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परिवारवाद को जगह नहीं मिली मंत्रिमंडल में

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गुजरात के अपने 12 साल के शासन में परिवार को हमेशा अलग रखने वाले नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी केंद्र सरकार में भी परिवारवाद की जड़ों को पनपने नहीं दिया है। उन्होंने पार्टी के किसी दिग्गज नेता के बेटे-बेटी को अपने मंत्रिमंडल में जूनियर मंत्री का जिम्मा भी नहीं दिया है। यहां तक कि गठबंधन के सहयोगी दलों के मामले में भी वे यह फार्मूला लागू करवाने में कामयाब रहे।
मोदी ने अपने दम पर पार्टी में जगह बनाने वाले नेताओं को तो पर्याप्त जगह दी, लेकिन पारिवारिक पृष्ठभूमि के दम पर आगे आए ‘युवा’ नेताओं को कतई भाव नहीं दिया। भाजपा के कम से कम सात नेता पुत्र-पुत्रियों का दावा उनकी सरकार में मजबूत माना जा रहा था। इसी तरह बिहार में छह सीटें जीतने वाली लोजपा के मुखिया रामविलास पासवान भी अपने पुत्र चिराग पासवान को किसी भी तरह सरकार में शामिल करवाने के लिए प्रयासरत थे।
नेहरू-गांधी परिवार से आने वाले वरुण गांधी से लेकर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं पा सके। यही हाल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह का रहा। ना तो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह का वर्षो का राजनीतिक अनुभव काम आया और ना ही हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर को भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) का लंबे समय तक अध्यक्ष रहने से कोई मदद मिल सकी।
झारखंड में हजारीबाग लोकसभा सीट पर अपनी राजनीतिक विरासत भले ही यशवंत सिन्हा ने अपने पुत्र जयंत सिन्हा को सौंप दी हो, लेकिन मोदी ने संकेत दे दिया है कि उन्हें अपने दम पर अभी आगे आना होगा। वाजपेयी सरकार में बेहद प्रभावशाली मंत्री रहे स्वर्गीय प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद तो बन गई हैं, मगर अभी उन्हें अपने फूफा गोपीनाथ मुंडे को ही मंत्रिमंडल में देख कर संतोष करना होगा।

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