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राजन से छिन सकता है ब्याज दरों पर फैसले का हक

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रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के अधिकारों पर कैंची चलाई जा सकती है। नीतिगत ब्याज दरें तय करने के मामले में अंतिम फैसला [वीटो] का अधिकार उनसे छिन सकता है। सरकार ने नीतिगत ब्याज दरें तय करने के मसले पर रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के निर्णय पर गवर्नर के वीटो का अधिकार वापस लेने का प्रस्ताव किया है। यह प्रस्ताव अमल में आने पर रघुराम राजन के अधिकार कम हो सकते हैं।
वित्त मंत्रालय ने भारतीय वित्तीय संहिता [आईएफसी] का संशोधित मसौदा जारी किया है। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि शक्शिाली समिति में सरकार के चार प्रतिनिधि होंगे और दूसरी तरफ केंद्रीय बैंक के ‘चेयरपर्सन’ समेत केवल तीन लोग होंगे। मौद्रिक नीति समिति के प्रस्ताव संहिता के मसौदे में रिजर्व बैंक के चेयरपर्सन का उल्लेख है न कि गवर्नर का। फिलहाल रिजर्व बैंक के प्रमुख गवर्नर हैं। वित्तीय क्षेत्र में बडे़ सुधारों के इरादे से लाए जा रहे आइएफसी में मौद्रिक नीति समिति का प्रस्ताव किया गया है, जिसके पास प्रमुख नीतिगत दर के बारे में निर्णय का अधिकार होगा और खुदरा कीमतों पर आधारित महंगाई दर पर उसकी नजर होगी। महंगाई का वाषिर्क लक्ष्य सरकार हर तीन साल में रिजर्व बैंक की सलाह से तय करेगी।
मसौदे में कहा गया है, ‘हर वित्त वर्ष के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक [सीपीआइ] के संदर्भ में रिजर्व बैंक की सलाह के आधार पर केंद्र सरकार महंगाई का सालाना लक्ष्य तय करेगी। यह प्रक्रिया तीन-तीन साल में दोहराई जाएगी। इस मसौदे पर 8 अगस्त तक लोगों से राय मांगी गई है। प्रस्तावित समिति में सरकार के चार प्रतिनिधि होंगे, जबकि रिजर्व बैंक के केवल तीन। ऐसे में किसी मसले पर विवाद होने पर यदि बहुमत से फैसला किया जाता है तो सरकार का पक्ष मजबूत होगा।
इसलिए नीतिगत ब्याज दरें तय करने का अंतिम अधिकार रिजर्व बैंक के गवर्नर से वापस लेने का अर्थ होगा केंद्रीय बैंक की स्वायतत्ता कम करना। यदि आज तक भारतीय बैंकिंग सिस्टम कभी विफल नहीं हुआ है, तो इसकी सबसे बडी़ वजह यही है कि रिजर्व बैंक अपने हिसाब से काम करने के आजाद है।

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