रोजगार का बेहतर जरिया मछली पालन
कृषि / पर्यावरण December 25, 2016मिश्रित मछली पालन-
मिश्रित मछली पालन व्यवसाय, बेरोजगार युवकों के लिए आर्थिक स्थिति में सुधार करने हेतु एक महत्वपूर्ण साधन है। मिश्रित मछली पालन अपनाने पर परम्परागत तरीके के प्रयोग से मिलने वाले उत्पादन की अपेक्षा 10-12 गुना अधिक मत्स्य उत्पादन मिलता है। इस विधि में तालाबों में विभिन्न आहार वाली अच्छी किस्म में कार्प प्रजातियों के मछली बीज उचित अनुपात एवं वजन में संचयन कर जैविक एवं रसायनिक खाद का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाता है। तथा परिपूरक आहार भी दिया जाता है। सामान्यत: मिश्रित मछली पालन में पाली जाने वाली प्रजातियां कतला, राहू, म्रिगल, कामनकार्प, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प है। वर्तमान में मिश्रित मछली पालन ग्राम पंचायतों के तालाबों में किया जा रहा है। परंतु खाद एवं परिपूरक आहार न देने के कारण उत्पादन में समुचित वृद्धि नहीं हो रही है। अत: स्वयं की भूमि में तालाब निर्माण कराकर व उनमें, मिश्रित मछली पालन कर, लगभग 6000-8000 किग्रा/ हेक्टर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
एकीकृत मछली पालन- एकीकृत मछली पालन का आशय मछली पालन के साथ-साथ दूसरे उत्पादन जैसे बतख पालन, मुर्गीपालन, शुकर पालन एवं कृषि बागवानी के साथ समन्वयन से है। मिश्रित मछली पालन में जैविक एवं रसायनिक खाद तथा परिपूरक आहार के प्रयोग से अधिक उत्पादन के साथ-साथ उत्पादन मूल्य भी बढ़ जाता है। इस आर्थिक समस्या के समाधान के मछली पालन को विभिन्न ईकाईयों जैसे-मुर्गी, बतख, कृषि बागवानी, मवेशी पालन के साथ जोडऩे की व्यवस्था की जाती है। जिससे कृषकों को मछली पालन से आय के साथ-साथ अन्य उत्पादों के समन्वयन से अतिरिक्त आय मिलती है। इस अंतरबद्धता के कारण मवेशी पालन, बागवानी या कृषि से परित्यक्त पदार्थों का उपयोग मछलियों के लिए परिपूरक आहार या खाद के रुप में उपयोग होता है तथा दूसरी ओर तालाब के जल तथा उसके बंध और मछली पालन से उत्पन्न व्यर्थ पदार्थों का उपयोग कृषि एवं मछली पालन में किया जाता है। ऐसी व्यवस्था से लागत खर्च में काफी कमी आ जाती है।
मत्स्य कृषकों के रुझान को देखते हुए बतख सह मछली पालन एवं मुर्गी सह मछली पालन एवं फलोद्यान सह मछली पालन में सबसे अधिक उपयोगी पाया गया है। एकीकृत मत्स्य पालन के अंतर्गत बतख सह मछली पालन से प्रोटीन उत्पादन के साथ-साथ बतखों के मलमूत्र का उचित उपयोग होता है। बतख सह मछली पालन में प्रति हे. 1 वर्ष में 4000 किग्रा मछली, बतख से 15000 अण्डे तथा 500 किग्रा बतख के मांस का उत्पादन किया जा सकता है। इस प्रकार से मछली पालन में न तो जलक्षेत्र में कोई खाद, उर्वरक डालने की आवश्यकता है और न ही मछलियों को पूरक आहार देने की आवश्यकता है। मछली पालन पर लगने वाली लागत में 50-60 प्रतिशत की कमी हो जाती है। पाली जाने वाली मछलियां एवं बतख एक-दूसरे के अनुपूरक होती है। बतखें पोखर के कीड़े, मकोड़े, टेडपोल, घोंघे, जलीय वनस्पतियां इत्यादि खाती हंै। मछलियां बतखों द्वारा गिराई गई खुराक को भोजन के रुप में ग्रहण करती है। जिसके कारण अतिरिक्त कृत्रिम आहार मछलियों को नहीं देना पड़ता। बतखें जलीय वनस्पति पर नियंत्रण रखती है। बतखों को अपने भोजन का 50 प्रतिशत भाग जलक्षेत्र से ही प्राप्त हो जाता है। तालाब में बतख के तैरते रहने से वायुमंडल की आक्सीजन पानी भी मिलती रहती है। इसी प्रकार बतख सह मछली पालन से तालाब में अतिरिक्त खाद डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है एवं बतखों को साफ सुरक्षित परिवेश एवं उत्तम प्राकृतिक भोजन भी उपलब्ध हो जाता है। प्रति हे. 200-300 नग बतख रखना पर्याप्त होता है।
मुर्गी पालन में भी पोल्ट्री लीटर को पोखर में खाद के रुप में डाला जाता है। मुर्गी सह मछली पालन से प्रति है। वर्ष 60,000 अंडे, 500-600 किग्रा मुर्गी का मांस तथा 3500 किग्रा मछलियों का उत्पादन किया जाता है। 1 हेक्टर के लिये 500 मुर्गियां रखना पर्याप्त होता है। एकीकृत मछली सह मुर्गी पालन में मछली, मुर्गी के अंडे तथा मांस की प्राप्ति से अधिक आय होती है तथा तालाबों में मछलियों के लिये अतिरिक्त फीड देने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि मुर्गियों द्वारा विसर्जित व्यर्थ पदार्थों में पाये जाने वाले नाइट्रोजिनस पदार्थों से इसकी पूर्ति हो जाती है।
फलोद्यान सह मछली पालन में तालाब के मेेढ़ पर अरहर, टमाटर, कुंदरु, तेल युक्त सब्जियां, पपीता, मिर्च, लौकी, फूलों के पौधे आदि लगाये जा सकते है जिससे किसान सम्पूर्ण क्षेत्र का समुचित उपयोग कर अतिरिक्त आय कमा सकते है। छत्तीसगढ़ में स्वयं की भूमि में तालाब निर्माण कर मिश्रित मछली पालन एवं एकीकृत मछली पालन की अपार संभावनाएं उपलब्ध है।
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