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लोक आस्था का छठ महापर्व कल से

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दीपोत्सव के समापन के साथ ही लोक आस्था के महापर्व डाला छठ की तैयारियां शुरू हो गई हैं। गली-मोहल्लों में छठ के पारंपरिक मधुर गीत .केलवा जे फरेले घवद से उहे पर सुगा मंडराय, कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी चलकत जाय.व हमहूं अरघिया देबई हे छठी मइया.गूंजने लगे हैं।
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक चार दिन तक घर से घाट तक आस्था और उल्लास छाया रहेगा। उत्थान ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं. दिवाकर त्रिपाठी ‘पूर्वांचली’ के अनुसार इस बार छठ महापर्व 31 अक्तूबर यानी गुरुवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। पहली नवंबर को खरना और दो नवंबर को सूर्य षष्ठी का मुख्य पर्व होगा। इस दिन व्रतीजन डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। पर्व का समापन तीन नवंबर यानी रविवार को उदित होते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा। इसी दिन पारण किया जाएगा। नहाय-खाय महापर्व की शुरुआत 31 अक्तूबर यानी गुरुवार को नहाय-खाय के साथ होगी।
गुरुवार को रहेगा भद्रा का योग ज्योतिषाचार्य पं. अवध नारायण द्विवेदी के अनुसार छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी, 31 अक्तूबर शनिवार से शुरू होगा।
समापन तीन नवंबर रविवार को होगा। गुरुवार को शाम 4:45 के बाद भद्रा का योग है।
छठ महापर्व की तिथि 31 अक्तूबर, गुरुवार: नहाय-खाय
1 नवंबर, शुक्रवार : खरना
2 नवंबर, शनिवार: डूबते सूर्य को अर्घ्य
3 नवंबर, रविवार : उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण
इस दिन घर की साफ-सफाई करके व्रतीजन स्नान करते हैं। खाने में अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू का सेवन करेंगे। परंपरा के अनुसार इस दिन से व्रत संपन्न होने तक व्रतीजन बिस्तर पर नहीं सोते हैं। खरना से प्रसाद बनाने के लिए घरों में गेंहू-चावल को शुद्धता से पिसवाने का काम शुरू हो गया है। खरना महापर्व का दूसरा चरण नहाय-खाय होगा। यह पहली नवंबर यानी शुक्रवार को है। इस दिन व्रतीजन शाम को भोजन करते हैं। भोजन में गुड़ खीर खाने की परंपरा है। डूबते सूर्य को अर्घ्य खरना के बाद तीसरा मुख्य चरण शनिवार यानी दो नवंबर को सूर्य पष्ठी है। इस दिन परिवार के सभी सदस्य मिलजुल कर प्रसाद बनाते हैं। साथ ही छठ मइया के पारंपरिक गीतों से घर-आंगन गूंजेगा। प्रसाद में मुख्य रूप से ठेकुआ, गन्ना, बड़ा नीवू, चावल के लड्डू, फल आदि शामिल होगा। शाम को सूप में प्रसाद सजाकार व्रती अपने परिवार के साथ गंगा-यमुना के विभिन्न घाटों पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। उगते सूर्य को अर्घ्य महापर्व का अंतिम चरण तीन नवंबर यानी रविवार को है। इस दिन व्रतीजन भोर में परिवार के साथ डाला लेकर घाटों पर पहुंचेंगे। घाट पर स्थापित वेदी पर विधिविधान से पूजन-अर्चन के बाद जल में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य देंगे। छठव्रती भगवान भाष्कर को प्रसाद अर्पित करने के बाद पारण करेंगे।
शिविर में होंगे विविध कार्यक्रम संगम नोज पर समिति की ओर से अनुष्ठान पूजन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति भी होगी। 31 को सूर्य आवाहन, आदित्य हृदय स्रोत पाठ व 108 बार सूर्य चालीसा पाठ होगा। एक नवंबर को अखंड रामायण पाठ होगा। दो को भोजपुरी संध्या में मिश्र बंधु का गायन व तीन को भजन संध्या, प्रसाद वितरण किया जाएगा।
संगम नोज पर विधिविधान से किया गया भूमि पूजन छठ महापर्व को भव्य रूप देने के लिए पूर्वांचल छठ पूजा समिति ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। मंगलवार को कैंप कार्यालय का भूमि पूजन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ किया गया। ।छठ पूजा एक प्राचीन महोत्सव है, जिसे दिवाली के बाद छठे दिन मनाया जाता है। छठ पूजा को सूर्य छठ या डाला छठ के नाम से भी संबोधित करते हैं। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न महानगरों में हम छठ मनाते हैं। वैसे तो लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं, लेकिन छठ पूजा एक ऐसा अनोखा पर्व है, जिसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की आराधना से होती है। ‘छठ’ शब्द ‘षष्ठी’ से बना है, जिसका अर्थ ‘छह’ है, इसलिए यह त्योहार चंद्रमा के आरोही चरण के छठे दिन, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष पर मनाया जाता है। कार्तिक महीने की चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक मनाया जाने वाला ये त्योहार चार दिनों तक चलता है। मुख्य पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के छठे दिन की जाती है।
