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लाजवाब को साकार करती वहीदा रहमान अपने करिश्मायी अभिनय के पांच दशक

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हिन्दी फिल्मों की सदाबहार एक्ट्रेस वहीदा रहमान 3 फरवरी को 78वां जन्मदिन मना रही हैं। अपने नाम (वहीदा) के मतलब लाजवाब को साकार करती वहीदा रहमान अपने करिश्मायी अभिनय से लगभग पांच दशक से सिनेमा प्रेमियों के दिलों पर राज कर रही हैं।
– वहीदा रहमान का जन्म 3 फरवरी 1938 को तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में हुआ था। उनके पिता जिला अधिकारी थे। बचपन से ही वहीदा रहमान का रूझान नृत्य और संगीत की ओर था। पिता ने नृत्य के प्रति नन्हीं वहीदा के रूझान को पहचान कर उसे उस राह में चलने के लिये प्रेरित किया और उसे भरतनाट्यम सीखने की अनुमति दे दी।
-तेरह वर्ष की उम्र से वहीदा रहमान नृत्य कला में पारंगत हो गयी और स्टेज पर कार्यक्रम पेश करने लगी। फिल्म निर्माता उन्हें अपनी फिल्म में काम करने के लिये पेशकश करने लगे लेकिन उनके पिता ने फिल्म निर्माताओं की पेशकश यह कहकर ठुकरा दी कि ‘वहीदा अभी बच्ची है और यह उम्र उसके पढ़ने लिखने की है।’
-पिता की मौत के बाद घर की आर्थिक जिम्मेदारी वहीदा पर आ गयी। पिता के एक मित्र की सहायता से वहीदा को एक तेलुगू फिल्म में काम करने का मौका मिला। फिल्म सफल रही। फिल्म में वहीदा का अभिनय दर्शकों ने काफी सराहा।
– हैदराबाद में फिल्म के प्रीमियर के दौरान निर्माता गुरूदत्त के एक फिल्म वितरक ने वहीदा को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया और अपनी फिल्म ‘सीआईडी’ में काम करने का मौका दिया। फिल्म निर्माण के दौरान जब गुरूदत्त ने वहीदा को नाम बदलने के लिए कहा तो वहीदा ने साफ इंकार करते हुए कहा कि उनका नाम वहीदा ही रहेगा।
-1957 में वहीदा को एक बार फिर से गुरूदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में काम करने का अवसर मिला। फिल्म में वहीदा रहमान ने एक वेश्या का किरदार निभाया था। गुलाबो के किरदार को वहीदा रहमान ने इतने सहज और दमदार तरीके से पेश किया कि दर्शक उनके अभिनय के कायल हो गये। 1959 में प्रदर्शित गुरूदत्त की ही फिल्म ‘कागज के फूल ‘में काम करने का मौका मिला।
-1960 में वहीदा की यादगार फिल्म ‘चौदहवी का चांद’ प्रदर्शित हुई जो रूपहले पर्दे पर सुपरहिट हुई। इस फिल्म के एक गाने ”चौदहवी का चांद हो या आफताब हो जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो’ ने दर्शकों को वहीदा का दीवाना बना दिया और उन्हें कहना पड़ा कि वह अपने नाम की तरह सचमुच लाजवाब है।
-1962 में वहीदा की ‘साहब बीवी और गुलाम’ प्रदर्शित हुई। 1965 में वहीदा के सिने करियर की एक और अहम फिल्म ‘गाइड’ प्रदर्शित हुई। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया बल्कि साथ ही वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित की गईं।
-1969 में प्रदर्शित फिल्म ‘खामोशी’ में वहीदा के अभिनय के नये आयाम दर्शकों को देखने को मिले। सत्तर के दशक में वहीदा रहमान ने चरित्र भूमिका निभानी शुरू कर दी। इन फिल्मों में ‘अदालत’, ‘कभी कभी’, ‘त्रिशूल’, ‘नमक हलाल’, ‘हिम्मतवाला’, ‘कुली’, ‘मशाल’, ‘अल्लाह रखा’, ‘चांदनी और लम्हें’ प्रमुख है।-इसके बाद वहीदा ने लगभग 12 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 2001 में वहीदा ने अपने करियर की नयी पारी शुरू की और ‘ओम जय जगदीश’, ‘वाटर’, ‘रंग दे बसंती’, ‘दिल्ली 6’ जैसी फिल्मों से दर्शकों का मन मोहा। अपने जीवन के 75 से भी ज्यादा बसंत देख चुकी वहीदा रहमान आज भी उसी जोशो खरोश के साथ अपने किरदार को निभाती हैं।

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