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बौद्ध धर्म बिहार की भूमि से पूरी दुनिया में फैला

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बौद्ध धर्म बिहार की भूमि से पूरी दुनिया में फैला है. आज चीन जापान, तिब्बत, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार, साउथ कोरिया, कंबोडिया, थाइलैंड, मंगोलिया, मलेशिया, वियतनाम जैसे 12 देश हैं, जहां बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं.
एक जमाने में भारत के अलग-अलग कोने से बौद्ध भिक्षु और संन्यासी इन देशों में गये और उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया, मगर इन देशों में किन संन्यासियों की वजह से बौद्ध धर्म फैला और कैसे फैला, इसकी जानकारी बहुत कम है.
इस बार बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर हम दुनिया के 12 बड़े बौद्ध मुल्कों में बौद्ध धर्म के प्रसार की कहानी लेकर आये हैं. साथ ही उन बौद्ध संन्यासियों का परिचय भी, जिन्होंने इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. प्रस्तुत है पुष्पमित्र की िरपोर्ट
तिब्बत
तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार सातवीं से नौवीं सदी के बीच हुआ. वहां के एक राजा सोंगत्सेन गोम्पो की शादी एक चीन की राजकुमारी और एक नेपाल की राजकुमारी से हुई थी. दोनों बौद्ध धर्म की उपासक थी.
कहते हैं इन्हीं दोनों के प्रभाव में राजा ने सातवीं सदी के पूर्वार्ध में बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद कराया था. हालांकि तब बौद्ध धर्म के प्रति तिब्बती लोगों में इतनी अभिरुचि नहीं थी. आठवीं सदी में वहां के राजा त्रिसोंग देत्सेन ने भारत से बौद्ध संन्यासियों को बुलवाया. वहां शुरुआती संन्यासी थे पद्मसंभव और संतरक्षित जिन्होंने न्यिंगमा की स्थापना की. जो तिब्बत के बौद्ध धर्म की सबसे पुरानी शाखा है.
फिर पाल वंश से भी कई संन्यासी तिब्बत भेजे गये. बाद में कश्मीर से भी बौद्ध भिक्खु वहां गये और वहां के बौद्ध धर्म पर प्रभाव डाला. 1042 में विक्रमशिला विवि से आतिश दीपांकर तिब्बत गये और वहां काफी प्रतिष्ठा मिली.
भूटान
भूटान में बौद्ध धर्म तिब्बत से आया है. हालांकि तिब्बत और भूटान की बौद्ध धर्म की परंपराओं में थोड़ा फर्क है. मगर यहां बौद्ध धर्म की जड़ें काफी मजबूत हैं. यहां के बौद्ध मुख्यतः बज्रयान शाखा के उपासक हैं. यहां की तीन चौथाई आबादी बौद्ध है, शेष एक चौथाई हिंदू. पूरे भूटान में पांच हजार से अधिक बौद्ध मठ फैले हुए हैं.
चीन
चीन में 65 ईस्वी में कश्यप मातंग और धर्मरत्न नामक संन्यासी सफेद घोड़ों पर बौद्ध धर्म ग्रंथों को ढोकर चीन ले गये थे. कहते हैं कि उस वक्त चीन में हान वंश का शासन था.
उसके राजा मिंग ने एक सपना देखा कि एक ईश्वर जो सूर्य की रोशनी से चमक रहा है और हवा में उड़ रहा है, उसके महल के आसपास उड़ता नजर आ रहा है. उसने अपने दरबारियों से पूछा तो दरबारियों ने बताया कि ऐसा एक ईश्वर भारत में हुआ है. फिर मिंग ने अपने दूतों को भारत भेजा. वे दूत इन दोनों भिक्खुओं को और बौद्ध धर्म की पुस्तकों को सफेद घोड़ों पर लेकर लौटे.
