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बिहार ने विकास दर में देश के दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है-सिद्दिकी

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बिहार ने विकास दर में देश के दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। यह कोई एक साल की बात नहीं है। लगातार दस वर्षों में राज्य की औसत विकास दर 10.52 प्रतिशत रही है, जो अन्य किसी भी राज्य से अधिक है। पूंजीगत निवेश में वृद्धि के कारण राज्यकोषीय घाटा तो बढ़ा है। बावजूद यह निर्धारित सीमा तीन प्रतिशत से कम है।वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दिकी ने कहा कि बिहार जैसे राज्य में लगातार दस वर्षों तक आर्थिक सर्वे जारी करना बड़ी बात है। वह गुरुवार को राज्य का दसवां आर्थिक सर्वे विधानसभा के पटल पर रखने के बाद प्रेस से बात कर रहे थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित दूसरे अर्थशास्त्रियों ने इसकी गुणवत्ता की भी सराहना की।
वित्त मंत्री ने कहा कि 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार बिहार को केंद्र से मिलने वाले करों में लगभग 50 हजार करोड़ का घाटा होगा। अच्छी बात यह है कि राज्य में प्रति व्यक्ति आमदनी और सीडी रेशिओ काफी बढ़ा है। राज्य में छोटे-छोटे निवेश बढ़े हैं। वर्ष 2005-06 से 2014-15 के बीच कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर 6.02 प्रतिशत रही। यह विशेष महत्व की बात है, क्योंकि राज्य की 90 प्रतिशत आबादी कृषि पर ही निर्भर है।
बिजली के क्षेत्र में 2015 बिहार के लिए बड़ी उपलब्धि वाला साल रहा। देश में सबसे अधिक 40 फीसदी बिजली उपलब्धता में वृद्धि हुई। इस कारण मात्र दो वर्षों में ही बिजली की खपत 145 यूनिट से बढ़कर 203 यूनिट प्रति व्यक्ति हो गई। गांवों में 14 घंटे तो शहरी क्षेत्र में 24 घंटे तक बिजली दी जाने लगी।
हालांकि, राष्ट्रीय औसत से बिहार अब भी बिजली खपत में पीछे है। राज्य में बिजली की खपत सालाना 203 यूनिट प्रति व्यक्ति है, तो देश में 1010 यूनिट प्रति व्यक्ति। गुरुवार को बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के कुल 39 हजार 73 राजस्व गांवों में मात्र 1059 में ही अंधेरा है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के तहत 24 हजार 340 गांवों में बिजली पहुंचाने पर काम शुरू हुआ, जिसमें से 23 हजार 245 गांवों तक बिजली पहुंचाई गई। आधे-अधूरे 40 हजार 973 गांवों में से 12 हजार 291 को पूरी तरह रोशन किया गया। बिजली के क्षेत्र में सुधार के लिए तार, पोल व ट्रांसफॉर्मर बदले जा रहे हैं। जरूरत के अनुसार ग्रिड व पावर सब-स्टेशन बन रहे हैं।
मौसम के प्रतिकूल मिजाज के बावजूद पांच वर्षों में राज्य में फसलों के उत्पादन में 40 लाख टन की वृद्धि हुई है। हालांकि पिछले दो तीन वर्षों में मौसम के कारण उत्पादन में गिरावट आई वरना वृद्धि का यह आंकड़ा 60 लाख टन का होता।चावल के बंपर पैदावार ने उत्पादन में वृद्धि का आंकड़ा बढ़ाया। हालांकि राज्य के किसानों ने फूलों के उत्पादन को बढ़ाकर भी अपनी जरूरतों को पूरा करने का प्रयास किया है। केवल अनाज उत्पादन को लें तो इसमें भी पिछले पांच वर्षों में 5.65 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मौसम की मार के बावजूद किसानों ने उत्पादन बढ़ाया है। 2013 में मानसून की वर्षा में लगभग 40 % की कमी रही। बावजूद उत्पादन पर बड़ा असर नहीं पड़ा। उसके बाद भी कभी पूरी वर्षा नहीं हुई।
राज्य में हर एक लाख की आबादी पर औसतन 11 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं। राष्ट्रीय लोक स्वास्थ्य मानक के अनुसार 5 हजार आबादी पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए। एक लाख की आबादी पर 20 उप स्वास्थ्य केन्द्र होना चाहिए। पूरे बिहार की आबादी करीब 11 करोड़ है, इसलिए यहां 22 हजार उप स्वास्थ्य केन्द्र होना चाहिए जबकि बिहार में 9729 उप स्वास्थ्य केन्द्र है। बिहार में 36 जिला अस्पताल, 55 अनुमंडल व 70 रेफरल अस्पताल, 533 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, 9729 उप स्वास्थ्य केंद्र एवं 1350 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। राज्य में शिशु मृत्यु दर में काफी कमी आई है।

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