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बेहतर समन्वय के लिए 17 को जोड़कर बनाए गए 7 मंत्रालय

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नई सरकार में कई मंत्रालयों को नए सिरे से पुनर्गठित करने की चर्चाएं थी और यह भी कहा जा रहा था कि कुछ सुपर मंत्रालय बनाए जा सकते हैं। ऐसा तो कुछ खास नहीं हुआ लेकिन मंत्रिमंडल का आकार छोटा रखते हुए बेहतर समन्वय के लिए 17 मंत्रालयों को जोड़कर सात मंत्रालय बनाए गए हैं। हालांकि यह मंत्रालयों का पुनर्गठन या विलय नहीं है। जलवायु परिवर्तन, कौशल विकास, गंगा पुनरुद्धार जैसे नए महकमे शुरू किए गए हैं।
मंगलवार को राष्ट्रपति भवन ने मोदी मंत्रिमंडल के विभागों की सूची जारी की है। इसमें जो मंत्रालय एक साथ लाए गए हैं उनमें शहरी आवास-विकास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय है। पिछली सरकार में इसके दो कैबिनेट मंत्री थे। इस बार दोनों एक ही मंत्री वैंकेया नायडू के पास रहेंगे।
कारपोरेट मामले के मंत्रालय को वित्त के साथ रखा गया है। जबकि प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय को विदेश मंत्रालय के साथ रखा गया है। बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सड़क परिवहन एवं जहाजरानी मंत्रालयों को भी संयुक्त किया गया है और नितिन गडकरी को इसका जिम्मा दिया गया है। अब तक दोनों महकमों के अलग-अलग मंत्री होते आए हैं। जबकि ऊर्जा, कोयला एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालयों को एक किया गया है और पीयूष गोयल को इसका स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है। पिछली सरकार में इन तीन मंत्रालयों के तीन कैबिनेट मंत्री थे। ग्रामीण विकास के तीन मंत्रालयों को फिर से एक मंत्री के अधीन लाया गया है। इनमें ग्रामीण विकास, पंचायती राज एवं पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय शामिल हैं। पहले ये महकमे एक ही मंत्रालय के अधीन होते थे लेकिन यूपीए सरकार में इन्हें तीन हिस्सों में बांट दिया गया था।
इस प्रकार खान एवं इस्पात मंत्रालयों को भी मिला दिया गया है। नरेंद्र सिंह तोमर को इनका मंत्री बनाया गया है। योजना एवं सांख्यिकी मंत्रालयों, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय को भी एक साथ किया गया है जबकि पहले ये अलग-अलग हुआ करते थे।
कई मंत्रालयों को एक साथ लाने से सरकारी कामकाज में तेजी लाने और बेहतर समन्वय में तो मदद मिलने के साथ ही इससे सरकारी खजाने पर बोझ भी कम होगा। मोदी के मंत्रिमंडल के आकार में करीब 45 फीसदी की कटौती हुई है इसलिए इस खर्च में भी करीब 45 फीसदी तक की कमी आएगी। वर्ष 2009 में यूपीए-2 की सरकार के 77 मंत्रियों के साथ शपथ ग्रहण की तुलना में मोदी के मंत्रिमंडल में महज 45 मंत्री ही हैं।
दरअसल, मोदी के मंत्रिमंडल में 23 कैबिनेट, दस राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार और 12 राज्य मंत्री हैं। जबकि यूपीए-2 में 32 कैबिनेट, 7 स्वतंत्र प्रभार और 38 राज्यमंत्री शामिल थे। बाद में कई बार हुए फेरबदल में मंत्रियों की संख्या घटती-बढ़ती रही है। 2004 के यूपीए-1 में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने 31 कैबिनेट, 8 स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्रियों तथा 40 राज्यमंत्रियों के साथ शपथ ली थी। अनुमान के हिसाब से प्रधानमंत्री समेत केंद्रीय मंत्रिमंडल पर करीब आठ सौ करोड़ रुपये सालाना खर्च होते हैं। इनमें टूर, वेतन भत्ते एवं स्वागत सत्कार का फंड शामिल है। एक कैबिनेट मंत्री को 15 लोगों का निजी स्टाफ और स्वतंत्र प्रभार को 14 और राज्यमंत्रियों को 13 लोगों का स्टाफ हासिल है। इस प्रकार एक मंत्री के स्टाफ पर कम से कम दस लाख रुपये महीने का खर्च है। मंत्री के भव्य कार्यालय, आवास, वाहनों आदि का खर्च भी जोड़ दिया जाए तो कम से कम दस लाख रुपये महीने और बैठता है। इस प्रकार एक मंत्री से प्रति माह केंद्र को प्रत्यक्ष 20 लाख और साल में 2.40 करोड़ रुपये की सीधी बचत होगी।
केंद्र सरकार में कुल 51 मंत्रालय या स्वतंत्र विभाग हैं। एक संसदीय समिति ने इनमें से कई को गैरजरूरी बताते हुए 38 तक सीमित करने की सिफारिश की थी। गठबंधन सरकारों का दौर शुरू होने के कारण केंद्रीय मंत्रिमंडल का आकार बढ़ता गया। वर्ना पहले मंत्रिमंडल का आकार सीमित होता था। मसलन, नरसिंह राव कैबिनेट में 44 मंत्री थे जिनमें 12 कैबिनेट 8 स्वतंत्र प्रभार तथा 24 राज्यमंत्री थे।
स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्रियों की मंत्रिमंडल में पौबारह हो गई है। वे अपने एक महकमे के स्वतंत्र रूप से मंत्री तो रहेंगे ही, उन्हें एक-दो अन्य मामलों के राज्यमंत्री की भी जिम्मेदारी सौंप दी गई है। जनरल वीके सिंह पूवरेत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के मंत्री रहेंगे। लेकिन वह विदेश एवं समुद्रपारीय मंत्रालयों के राज्यमंत्री भी रहेंगे। राव इंद्रजीत के पास योजना एवं सांख्यिकी महकमों का स्वतंत्र प्रभार रहेगा। वह रक्षा महकमे के राज्यमंत्री भी रहेंगे। संतोष गंगवार वस्त्र महकमे के स्वतंत्र प्रभार के मंत्री रहेंगे। लेकिन वह संसदीय कार्य और जल संसाधन महकमों के राज्यमंत्री का प्रभार भी पा गए हैं।

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