जब भारत में कुषाणों का शासन था, तब वहां बौद्ध धर्म इसके अलावा पांचवीं सदी में चीन में चान संप्रदाय की शुरुआत हुई जिसके सबसे बड़े गुरु बोधिधर्म थे. उन्हें पहला चाइनीज पेट्रियार्क भी माना जाता है. बाद में ह्वेनसांग भारत आये, उन्होंने नालंदा विवि में अध्ययन किया और अपने साथ संस्कृत के कई महत्वपूर्ण ग्रंथ ले गये.
कोरिया
कोरियाई देशों में बौद्ध धर्म 372 ईस्वी में चीन से पहुंचा. शुरुआत में वहां बौद्ध धर्म का प्रसार बहुत तेजी से हुआ, मगर मध्य युग में एक ऐसा वक्त आया जब वहां बौद्ध धर्म को सरकार की तरफ से प्रतिबंधित कर दिया गया.
तब बौद्ध भिक्षुओं ने वहां पहाड़ी इलाकों में शरण ले ली और वहां मंदिर बनवाये. बाद के दिनों में वहां बौद्ध धर्म फिर से प्रतिष्ठित हो गया और आज वहां चीनी भाषा में लिखित त्रिपिटक को 81,258 लकड़ी के बक्सों में सुरक्षित रखा गया है.
दक्षिणी कोरिया की 22 फीसदी आबादी आज बौद्ध धर्म को मानती है. उत्तर कोरिया में भी 13.5 फीसदी आबादी बौद्ध है. कोरिया में बौद्ध धर्म की शमनिज्म शाखा विकसित हुई है.
जापान
जापान में बौद्ध धर्म कोरिया के रास्ते से फैला, जब कोरिया की तरफ से एक तोहफे के रूप में जापान को बुद्ध की मूर्ति और बौद्ध ग्रंथ दिये गये. यह 538 ईस्वी की बात है.
उस वक्त जापान में इस बात को लेकर काफी बहस हुई कि क्या किसी विदेशी धर्म को अपने देश में जगह दी जा सकती है. मगर वहां के सोगा वंश ने बौद्ध धर्म का समर्थन किया और चालीस साल के अंदर वहां बौद्ध धर्म को राजधर्म मान लिया गया.
हालांकि एक जानकारी यह भी मिलती है कि 467 ईस्वी में गांधार से पांच बौद्ध भिक्खु जापान गये थे. आज जापान की 36 फीसदी से अधिक आबादी बौद्ध धर्म को मानती है. 75 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में इस धर्म का पालन करती है. वहां बौद्ध धर्म के छह संप्रदाय हैं.
मलेशिया
जहां दूसरे मुल्कों में बौद्ध धर्म का प्रसार भिक्षुओं ने किया, मलेशिया में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार का श्रेय भारतीय नाविकों और व्यापारियों को जाता है. वे द्वीपों के इस समूह से होकर जब गुजरते थे तो यहां रुकते थे. उनके प्रभाव में वहां हिंदू धर्म और महायान बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ.
इन दोनों धर्म को मानने वाले कई लोग हो गये. लेकिन जब ग्यारहवीं सदी में एक चोल राजा ने मलेशिया पर आक्रमण कर दिया तो मलेशिया के राजाओं ने नाराज होकर वहां भारतीय धर्मों को प्रतिबंधित कर दिया और खुद इस्लाम का उपासक बन गया. मगर आज भी वहां 20 फीसदी के करीब आबादी बौद्ध है.
श्रीलंका
श्रीलंका उन शुरुआती मुल्कों में है, जहां सबसे पहले बौद्ध धर्म फैला. बौद्ध धर्म की तृतीय संगति के बाद सम्राट अशोक के पुत्र अरिहंत महिंद और पुत्री संघमित्रा बौद्ध धर्म का संदेश लेकर श्रीलंका गये थे, वे अपने साथ बोधि वृक्ष की शाखा भी लेकर गये थे.
उन्होंने श्रीलंका के उस वक्त के राजा देवनामपिय तिस्स को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था और कुछ मंदिरों का निर्माण कराया था. इनमें से इसुरुमुनिया और वेस्सागिरिया आज भी मौजूद है. इसके बाद पांचवी सदी में बुद्धघोष नामक बौद्ध भिक्षु भी श्रीलंका गये और वहां बौद्ध धर्म के प्रसार में उनकी बड़ी भूमिका रही.