इसका रहस्य समझते हैं। इस त्योहार में भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसका अर्थ क्या है? यहां जल देने से सूर्य के पास पहुंच जाएगा? नहीं। इसका दार्शनिक अर्थ है-जीवन और पृथ्वी का आधार सूर्य ही हैं। यह सूर्य को आभार व्यक्त करने की परम्परा है। पहले प्रतिनित्य सूर्य को अर्घ्य देकर सभी पूजा शुरू की जाती थी।
छठ में जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। जल या आप: (संस्कृत) का एक अर्थ प्रेम भी है। जल प्रेम का प्रतीक भी है। ‘आप्त’ एक शब्द है, जो ‘आप:’ से बना है। आप्त का अर्थ है, ‘जो बहुत प्रिय हो।’छठ पूजा एक प्राचीन महोत्सव है, जिसे दिवाली के बाद छठे दिन मनाया जाता है। छठ पूजा को सूर्य छठ या डाला छठ के नाम से भी संबोधित करते हैं। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न महानगरों में हम छठ मनाते हैं। वैसे तो लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं, लेकिन छठ पूजा एक ऐसा अनोखा पर्व है, जिसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की आराधना से होती है। ‘छठ’ शब्द ‘षष्ठी’ से बना है, जिसका अर्थ ‘छह’ है, इसलिए यह त्योहार चंद्रमा के आरोही चरण के छठे दिन, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष पर मनाया जाता है। कार्तिक महीने की चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक मनाया जाने वाला ये त्योहार चार दिनों तक चलता है। मुख्य पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के छठे दिन की जाती है।
इसका रहस्य समझते हैं। इस त्योहार में भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसका अर्थ क्या है? यहां जल देने से सूर्य के पास पहुंच जाएगा? नहीं। इसका दार्शनिक अर्थ है-जीवन और पृथ्वी का आधार सूर्य ही हैं। यह सूर्य को आभार व्यक्त करने की परम्परा है। पहले प्रतिनित्य सूर्य को अर्घ्य देकर सभी पूजा शुरू की जाती थी।
छठ में जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। जल या आप: (संस्कृत) का एक अर्थ प्रेम भी है। जल प्रेम का प्रतीक भी है। ‘आप्त’ एक शब्द है, जो ‘आप:’ से बना है। आप्त का अर्थ है, ‘जो बहुत प्रिय हो।’
बिहार समेत देश के कई राज्यों में छठ पूजा बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। इस पूजा में भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। इस बार छठ पूजा के मौके पर छठ मैया के भोजपुरी लोकगीत, छठ गीत काफी पसंद किए जा रहे हैं।इसका त्योहार का उद्देश्य सूर्य से अपनेपन और निकटता को महसूस करना है। सूर्य को जल अर्पित करने का अर्थ है कि हम संपूर्ण हृदय से आपके (सूर्य के) आभारी हैं और यह भावना प्रेम से उत्पन्न हुई है।इसमें दूध से भी अर्घ्य देते हैं। दूध पवित्रता का प्रतीक है। दूध को पानी के साथ अर्पित किया जाना इस बात को दर्शाता है कि हमारा मन और हृदय दोनों पवित्र बने रहें।
सूर्य इस ग्रह पर सभी आहार का स्रोत है। यह सूर्य ही है, जिसके कारण ऋतुएं और वर्षा आती है। सूर्य इस ग्रह पर जीवन का निर्वाहक हैं। सूर्य के प्रति कृतज्ञता की गहन भावना के साथ प्रसाद बनाया जाता है। सब्जियों, मिठाइयों और विभिन्न खाद्य पदार्थों को सूर्य को यह कहते हुए अर्पित किया जाता है कि ‘यह सब आपका है, यहां मेरा कुछ भी नहीं है।’
सूर्यास्त और सूर्योदय के समय पूरा परिवार सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पानी में उतरता है। जल हथेलियों में रखा जाता है और सूरज को देखते हुए, जल को धीरे-धीरे अर्पित किया जाता है। सुबह और शाम के समय सूर्य को देखने का महत्व पूरे विश्व में बताया गया है और विज्ञान यह मानता है कि यह शरीर में विटामिन डी उत्पन्न करने के लिए सूर्य आवश्यक हैं। सुबह और शाम के समय सूर्य का अवलोकन करने से शरीर में सूर्य की ऊर्जा अवशोषित करने में मदद मिलती है। यह बुद्धि को तीक्ष्ण और सबल करता है। कुछ ऐसे भी हैं, जो बिना खाना खाए भी अपनी पूरी जिंदगी सूर्य की ऊर्जा पर टिके रहते हैं।
नित्य सूर्य को अर्घ्य देने से भी शरीर में ऊर्जा का अवशोषण होता है। जीवन निर्वाहक सूर्य को सच्चे मन से आभार की अभिव्यक्ति करना ही छठ पूजा है। यह व्रत दर्शाता है की हम अपने अस्तित्व के लिए सूर्य के ऋणी हैं। जाति, पंथ और धन की सीमाओं को पार करते हुए, लोग इस सुंदर त्योहार को मनाने के लिए एक साथ आते हैं।
सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है, क्योंकि वे पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं। उनके आलोक को अपनी चेतना में धारण करने से जीवन प्रकाशित हो उठता है। छठ व्रत इन्हीं जीवनदायी सूर्य देव को आभार प्रकट करने का महापर्व है, जिसमें पूरा समाज बिना किसी भेदभाव के साथ सामूहिक रूप से उनकी आराधना करता है।
छठ में हम जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। जल या आप: का एक अर्थ प्रेम भी है। जल प्रेम का प्रतीक भी है। ‘आप्त’ एक शब्द है, जो ‘आप:’ से बना है। आप्त का अर्थ है, ‘जो बहुत प्रिय हो।’

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