बिचड़ा उपजाने की नायाब खोज ‘थाली तकनीक’
कृषि / पर्यावरण, ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, प्रमुख ख़बरें, बड़ी ख़बरें May 29, 2014 , by ख़बरें आप तकडॉ रघुवर साहू आपने थाली में धान की खेती के बारे में सुना है? यह बिल्कुल स्वदेशी तकनीक है. इसे आप जुगाड़ टेक्नोलॉजी भी कह सकते हैं. हमारे गांव-कसबों में ऐसे विज्ञानियों की कमी नहीं है. अगर उन्हें समय पर प्रोत्साहन और सरकारी सहायता मिले,तो वे गांवों की तकदीर बल सकते हैं. आइए, इस अंक में आपको ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान से मिलाते हैं. नाम है-दीपक कुमार चौधरी. रहने वाले हैं बांका की बहेरा पंचायत के पड़रिया गांव के. थाली में धान का बिचड़ा तैयार करने की नयी तकनीक उन्होंने ईजाद की है. वे इस विधि से खेती के कई फायदे गिनाते हैं. एक तो कम खर्च लगता है. सिंचाई के लिए किसी ब.डे संसाधन की जरूरत नहीं. छोटा छिड़काव मशीन ही काफी है. लोटा-बाल्टी से भी सिंचाई कर सकते हैं. दूसरा, इसमें एक भी बिचड़ा बरबाद होने का डर नहीं है.
बांका की बहेरा पंचायत के पड़रिया गांव के किसान दीपक कुमार चौधरी आज चर्चा में हैं. धान रोपाई की नयी तकनीक अपना कर वे किसानों के लिए मिसाल बन गये हैं. दीपक की इस थाली तकनीक को देखने के लिए आसपास ही नहीं, बल्कि दूर गांव के किसान भी उनके खेत तक पहुंच रहे हैं. आम तौर पर किसान धान के बिच.डे को तैयार करने के लिए नर्सरी के रूप में खेतों की महीन जुताई करवाते हैं, जिसकी जरूरत यहां बिल्कुल नहीं है. वहीं दूसरी ओर थाली में बिच.डे के रोपे जाने के कारण उसे उखाड़ने के लिए अलग से मजदूर की जरूरत नहीं होगी. बस रोपनी के लिए महिला मजदूर को हाथ में थाली रखनी है, उससे एक-एक पौधा आसानी से उखाड़ कर खेतों में रोपाई की जानी है. ऐसी तकनीक से पौधों के टूटने की भी आशंका बहुत कम है. एक थाली में मात्र 10 ग्राम ही बीज बोया गया है. इस प्रकार दीपक ने 600 थालियों में बीज बोया है. जब बारिश का आभाव होगा, तो बिना पंपसेट के ही किसान आसानी से छोटी स्प्रे मशीन से भी पौधे को सींच सकेंगे.
ऐसे आया विचार
किसानों के बढ.ते खर्च व आय में कमी के मद्देनजर दीपक ने सोचा कि ऐसी तकनीक अपना कर किसान कुछ हद तक खर्च में राहत पा सकते हैं. इस क्रम में उसने कुछ दिन पूर्व 10 थालियों में श्री विधि किट के धान को बिच.डे के रूप में लगाया. धान के बिच.डे उगने से उसके मन में फिर आस जगी. इसके बाद 600 थालियों में धान की नर्सरी तैयार कर दी. अभी बिच.डे पूरी तरह स्वस्थ हैं, जिन्हें दस दिनों के बाद खेतों में लगाया जायेगा. खास बात यह भी है कि थाली से उखाड़ने के बाद पौधा बिल्कुल हरा भरा होगा, क्योंकि उसे तुरंत थाली से उखाड़ कर खेतों में रोपा जायेगा. परंपरागत तकनीक में होता यह है कि किसान बिच.डे को अलगाने के बाद एक दो दिन तक खेतों में बांध कर जहां-तहां छींट देते हैं. ऐसे में कुछ पौधे तो अलगाने के क्रम में ही टूट जाते हैं.
धनकटनी की तैयारी में एक किसान
सुन कर थोड़ी हैरानी होगी कि रोहिणी नक्षत्र के बाद जहां किसान धान की रोपनी में जुट जाते हैं, वहीं ऐसा किसान ऐसा है, जो अब धनकटनी की तैयारी में है. नित्य नयी तकनीकों के विकास ने आज सब कुछ संभव कर दिया है. यह बिल्कुल भी अचंभे की बात नहीं है. रास्ता भले ही लीक से हट कर हो, लेकिन आप धुन के पक्के हैं, तो सफलता मिलनी ही है.
बांका के वरणटोला विशनपुर गांव के एक प्रगतिशील किसान हैं मिथलेश प्रसाद सिंह. उनके द्वारा बेमौसम धान की खेती उस इलाके के लिए नयी बात है. लोग उनके खेत में लहलहाते धान को देख कर हैरत में हैं. इस वक्त रोहिणी नक्षत्र के बाद जिले के सभी किसान जहां धान की रोपनी में लगे है, वहीं किसान श्री सिंह अपनी फसल को काटने की तैयारी कर रहे हैं. श्री सिंह ने बताया कि वे इस फसल को फागुन महीने में लगाये थे. लगातार परिश्रम करने के बाद आज उनकी फसल एक दम तैयार है.
किसान मिथिलेश प्रसाद सिंह बताते कि उनके पास तीन बीघा जमीन है. जमीन भी वैसी जगह पर है, जहां सिंचाई का समुचित साधन नहीं है. जिस वक्त वे खाली थे, तो उन्होंने सोचा कि क्यों न अभी धान की खेती कर ली जाय, ताकि सावन आते-आते उस फसल को काट कर नयी फसल लगा दी जाये. प्रयोग के तौर पर उन्होंने इस बार मात्र एक बीघा में खेती की है. सफलता सबके सामने है.
कृषि वैज्ञानिक ने कहा
पश्चिम बंगाल व आंध्रप्रदेश के किसान साल में तीन-तीन बार धान की फसल लेते हैं. यह अच्छी बात है कि यहां के किसान भी इस तरह की खेती करना प्रारंभ कर दिये हैं.
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