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मांझी को लालू का सहारा

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मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के विश्वास मत के बहाने दो धुर विरोधी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार करीब आते दिख रहे हैं। राजद ने शुक्रवार को विधानसभा में जीतनराम सरकार द्वारा पेश किए जाने वाले विश्वास मत प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने की बात कही है। हालांकि जदयू ने साफ किया है कि इसका कोई और मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए। हमने राजद से समर्थन मांगा नहीं था। हमारा पहले से पूर्ण बहुमत है। राजद ने भी इसे निकटता नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष एका की शुरूआत के रूप में परिभाषित किया है। इधर, भाजपा तथा उसकी सहयोगी पार्टियों ने जदयू और राजद पर हमले तेज कर दिए हैं। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने सत्ता बचाने के लिए लालू के साथ नापाक गठबंधन किया है। उनकी पोल खुल गई।
विश्वास मत के लिए शुक्रवार को विधानसभा की बैठक पूर्वाह्न ग्यारह बजे बुलाई गई है। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी विश्वास मत पेश करेंगे। उनको इसे हासिल करने में कोई परेशानी नहीं है। समीकरण कुछ इस तरह बना है कि सरकार को विश्वास मत मिलने की गारंटी हो गई है। राजद का घोषित समर्थन मिल जाने के बाद सरकार की स्थिति और मजबूत हो गई है। भाजपा के चार विधायक नित्यानंद राय, सतीशचंद्र दूबे, जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और अश्रि्वनी कुमार चौबे लोकसभा के लिए चुन लिए गए हैं। इन लोगों ने अभी संसद की सदस्यता नहीं ली है। लिहाजा ये सब शुक्रवार के मतदान में शामिल हो सकते हैं। भाजपा ने इस सबको पटना बुला लिया है। इधर जदयू ने जिन चार महिला विधायकों को चुनाव के दौरान पार्टी से निलंबित किया था, वह सब भी मजबूरी में सरकार के पक्ष में मतदान कर सकती हैं। इसलिए कि जदयू की ओर से पक्ष में मतदान के लिए व्हीप जारी किया गया है। वैसे, जदयू ने इन सबके प्रति नरम रूख रखने का संकेत दिया है। पूर्व मंत्री रेणु कुशवाहा भी सदन की बैठक में शामिल होने के लिए नई दिल्ली से पटना आ गई हैं। विश्वास मत हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल का विस्तार भी करेंगे। उनके मंत्रियों की संख्या 17 से बढ़कर 35 तक जा सकती है।
इधर, राजद विधायक दल के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा कि हमारा समर्थन जदयू सरकार के अस्तित्व के लिए निर्णायक साबित नहीं होगा, लेकिन हमारी पार्टी सामाजिक न्याय का समर्थन करती रही है। चूंकि मुख्यमंत्री के एक दलित समुदाय में सबसे कमजोर तबके से हैं, इसलिए हमने यह निर्णय लिया। फिर जिस तरह से साप्रदायिक शक्तिया एकजुट हुईं हैं, वैसे ही धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को भी एक होना होगा, अन्यथा देश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होंगे। हमारे इस फैसले को इस तरह से नहीं देखा जाना चाहिए कि लालू और नीतीश एक साथ आ गए हैं, बल्कि इसे इस तरह से देखना चाहिए कि धर्मनिरपेक्ष शक्तिया एक होंगी। हमारा समर्थन भाजपा और आरएसएस शक्तियों को भी पराजित करेगा। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह समर्थन अभी के लिए है और भविष्य में हम गुण-दोष के आधार पर इस बारे में निर्णय लेंगे।

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