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राजनीति में आने से डरती हैं 90 फीसद महिलाएं

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महिलाओं के बराबरी की बातें भले जितनी होती हों, लेकिन वास्तव में अब भी राजनीति में उनकी राह बेहद मुश्किल है। संयुक्त राष्ट्र महिला [यूएन वूमेन] की ओर से किए गए ताजा अध्ययन के मुताबिक आज भी भारत में 90 फीसद महिलाएं चाहकर भी राजनीति में इसलिए नहीं आतीं, क्योंकि उन्हें शारीरिक और मानसिक हिंसा का डर होता है। भारत में दलित तबके से आने वाली महिलाएं, युवा महिलाएं और पहली बार राजनीति में आ रही महिलाओं को राजनीतिक दलों में सबसे ज्यादा निशाना बनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र महिला की भारत प्रतिनिधि रेबेका टैवरेस ने बुधवार को बताया कि भारत में महिलाओं की बराबरी सुनिश्चित करने के लिए कानूनों की कमी नहीं है। इसके बावजूद राजनीति में आने वाली महिलाओं को विभिन्न तरीके की शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। ऐसे अधिकांश मामलों में महिलाएं अपनी ही पार्टी के नेताओं का शिकार होती हैं। पिछले दस साल के दौरान राजनीति में महिलाओं की स्थिति को लेकर हुए इस अध्ययन में पाया गया कि इस दौरान राजनीतिक दलों की टिकट पर चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या तो बढ़ी हैं, लेकिन उनका प्रतिनिधित्व घटा है। पार्टियां ज्यादातर ऐसी सीटों पर उन्हें टिकट देती हैं, जहां उन्हें जीतने की उम्मीद नहीं होती। रेबेका के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र महिलाओं को बराबरी का हक दिलवाने के लिए संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण जैसे विशेष कदमों का पुरजोर समर्थन करता है। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को रोके रखने की कोशिश को इस तरीके से ही चुनौती दी जा सकती है।
‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ के लिए यह अध्ययन करने वाले ‘सेंटर फॉर सोशल रिसर्च’ की प्रमुख रंजना कुमारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और दिल्ली में हुए इस अध्ययन में साफ हुआ है कि महिलाओं को राजनीति से दूर रखने के लिए अक्सर उन्हें कमतर साबित करने की कोशिश होती है। इसके बावजूद अगर वे आगे बढ़ती हैं तो उनका चरित्रहनन किया जाता है।

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