![](http://khabrainaaptak.com/wp-content/uploads/2019/07/02_07_2019-jasprit_bumrah_team_india_win_19363580_215757416-53x53.jpg)
![](http://khabrainaaptak.com/wp-content/uploads/2016/12/510-658x360-207x191.jpg)
बीमार बकरी की पहचान एवं उपचार
कृषि / पर्यावरण December 9, 2016सामान्य/निरोगी बकरी तथा बीमार बकरियों की तुलना निम्नलिखित सारणी में की गई हैं उसे ध्यान में रखकर तुरंत दवा का इंतजाम करें। इस प्रकार उपरोक्त लिखित लक्षणों में से कोई लक्षण दिखाई दे तो पशुओं का इलाज करने वाले डाक्टर को बुलाकर बकरी की जांच पड़ताल करवायें और समुचित दवा दें। बकरियों में होने वाले कुछ प्रमुख बीमारियों के लक्षण तथा उपाय के विषय में निम्नलिखित जानकारी जेहन में रखकर कार्यवाही करें।
फड़किया रोग- इस रोग से ग्रसित बकरियां अचानक सुस्त तथा कमजोर हो जाती हैं। उनका पेट फूल जाता हैं। और वे बेचैन होकर उनके शरीर में कंपन होते हैं वह फड़कने लगती है अत: इस रोग का नाम फड़किया रखा गया हैं। उन्हें बुखार होता हैं तथा उनको पेटदर्द होने से वह पैर पटकती रहती हैं। धीरे-धीरे वह सुस्त होकर उसकी मृत्यु हो जाती हैं। यह रोग इतनी तेजी से फैलता हैं कि इलाज के लिए वक्त नहीं मिलता और कई बकरियों की मृत्यु हो जाती हैं। टीकाकरण करना यही इस रोग का इलाज हैं।
जॉनस, रोग– इसे पॅराखुबरक्युलोसीस भी कहते हैं। यह रोग प्राय: वयस्क बकरियों में होता हैं। इस रोग के विशेष लक्षण यह हंै कि बकरियां दिन-प्रतिदिन दुर्बल होने लगती हैं। इस दौरान उन्हें कभी दस्त लगते हैं तो कभी कब्जी होती हैं। पर्याप्त मात्रा में अच्छा पोषण मिलने के बावजूद दिन-प्रतिदिन कमजोर होती चली जाती हैं और एक दिन मर जाती हैं।
इलाज- इस रोग-विरोधी जीवित टीका जिसमें जॉनस जीवाणु के गैर रोग उत्पादित प्रकार अॅडब्जूवंट के साथ होता हैं विकसित किया गया हैं। अगर यह टीका लगवाया तो इस रोग के खिलाफ प्रतिरोधक शक्ति विकसित होकर इस रोग का प्रकोप कम हो जाता हैं। मेमनों को भी यह टीका चमड़ी के नीचे लगवाया जा सकता हैं।
गलघोंटू रोग- यह रोग पाश्चुरेल्ला मल्टोसिडा नामक जीवाणु के संक्रमण से होता हैं। यह जून से अक्टूबर और कभी दिसंबर-जनवरी में अचानक बरसात होने पर भी हो सकता हैं। शरीर में बुखार, आंख-नाक से पानी बहना, चारा पानी छोड़ देना सुस्त होना आदि प्रारंभिक लक्षण होते हैं। आंखें लाल होना, सांसों की गति बढऩा ज्यादा लार टपकना, जीभ लाल होकर बाहर आना, छह से आठ घंटों के पश्चात गले तथा गर्दन के नीचे सूजन आना, जिससे बकरी को सांस लेने में दिक्कत पेश आती हैं और घर्र-घर्र आवाज आती हैं। उसे पेचिश भी हो सकता हैं तथा खून भरे दस्त भी हो सकते हैं। ज्यादा संक्रमण होने पर 12 घंटे में तथा कम होने पर 2-3 दिन में बकरी मर जाती हैं।
इलाज – रोग-विरोधी टीका लगवाना यही उपाय हैं। रोग होने के बाद इलाज मुश्किल हैं।
लंगड़ा रोग- यह रोग क्लोस्ट्रीडियम सोव्हाय नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण होता हैं। इसके बुखार से भूख कम लगना, कमजोरी लंगड़ाना आदि लक्षण होते हैं। पुट्ठे पर सूजन आती हैं जिसे दबाने पर चर-चर जैसी आवाज आती हैं।
बचाव- रोग विरोधी टीका बरसात से पहले ही बकरियों को लगवा लें।
पी.पी.आर. रोग- यह रोग विषाणुजन्य हैं। इसमें शुरू में बकरियों को 5-7 दिन बुखार होता हैं। फिर दस्त या खूनी दस्त लगते हैं। मसूढ़ों पर जीभ पर उतीयों का नाश होता हैं। होठों की बगलों पर लार दिखती हैं या लार के फुग्गे दिखाई देते हैं। आंखों से पतला स्त्राव बहता हैं या गाढ़ा बदबूदार स्त्राव भी आ सकता हैं। इससे बचाव हेतु उन्हें इस रोगविरोधी टीका लगवायें।
रीसेंट कमेंट्स