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फैसले को निरस्त करने का अघिकार भी है कैबिनेट को: नीतीश

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जीतन राम मांझी की कैबिनेट द्वारा लिए गए कुछ फैसलों को निरस्त किए जाने के संबंध में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि जो फैसले निरस्त किए गए उनमें प्रक्रियाओं व नियमों का पालन नहीं किया गया। कैबिनेट के फैसले को बदलने व निरस्त करने का अधिकार भी है कैबिनेट को। खबरों में आने के लिए पूर्व की कैबिनेट द्वारा ऐसे निर्णय लिए गए। अगर पुलिस कर्मियों को तेरह महीने का वेतन देना है तो ये मेरे कार्यकाल में ही सैद्घांतिक रूप से हुआ निर्णय है। इस विषय को अन्यान्य में नहीं करना चाहिए बल्कि उसको बाकायदा कैबिनेट नोट के जरिये करना चाहिए था। वो तो नहीं हुआ, इस प्रकार के निर्णय नहीं माने जाएंगे। इसी प्रकार अन्य विषयों पर पूरी प्रक्रिया को अपना कर उचित तरीके से यदि प्रशासी विभाग प्रस्ताव लाएगा तो इस पर मंत्रिपरिषद यथोचित निर्णय लेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि रूल आफ एक्जक्यूटिव बिजनेस के तहत कैबिनेट का संचालन होता है, जो संविधान से निकलता है। जिन फैसलों को निरस्त किए जाने का निर्णय लिया गया है वे अन्यान्य मद में लिए गए फैसले थे। कैबिनेट में जो फैसला लिया जाता है उसके लिए संबंधित प्रशासी विभाग से एक कैबिनेट नोट आता है। उक्त संलेख पर यदि विधिक राय लेनी होती है तो विधि विभाग से राय ली जाती है। वित्तीय मामलों में वित्त विभाग की राय ली जाती है। सेवा इत्यादि से संबंधित मामलों में सामान्य प्रशासन विभाग मामले को देखता है और अपनी राय देता हैं। प्रशासी विभाग ऐसे मामलों को मंत्रिपरिषद की स्वीकृति के लिए मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग को भेजता है। मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग समीक्षा कर संबंधित विभागों के प्रस्तावों को मंत्रिपरिषद के बैठक की कार्यसूची में शामिल करता है और उस पर मंत्रिमंडल विचार करता है और निर्णय लेता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अन्यान्य मद में बहुत सारे ऐसे निर्णय लिए गए थे जिसमें मंत्रिपरिषद के लिए संलेख था ही नहीं। किसी भी संबद्घ विभाग से राय नहीं ली गई थी। मंत्रिपरिषद की बैठक में ही कोई बात कर ली गई और इसे कैबिनेट के निर्णय के रूप में प्रचारित किया गया। मंत्रिपरिषद के निर्णय को बदलने या निरस्त करने का अधिकार मंत्रिपरिषद को है। विभागों को स्वतंत्रता दी गई है। विभाग स्वतंत्र है कि यदि वे चाहें तो ऐसे मामलों की समीक्षा कर नियमों का पालन कराते हुए नियम संगत फैसला लेने के लिए यदि चाहें तो, मंत्रिपरिषद के समक्ष प्रस्ताव ला सकते हैं। नए सिरे से ऐसे मामलों पर विचार कर निर्णय लिया जाएगा। पूर्व सरकार द्वारा लिए गए इन निर्णयों को ‘‘नो डिसीजन’’ कहा जाएगा।

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