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बिहार के पहले पीएचडी नृत्य गुरु नागेंद्र मोहिनी नहीं रहे

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जीवनभर नई-नई पौध तैयार करते रहे, लेकिन जब लाइफ टाइम एचीवमेंट सम्मान लेने की घड़ी आयी तो विदा ले लिए…इतना कहकर कथक नृत्यांगना पल्लवी विश्वास सिसक पड़ीं। बिहार के पहले पीएचडी नृत्य गुरु नागेंद्र मोहिनी के निधन से हर कलाकार मर्माहत है। गुरुवार सुबह चितकोहरा स्थित आवास पर हार्ट अटैक आने से उनका निधन हो गया। वे 74 वर्ष के थे।
18 अक्टूबर को मिलना था सम्मान
बिहार कला सम्मान के लिए कलाकारों की सूची तैयार है। इस साल डॉ. नागेंद्र प्रसाद मोहिनी को बिहार सरकार की ओर 18 अक्टूबर को मुख्यमंत्री के हाथों लाइफ टाइम एचीवमेंट सम्मान मिलना था। लेकिन सम्मान लेने से पहले ही उन्होंने दुनिया से विदा ले ली। गुरुवार सुबह पांच बजे स्नान करके वे बच्चों को नृत्य की कक्षा लेने के लिए तैयार हो रहे थे। अचानक घरवालों से सीने में दर्द की शिकायत की और कुछ क्षण बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। गुरुवार शाम गुलबी घाट पर उनका अंतिम संस्कार होगा। बड़े बेटे नरेश शाश्वत मुखाग्नि देंगे। अपने पीछे दो बेटे और एक बेटी सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। इन्होंने हिन्दुस्तान पटना लाइव के लिए ‘वे दिन कॉलम भी लिखे, जो काफी चर्चा में रहा।
कुछ खास बातें नागेंद्र मोहिनी की
– इनका जन्म पाकिस्तान के गुजरावाला गांव (लाहौर) में 19 जनवरी 1942 को हुआ था।
-पटना मिलर स्कूल और पटना विवि से इन्होंने शिक्षा ली थी
-पहले आर्मी में नौकरी किए, फिर बिहार सरकार के सांख्यिकी विभाग से वीआरएस लिए, ताकि संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाएं
-ये कथक- भरतनाट्यम और लोकनृत्य के गुरु थे।
-बिहार में सबसे अधिक कलाकार तैयार करने की उपलब्धि इनके नाम
-बिहार के स्कूलों में संगीत शिक्षा को शामिल करवाने महत्वपूर्ण भूमिका थी इनकी। पहला सिलेबस इन्हीं की अगुआई में तैयार हुआ था।
-कथक नृत्य में ये बिहार के पहले पीएचडी नृत्य गुरु थे, प्रयाग संगीत समिति से इन्होंने शिक्षा ली थी।
-इन्होंने अलकनंदा और गोपीकृष्ण से कथक नृत्य सीखा।
-सी. सुब्रमण्यम जो हेमा मालिनी के भी गुरु थे, उनसे इन्होंने भरतनाट्यम सीखा।
शोक की लहर
यह बिहार के लिए बड़ा झटका है। एक बड़े नृत्य गुरु को हमने खो दिया। हम तो उनके साथ कई जूरी में रहे हैं। इतने मृदुभाषी और प्रतिभाशाली गुरु कम मिलते हैं।
– विश्व बंधु, लोकनृत्य गुरु
मुझे तो बहुत दुख हो रहा है कि वे अपने हाथ से अवार्ड भी नहीं ले पाए। बिहार में शायद ही कोई संगीत का कलाकार होगा, जो उनसे न मिला और सीखा हो।
-नीलम चौधरी, कथक नृत्यांगना
बिहार सरकार ने बहुत देर से अवार्ड की घोषणा की। शायद इसका दुख हमारे गुरु को भी था, तभी तो सम्मान लिए बगैर मुस्कुरा कर चल दिए।
– पल्लवी विश्वास, कथक नृत्यांगना
एक समय में हरि उप्पल, काशीनाथ पांडेय और डॉ. नागेंद्र मोहिनी की तिकड़ी थी। इसमें एकमात्र बचे मोहिनी जी भी चले गए। यह बहुत दुखद है।
-डॉ. बीएन विश्वकर्मा, साहित्यकार
पटना में सबसे अधिक कलाकार इन्होंने ही तैयार की है। कई स्कूल खोले। इस उम्र में भी बच्चों को सीखाते रहे। मैं तो उनके साथ तबले पर लगातार संगत करता रहा।
– सत्यप्रकाश मोती, कलाकार

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