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रवि योग में दिया जाएगा सूर्य को अर्घ्य

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छठ के दिन रविवार (षष्ठी) को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और दूसरे दिन सोमवार (सप्तमी) को श्रवण नक्षत्र है। इस कारण दोनों ही दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। जो किसी भी अनुष्ठान पूजा पाठ के लिए शुभ माना जाता है। इसके साथ-साथ षष्ठी के दिन रवि योग भी बन रहा है। इस बार यह पर्व भक्तों के लिए काफी फलदायक साबित होगा।
रवि योग में दिया जाएगा भास्कर को अर्घ्य
ज्योतिषाचार्य कुमार अमित ने बताया कि इस दिन व्रती निर्जला व्रत रख सूर्य की उपासना करेंगे। पूजा के लिये बांस के बने एक नये टोकरी या सूप खरीद कर लाते हैं और उसमें पूजा के सामान, फल और घर में बनाए भोग को रख कर पूजन स्थल में रखा जाता है। पूजन स्थल में गन्ने से एक मंडप बनाकर उसके नीचे मिट्टी का एक बड़ा बर्तन, दीपक और मिट्टी का एक हाथी रखा जाता है। उसमें पूजा का सभी समान भरा जाता है।
पूजा करने के बाद शाम को एक सूप में लाल कपड़े में लिपटा हुआ एक नारियल, पांच प्रकार के फल तथा पूजा के सामान रखे जाते हैं। उसके बाद घाट जाकर पूजा अर्चना की जाती है। घाट जाने के बाद नदी या तालाब से मिट्टी निकाली जाती है और छठ माता का चौरा बनाया जाता है।
वहीं पर पूजा का सारा सामान रख कर नारियल अर्पित कर पूजन करते हैं। उसके बाद व्रती घुटनेभर पानी में खड़े होकर सूर्य देव की अराधना कर सूप लेकर परिक्रमा कर दूध या जल से अध्र्य देते हैं। दूसरे दिन सारी सामग्री दुबारा घाट ले जाया जाता है और उगते हुए सूर्य को अघ्र्य दे कर पर्व का पारण करते हैं। (कुमार अमित, ज्योतिषाचार्य)
सूर्य व्रत में माता षष्ठी की पूजा का महत्व
देव की दो पत्नी षष्ठी व छाया है। छाया के पुत्र जो शनिदेव के नाम से जाने जाते हैं। सूर्यदेव से हमेशा शत्रुता बनाकर रखने वाले शनिदेव ने षष्ठी माता से कहा हे माता, मेरी मां छाया को हमारे पिता सूर्यदेव ने त्याग दिया है। इसपर क्रोधित होकर षष्ठी ने सूर्य का त्याग कर दिया। दोनों माताओं ने घोर तपस्या की और ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया।
उसी क्षण सूर्य को बुलाकर क्रोधावस्था में भगवान ब्रह्मा ने आदेश दिया, हे सूर्य यथाशीघ्र षष्ठी व छाया को अपना लो, नहीं तो शौर्य नष्ठ कर दूंगा। उसी क्षण भगवान सूर्य षष्ठी व छाया के पास गए। ब्रह्मा के कोप से भयभीत होकर छाया व षष्ठी को अपनाया। उसके बाद षष्ठी व छाया को आशीर्वाद दिया कि हे षष्ठी व हे छाया संसार में तुम्मारे नाम से जाना जाउंगा।
तुम्हारी उपासना करने से मेरा ही पूजन का प्रतीक माना जाएगा। उस समय से भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मावर्तेक पुराण में स्पष्ट रूप से कहा है कि छाया पुत्र-छाया पुत्र शनैश्चैव सूर्य पुत्र भयावह। तै माता भवैत शौख्यम षष्ठी सुख मवातपुनुयात। अर्थात उस काल से षष्ठी का व्रत सूर्य के निमित किया जाता है और उनको माता के नाम से पुकारा जाता है।
महाभारतकाल में भी द्रौपदी ने अपने सुख व ऐश्वर्य तथा पुत्र के दीर्घायू के लिए इस व्रत को किया था। माता देवहूति ने अपने पुत्रों की रक्षा के लिए इस व्रत को किया था। उस अनादि काल से ही भगवान सूर्य की पूजा षष्ठी व्रत के नाम से जाता है। (रमेश चंद्र त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य)

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