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प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार के काम में रोड़े अटकाने के लिए विपक्ष की आलोचना की

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबों के उत्थान के लिए काम कर रही उनकी सरकार के कामकाज में संसद से लेकर सड़क तक रोड़े अटकाने’ के लिए विपक्ष की आज कड़ी आलोचना की. नील की खेती करने वाले किसानों के समर्थन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के समापन के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय मोतिहारी स्थित गांधी मैदान में सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह कार्यक्रम के दौरान स्वच्छाग्रहियों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि इस सरकार के काम करने का अपना अलग तरीका है. अब अटकाने, लटकाने और भटकाने वाला काम नहीं होता. अब फाइलों को दबाने की संस्कृति खत्म कर दी गयी है.
सरकार अपने हर मिशन और संकल्प को जनता के सहयोग से पूरा कर रही है लेकिन इससे दिक्कत उन लोगों को होने लगी है जो इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. वह गरीब लोगों को सशक्त होते नहीं देख पा रहे हैं. उन्हें लगता है कि गरीब अगर मजबूत हो गया तो वे झूठ नहीं बोल पाएंगे. उसे बहका नहीं पाएंगे. इसलिए सड़क से लेकर संसद तक सरकार के काम में रोड़े अटकाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आपके सामने एक ऐसी सरकार है जो जनमन को जोड़ने के लिए काम कर रही है. वहीं कुछ विरोधी जन-जन को तोड़ने के लिए काम कर रहे हैं.
मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशंसा करते हुए कहा कि नीतीश जी के धैर्य और कुशल प्रशासन की विशेष प्रशंसा करते हैं क्योंकि वह जिस तरह से यहां भ्रष्ट और असामाजिक ताकतों से लड़ रहे हैं वह आसान नहीं है. भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके स्वच्छता अभियान और सामाजिक बदलाव के लिए किए जा रहे कार्यों को केंद्र सरकार का पूरा समर्थन है. सबका साथ सबका विकास मंत्र पर चल रही एनडीए सरकार संकल्पबद्ध और समयबद्ध होकर कार्य कर रही है.
उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों ने भले ही समय की पाबंदी का महत्व नहीं समझा लेकिन गांधी जी हमेशा सत्याग्रह और स्वच्छाग्रह के साथ ही समय पर काम निपटाने पर बल देते थे. प्रधानमंत्री ने ये टिप्पणियां अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के संबंध में उच्चतम न्यायालय के एक हालिया फैसले के बाद विपक्षी दलों द्वारा संसद की कार्यवाही में बाधा डालने की पृष्ठभूमि में की है. न्यायालय के उस फैसले के बारे में कई लोगों का मानना है कि उसके जरिये अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधानों को कमजोर किया गया है. न्यायालय के फैसले के खिलाफ दलित और आदिवासी संगठनों द्वारा गत दो अप्रैल को आयोजित भारत बंद के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसा की घटनाएं हुई थीं.

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