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यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का जलवा अब भी कायम

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यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का जलवा अब भी कायम है. स्थानीय निकाय चुनाव के रूप में पहले इम्तिहान में उन्हें अच्छे अंक हासिल हुए हैं. उम्मीद की जा रही थी कि स्थानीय निकाय चुनावों में सपा के अखिलेश यादव वापसी करेंगे. लेकिन ऐसा हो न सका और आश्चर्य जनक रूप से हाथी ने फिर से वापसी कर ली. गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान अपने हिंदूविरोधी छवि को मिटाने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष मंदिरों का दौरा कर रहे हैं. ऐसे वक्त में यह नतीजे कांग्रेस के मनोबल को कमजोर कर सकती है.
योगी आदित्यनाथ हुए मजबूत
योगी आदित्यनाथ मजबूत हुए हैं. उनकी छवि मेहनत करने वाले मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित हो रही है. वहीं अखिलेश यादव धीरे – धीरे लोगों की स्मृति से जा रहे हैं. यह किसी भी विपक्षी पार्टी के लिए अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती है. स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा की जीत ने साबित कर दिया कि विपक्ष ने विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार से कोई सबक नहीं सीख पाये. कांग्रेस की गढ़ माने जाने वाली अमेठी में कांग्रेस की चमक फीकी पड़ गयी. यूपी स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों का असर गुजरात चुनावों में भी दिख सकते हैं. अमित शाह ने संगठन को काफी मजबूत कर दिया है. गली – कूचों तक के चुनाव में बीजेपी जीत रही है. यह सिर्फ मोदी के करिश्मा से संभव नहीं है बल्कि नया वोटर वर्ग बीजेपी के साथ जुड़ी है.
हाथी ने दिखाया दम
बसपा सुप्रीमो मायावती का प्रदर्शन पहले से काफी सुधरा है. नतीजे तो यह भी बताते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश की है. बहुजन समाज पार्टी की छवि जमीन में काम करने वाली पार्टी के रूप में हुई. अखिलेश के लिए ये नतीजे इसलिए भी निराशाजनक हैं क्योंकि वह युवा हैं और विधानसभा चुनावों में उन्हें योगी के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता था. नतीजे तो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि अखिलेश ने पार्टी के सांगठनिक ढांचा में कोई बदलाव नहीं किया है. संभव है कि अखिलेश यादव योगी सरकार के अलोकप्रिय होने का इंतजार कर रहे हों.
कांग्रेस में क्षत्रपों की कमी
कांग्रेस पार्टी में क्षेत्रीय नेताओं की कमी दिख रही है. जिन राज्यों में मजबूत क्षेत्रीय नेता हैं वहां कांग्रेस की स्थिति मजबूत है. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की जीत ने साबित कर दिया कि कांग्रेस अब गांधी परिवार के भरोसे बढ़ नहीं सकता है. राहुल गांधी थोड़ी देर दम भरते हैं और फिर लंबे समय के ब्रेक पर चले जाते हैं. विशेषज्ञों की मानें तो उनमें वह स्पार्क की कमी है जो मोदी और अमित शाह की जोड़ी को टक्कर दे सके. एक सीमा के बाद वह मोदी से लड़ाई कर सकते हैं लेकिन उसके आगे वह मुकाबला नहीं कर पाते हैं.

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