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नोटबंदी और रबी की बुआई

कृषि / पर्यावरण

इस वर्ष अच्छी वर्षा के परिणाम रबी फसलों की बुआई पर भी देखने को मिले हैं। देश में पिछले वर्ष जहां रबी फसलों की बुआई 490.48 लाख हेक्टर में हो पाई थी। वह इस वर्ष पिछले सप्ताह तक 519.27 लाख हेक्टर तक पहुंच गई। पिछले वर्ष की तुलना में यह लगभग 6 प्रतिशत बोनी क्षेत्र में वृद्धि अंकित करता है और वह भी समय से जो पिछले वर्ष के कुल उत्पादन में 8-10 प्रतिशत वृद्धि की आशा तो जगाता है। देश में जहां पिछले वर्ष गेहूं की बोनी 239.45 लाख हेक्टर में हुई थी वहीं इस वर्ष यह 256.19 लाख हेक्टर में हो चुकी है। 16.74 लाख अतिरिक्त क्षेत्र में यह बोनी 400 लाख टन अतिरिक्त गेहूं के उत्पादन को दर्शाता है। जिसके भंडारण के लिये अतिरिक्त व्यवस्था का दायित्व राज्य व केंद्र सरकार पर आ जाता है अन्यथा किसानों का देश के लिये यह प्रयास मौसम की मार से व्यर्थ न चला जाये। देश की दलहन की आवश्यकता की पूर्ति तथा इसके आयात को कम करने के लिये किसानों ने अपनी ओर से प्रयास किये हैं। जहां पिछले वर्ष दलहनी फसलों का रकबा 117.06 लाख हेक्टर था वहीं इस वर्ष किसानों ने दलहनी फसलें 131.80 लाख हेक्टर में ली हैं। दलहनी फसलों में 24.74 लाख हेक्टर की वृद्धि दलहनी फसलों के उत्पादन तथा आयात में एक सकारात्मक प्रभाव डालेगी। इसी प्रकार तिलहनी फसलों का रकबा भी 69.53 लाख हेक्टर से बढ़कर 74.31 लाख हेक्टर तक पहुंच गया इसमें भी 4.78 लाख हेक्टर की वृद्धि हुई है। इसका प्रभाव भी खाद्यान्न तेलों के आयात को कम करने में कुछ तो पड़ेगा। रबी धान व मोटे अनाजों के बुआई क्षेत्र में अवश्य लगभग क्रमश: 3.5 व 3.98 लाख हेक्टर की कमी आई है जिसका देश की आवश्यकता तथा अर्थव्यवस्था में कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा।
देश के किसानों ने रबी फसलों के क्षेत्र को बढ़ाने में 500 व 1000 रुपयों की नोटबंदी के प्रभाव को झेलते हुए यह कारनामा कर दिखाया है। बुआई के समय नगदी न उपलब्ध होने के बाद भी उन्होंने एक कुशल प्रबंधक की भूमिका निभाते हुए रबी की बुआई समय पर कर देश के लिये एक मिसाल पेश की है जिसके लिये वह बधाई के पात्र हैं।

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