वे वहीं अनुराधापुरम में बस गये. उन्होंने वहां कई पालि ग्रंथों की रचना की. आज श्रीलंका की 70 फीसदी से अधिक आबादी बौद्ध है. बोधगया आने वाले श्रद्धालुओं में श्रीलंकाई श्रद्धालुओं की संख्या काफी अधिक होती है. यहां तक कि 18वीं सदी में बोधगया की महत्ता को फिर से स्थापित करने में श्रीलंकाई बौद्ध अनागरिक धर्मपाल की बड़ी भूमिका रही है.
म्यांमर
म्यांमर में 87 फीसदी से अधिक लोग बौद्ध धर्म के थेरवाद को मानते हैं. यहां भी बौद्ध धर्म का प्रसार सम्राट अशोक के वक्त में ही हुआ. कहा जाता है कि 228 ईसा पूर्व में अशोक ने यहां बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए सोना और उत्तरा नामक बौद्ध भिक्षुओं को भेजा था. हालांकि म्यांमार के लोगों का मानना है कि बुद्ध खुद अपने जीवन काल में म्यांमार आये थे. लेकिन इतिहासकार इस मान्यता का विरोध करते हैं.
लोगों की यह भी धारणा है कि बुद्धघोष भी म्यांमार के ही रहने वाले थे. लेकिन इसकी भी पुष्टि नहीं होती. म्यांमार में बुद्ध के तीन केशों को व्यापारी लेकर गये थे, उसके आधार पर वहां मंदिर बने ऐसा कहा जाता है. म्यांमार वासियों की बोधगया के महाबोधि मंदिर के प्रति बड़ी श्रद्धा है.
कंबोडिया
कंबोडिया के तकरीबन 97 फीसदी लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. हालांकि वहां दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर भी अंकोरवाट में स्थित है. वहां लोग थेरवाद के मानने वाले हैं. ऐसा कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए वहां भिक्षुओं को भेजा था.
प्राचीन काल में कंबोडिया में हिंदू धर्म का बाहुल्य था और वहां के राजा भी हिंदू धर्म को मानने वाले थे, हालांकि वहां बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग भी थे. पांचवी और छठी शताब्दी के दौरान यहां से दो बौद्ध चीन गये और मंद्रसेना और संघबारा नामक इन संतों ने वहां के बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषा से संस्कृत में अनुवाद किया. 13वीं सदी से वहां हिंदू धर्म का पतन और बौद्ध धर्म का उत्थान शुरू हो गया.
मंगोलिया
मंगोलिया में बौद्ध धर्म तिब्बत से फैला. इसका प्रसार वहां तेरहवीं शताब्दी में हुआ जब वहां युआन वंश का शासन था. वहां का बौद्ध धर्म काफी हद तक तिब्बती बौद्ध धर्म जैसा ही है. मगर इसमें थोड़ा सा फर्क है जो मंगोलियाई बौद्ध धर्म को अलग पहचान देता है. आज वहां की 55 फीसदी से अधिक आबादी बौद्ध धर्म को मानती है.
थाइलैंड
थाइलैंड के बौद्ध थेरवाद के उपासक हैं. हालांकि कहा जाता है कि पहले यहां लोग महायान को मानने वाले थे. अशोक के वक्त में यहां भी बौद्ध प्रचारक भेजे गये थे, मगर भारत में बौद्ध धर्म के पतन के बाद सिंहली बौद्धों ने यहां प्रचार-प्रसार शुरू किया और यहां थेरवाद प्रमुख धर्म बन गया. आज यहां की 93 फीसदी से अधिक आबादी बौद्ध उपासक है.
वियतनाम
वियतनाम में भी बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार भारतीय नौ-व्यापारियों के माध्यम से ही हुआ. हालांकि यह भी कहा जाता है कि अशोक के काल में कुछ बौद्ध भिक्षु यहां भी धम्म के प्रचार के लिए भेजे गये थे. वहां बड़े पैमाने पर महायान सूत्र और अगम का अनुवाद चीनी भाषा में हुआ. चीन से लगातार संपर्क की वजह से वहां भी बौद्ध धर्म उसी रूप में विकसित होता रहा. वहां आज 16.4 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म को मानने वाली है.
