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नीतीश ने समान नागरिक संहिता पर राय कायम करने में असमर्थता जतायी

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधि आयोग को पत्र लिख कर समान नागरिक संहिता पर धार्मिक समूहों के बीच आम सहमति की कमी के अलावा संहिता की रुपरेखा को लेकर किसी भी विशिष्ट और ठोस जानकारी के अभाव में राज्य सरकार द्वारा इसको लेकर राय कायम करने में असमर्थता जतायी है.
विधि विभाग द्वारा समान नागरिक संहिता को लेकर व्यक्त किये गये विचार को गत 10 जनवरी को बिहार सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी थी. नीतीश ने विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायधीश बीएस चौहान को लिखे अपने पत्र में कहा कि प्रस्तावित समान नागरिक संहिता को हितधारकों से भी उनकी राय जानने के लिए साझा नहीं किया गया. केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित संहिता की रुपरेखा को लेकर किसी भी विशिष्ट और ठोस जानकारी के अभाव में उस पर कोई राय कायम करना संभव नहीं होगा.
नीतीश सरकार ने आयोग की प्रश्नावली जो कि विशिष्ट जवाब तलाश करने के लिए एक खास तरीके से तैयार किया गया है, का भी उत्तर देने में असमर्थता जतायी है. मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रश्नावली को इस अंदाज में तैयार किया गया है जो कि जवाब देने को एक विशिष्ट जवाब देने के लिए बाध्य करता हो. इन प्रमुख प्रश्नावलियाें के लिए सीमित विकल्प दिया जाना जवाब देने वाले को अपना स्वतंत्र जवाब देने की प्रयाप्त गुंजाईश से रोकता है.
सीएम नीतीश ने कहा कि हालांकि संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों को समान नागरिक संहिता देने के लिए प्रयास करेगा लेकिन संविधान निर्माताओं ने भविष्य में सभी हितधारकों के साथ आम राय बनाकर समान नागरिक संहिता की संभावना के बारे में सोचा था.
भाजपा ने बोला हमला
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विधि आयोग को पत्र लिखकर समान नागरिक संहिता को लेकर राय कायम करने में असमर्थता जताये जाने पर भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने नीतीश पर आरोप लगाया कि उनकी सरकार के मुस्लिम कट्टरपंथियों के कथित डर के कारण यूसीसी, तीन तलाक और बहुपत्नी प्रथा के विरुद्ध राय तक नहीं दे पायी.
सुशील ने आज यहां एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पूछा कि महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता की बात करने वाले नीतीश कुमार बतायें कि क्या वे मुस्लिम महिलाओं को प्रताड़ित करने वाली तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुपत्नी प्रथा के समर्थन में हैं? उन्होंने कहा कि जब विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर सलाह मांगी, तब उनकी सरकार मुस्लिम कट्टरपंथियों के कथित डर से तीन तलाक प्रथा लागू रखने वाले मुस्लिम कानून के विरुद्ध राय तक नहीं दे पायी.
भाजपा नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि उन्होंने महिलाओं के कहने पर पूर्ण शराबबंदी लागू की. जब यह फैसला शराब पीने वालों से पूछ कर नहीं किया गया तब तीन तलाक और बहुपत्नी प्रथा पर रोक का फैसला क्या पुरुष प्रधान व्यवस्था के हिमायती मुस्लिम धर्मावलंबियों से पूछ कर किया जा सकता है? क्या सती प्रथा, विधवा विवाह और छुआछूत के खिलाफ कानून पंडितों से पूछ कर बने थे?

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