की मानस बहन हैं षष्ठी देवी
पंडित झा के अनुसार षष्ठी देवी भगवान सूर्य की मानस बहन हैं। उनको देवसेना भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है। विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। ऐसे में उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है।
व्रत में इन चीजों की है महत्ता
सूप, डाला: अर्घ्य में नए बांस से बने सूप व डाला का प्रयोग किया जाता है। सूप को वंश की वृद्धि और वंश की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।
ईख: ईख को आरोग्यता का प्रतीक माना जाता है। लीवर के लिए ईख का रस काफी फायदेमंद माना जाता है।
ठेकुआ: आटे और गुड़ से बना ठेकुआ समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
ऋतुफल: छठ पूजा में ऋतुफल का विशेष महत्व है। व्रती मानते हैं कि सूर्यदेव को फल अर्पित करने से विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।

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