इन्होंने धम्म को फैलाया
सम्राट अशोक की दोनों संतान महिंद्र और संघमित्रा का योगदान श्रीलंका में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में रहा है. इन दोनों की माता युवावस्था में ही बौद्ध भिक्षुणी बन गयी थीं.
संघमित्रा की वजह से वहां शुरुआत में ही भिक्षुणयों का भी संप्रदाय विकसित हुआ.कुमारजीव कश्मीर के इलाके के रहने वाले थे. उनकी विद्वता की इतनी प्रतिष्ठा थी कि चीनी सेना उन्हें हासिल करने के लिए भारत आयी, हमला करके गिरफ्तार किया.
बाद में कुमारजीव को चीन का राष्ट्रगुरु बनाया गया. चीनी सेना उन्हें अपने साथ ले गयी. बोधि धर्म ने बौद्ध भिक्षुओं लिए चीन में शाउलिंग मठ की शुरुआत की थी. जहां भिक्खुओं को शाउलिंग-कुंगफू सिखाया जाता था. इस तरह के कुंगफू के भी जनक माने जाते हैं.
वे दक्षिण भारत से चीन गये थे. जापान में इन्हें दरुमा कहकर बुलाया जाता है. तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार में सबसे बड़ी भूमिका पद्मसंभव की रही है. वे आठवीं सदी में तिब्बत पहुंचे थे. उन्हें वहां रिन-पो-चे कह कर बुलाया जाता है. वे भारत के ओड़िशा प्रांत के रहने वाले थे.
उन्हें तिब्बत, नेपाल, भूटान आदि इलाकों में द्वितीय बुद्ध के रूप में प्रतिष्ठा मिली हुई है.
वर्तमान भागलपुर के इलाके के वाशिंदा अतिश दीपांकर का ग्यारहवीं सदी में बौद्ध धर्म के प्रसार में बड़ा योगदान माना जाता है. उन्होंने तिब्बत से लेकर सुमात्रा तक की यात्रा की थी .उन्होंने मलय द्वीप श्रीविजय में 12 साल तक प्रवास किया. फिर भारत लौट आये.
बंगाल के चिटगांव के इलाके के रहने वाले तिलोपा और उनके शिष्य नरोपा की भी बौद्ध धर्म के प्रसार में बड़ी भूमिका रही है. उन्होंने इस धर्म को स्थापित करने में बड़ा योगदान दिया.ग्यारहवीं सदी में इन दोनों गुरु शिष्यों ने नेपाल और तिब्बत के इलाके में बज्रयान का प्रचार किया था.बुद्धघोष पांचवीं सदी के बौद्ध संन्यासी थे. वे थेरवाद मत के बड़े विद्वान थे. विसुद्धमग्ग उनकी सबसे बेहतरीन कृति मानी जाती है, जिसमें उन्होंने शुद्धता के मार्ग को पारिभाषित किया था.
श्रीलंका में थेरवाद के प्रसार में उनकी बड़ी भूमिका मानी जाती है. ह्वेन सांग बौद्ध प्रचारक नहीं थे. वे एक चीनी यात्री थे जो सातवीं सदी में भारत आये थे. नालंदा विवि में रहकर उन्होंने अध्ययन किया और वापसी में बड़ी संख्या में भारतीय ग्रंथ ले गये.
भारतीय बौद्ध संप्रदाय और चीनी बौद्ध संप्रदाय एक दूसरे के नजदीक लाने में उनका अहम योदगान रहा.
श्रीलंकाई बौद्ध भिक्षु अनागरिक धर्मपाल की भूमिका 19वीं और बीसवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के पुनरुद्धार की रही है. वे उन्नीसवीं सदी के आखिर में बोधगया आये थे. धर्मपाल ने बौद्ध धर्म में भारत की केंद्रीय भूमिका को पुनर्स्थापित किया.

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