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नेताजी से जुड़ीं 100 गोपनीय फाइलें सार्वजनिक

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सुभाष चंद्र बोस की 119वीं जयंती पर उनसे जुड़ी 100 गोपनीय फाइलों कीे डिजिटल प्रतियां सार्वजनिक कीं। हालांकि इन फाइलों से नेताजी की मौत से जुड़ी गुत्थी अनसुलझी ही नजर आ रही है।प्रधानमंत्री ने पिछले साल 14 अक्तूबर को नेताजी के परिजनों से मुलाकात के दौरान फाइलों को सार्वजनिक करने का वादा किया था। प्रधानमंत्री ने यहां डिजिटल प्रतियां भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) में प्रदर्शित करने के लिए जारी कीं। उन्होंने एक बटन दबाकर इन फाइलों की प्रतियों को सार्वजनिक किया और उस समय सुषाभ चंद्र बोस के परिवार के 12 सदस्य, केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा और बाबुल सुप्रियो मौजूद थे। मोदी ने सार्वजनिक की गई इन फाइलों को देखा और वहां राष्ट्रीय अभिलेखागार में आधे घंटे तक रहे। उन्होंने बोस के परिवार के सदस्यों से भी बात की। नेताजी के 1945 में करीब 70 वर्ष पहले लापता होने के बारे में अभी भी रहस्य बरकरार है।
दिसंबर से प्रधानमंत्री कार्यालय ने 33 फाइलें एनएआई को सौंपी थी। इसके बाद गृह और विदेश मंत्रालय ने नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया शुरू की और इसे बाद में एनएआई को हस्तांतरित कर दिया गया। जारी की गईं शेष फाइलों में भारत सरकार का रूस और जापान की सरकार से किया गया पत्राचार शामिल है।एनएआई ने हर माह नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों की 25 डिजिटल प्रतियां सार्वजनिक करने की योजना बनाई है। संस्कृति मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि जनता की लंबे समय से जारी मांग को पूरा किया गया है, इससे विद्वानों और विशेषज्ञों को नेताजी के बारे में और शोध में मदद मिलेगी।
समारोह में मौजूद नेताजी के पौत्र चंद्र कुमार बोस ने आरोप लगाया कि कुछ महत्वपूर्ण फाइलों को कांग्रेस के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया ताकि सच छिपाया जा सके। बोस परिवार के प्रवक्ता चंद्र कुमार ने कहा, हमारे पास इस बात को समझने के लिए दस्तावेजी सबूत हैं। इसलिए हम महसूस करते हैं कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रूस, जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका में रखी गईं फाइलों को भी जारी किया जा सके। चंद्र कुमार ने कहा कि अभी तक जो कुछ भी हमने फाइलों में देखा है, उससे विमान दुर्घटना के बारे में परिस्थितिजन्य साक्ष्य है, लेकिन निष्कर्ष निकालने लायक साक्ष्य नहीं है। इसमें लाल बहादुर शास्त्री द्वारा सुरेश बोस को लिखा गया पत्र भी शामिल है। लेकिन इससे विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत की बात साबित नहीं होती।
नेताजी के भतीजे अरधेंदू बोस ने कहा कि जो फाइलें रूस में केजीबी के अभिलेखागार में है, जर्मनी में, ब्रिटेन और अमेरिका में हैं, उन फाइलों से स्पष्ट होगा कि फाइलों में क्या था। और हमें आशंका है कि हो सकता है कि कुछ फाइलों को नष्ट कर दिया गया हो।
सार्वजनिक हुई फाइलों के मुताबिक, जर्मनी में रहने वालीं सुभाष की बेटी अनीता बोस 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के घर में आकर ठहरी थीं। कांग्रेस ने 1964 में अनीता का विवाह होने तक हर साल छह हजार रुपये उन्हें भेजे। अनीता ने 1965 में अमेरिकी नागरिक मार्टिन फाफ से शादी कर ली और उन्हें यह रकम मिलना बंद हो गई।
सुभाष चंद्र बोस की पत्नी एमिली शेंकेल ने कांग्रेस ने पैसे लेने से इनकार किया था। एमिली जर्मनी में सुभाष के प्रवास के दौरान उनकी निजी सचिव के तौर पर काम करती थीं। मार्च 1996 में एमिली का निधन हुआ।
अनीता बोस का मानना है कि उनके पिता की ताइपे विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। हालांकि चंद्र बोस के मुताबिक, नेताजी की पत्नी एमिली अपने जीवन के अंतिम समय तक मानती थीं कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। उन्हें एक रूसी पत्रकार ने बताया था कि नेताजी 1945 के बाद भी पूर्ववर्ती सोवियत संघ में जीवित थे।बंगाल सरकार की ओर से सार्वजनिक फाइलों से पता चला कि विमान हादसे के लंबे समय बाद तक नेताजी के परिवार पर खुफिया निगरानी रखी गई। इसमें 1949 का एक स्विस पत्रकार लिली एबेग का सुभाष के बड़े भाई शरत चंद्र बोस को लिखा गया पत्र शामिल है। इसमें एबेग ने जापानी सूत्रों के हवाले से शरत को बताया था कि सुभाष जिंदा हैं।
नेताजी के लापता होने से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए गठित दो आयोगों ने यह निष्कर्ष निकाला था कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइपेइ में विमान दुर्घटना में हुई। इन समितियों का निष्कर्ष था कि नेताजी अपने संघर्ष को दक्षिणपूर्व एशिया से मंचूरिया के रास्ते रूस ले जाना चाहते थे। उन्होंने 16 अगस्त 1945 को बैंकाक छोड़ा और 17 अगस्त को साइगोन पहुंचे, जहां से वह मंचूरिया के लिए विमान में सवार हुए। लेकिन विमान ताइवान के ताइहोकू इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। गहरे जख्मों के कारण उनका उसी रात ताइहोकू के एक अस्पताल में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार ताइहोकू में ही हुआ। जबकि सितंबर में उनके अवशेष रैंकोजी मंदिर ले जाए गए।
न्यायमूर्ति एम के मुखर्जी के नेतृत्व में गठित तीसरे आयोग का मानना था कि बोस इसके बाद भी जीवित थे। समिति का निष्कर्ष था कि नेताजी 1945 में भारत की आजादी के संघर्ष के लिए सोवियत संघ चले गए थे, बाद में वहां संघर्ष के दौरान उनकी मौत हुई। जबकि एक राय यह भी है कि वह 1985 तक उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में गुमनामी बाबा के तौर पर जिंदा रहे।
नेताजी के जिंदगी से जुड़ी अहम बातें—–
23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस
1937 में एमिली शैंकेल से शादी की, 29 नवंबर को बेटी अनीता का जन्म हुआ
02 बार कांग्रेस के अध्यक्ष(1938-1939) बने, क्रांतिकारी विचारों के लिए जाने गए
19 जनवरी 1941 को सुभाष भतीजे शिशिर के साथ ब्रिटिश नजरबंदी से भाग निकले
1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुभाष ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी।
18 अगस्त 1945 में ताइवान (फारमोसा) में विमान हादसे में मृत्यु को लेकर संदेह कायम
1945 सितंबर में जापान के टोक्यो शहर के रैंकोजी मंदिर में नेताजी के अवशेष लाए गए

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