निर्भया की मां ने की अपील, मेरी बेटी को उसके असली नाम से जाना जाए
अपराध, आधीआबादी, ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, प्रमुख ख़बरें, बड़ी ख़बरें December 16, 2015 , by ख़बरें आप तकनिर्भया की दर्दनाक मौत के तीन साल बाद भी माता-पिता की आंखों के आंसू नहीं सूखे हैं। फिर भी इन नम आंखों ने हौसला मजबूत करके बेटी का नाम दुनिया के सामने लाने का फैसला ले लिया है।
बुधवार को जंतर-मंतर पर देश की जानी-मानी महिला हस्तियों के सामने निर्भया की मां ने कहा कि उन्हें बेटी का नाम लेने में कोई शर्म नहीं है। वह चाहती हैं कि उनकी बेटी को उसके नाम से ही जाना जाए। यहां आयोजित श्रद्धांजलि सभा में बड़ी संख्या में कॉलेज की छात्राएं, महिलाएं और महिला प्रोफेसर शामिल थीं। मुम्बई से कार्यक्रम में हिस्सा लेने शबाना आजमी और जावेद अख्तर भी आए थे।
16 दिसंबर को जंतर-मंतर पर निर्भया चेतना दिवस मनाया गया। निर्भया को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां भीड़ उमड़ पड़ी। हर कोई उस दिन की घटना की बात करके घटना में शामिल दरिंदों को सजा देने की बात कर रहा था। यहां निर्भया के माता-पिता भी पुंचे थे। यहां आई बाल गायिका काव्या ने जैसे ही माइक से ओ री चिरैया, अंगना में फिर आना रे…गीत सुनाया, निर्भया की मां फफक-फफककर रो पड़ी। उसे बिलखते देख वहां मौजूद हर किसी की आंखे नम हो गईं।
निर्भया की मां ने मंच पर पहुंचकर नम आंखों से बेटी को याद करके सरकार से चार मांगें की। उन्होंने नाबालिग दोषी की रिहाई से नाराजगी जताई। खफा होकर उसे समाज के लिए दरिंदा बताया। साथ ही अपनी बेटी पर गर्व जाहिर करते हुए कहा कि आखिर पीड़ा का शिकार होने वाले अपना नाम क्यों छुपाएं। हमें नाम छिपाने की कोई जरूरत नहीं है। शर्म वो करे, मुंह वो छिपाए जो हमारे साथ घिनौना अपराध करता है। हमारी बच्चियों को तकलीफ देता है। शर्म वो करे जो दोषियों को सजा नहीं दिलाता। शर्म वो करे जो दोषियों के लिए कड़े कानून नहीं बनाता। मेरी बेटी का नाम ज्योति सिंह था। आज से उसे सब ज्योति सिंह नाम से जानें। निर्भया के परिजनों ने नाबालिग कानून को बदलने की मांग करते हुए कहा कि जो मेरी बच्ची के साथ हुआ वह दूसरी बच्चियों के साथ नहीं होना चाहिए। सारे मुजरिमों को फांसी मिलनी चाहिए। उन्होंने ऐसे अपराधों के लिए तीनों स्तर पर फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की भी मांग की।
तीन साल बाद भी निर्भया के माता-पिता की आवाज में जो दर्द है वह तीर की तरह हमारे सीने में जाता है। इन दोंनों के संघर्ष की वजह से बहुत से कदम उठाए गए हैं। क्या यह काफी हैं या अभी भी कुछ बाकी है। मैं बात को समझती हूं। मेरी सहानुभूति है लेकिन डेथ पेनाल्टी पर मेरे विचार अलग हैं। जुवनाइल जस्टिस पर मैं अभी भी सहमत नहीं हो पाई हूं।
जावेद अख्तर ने सुनाई घटना पर लिखी कविता
एक दीपक अंधेरी रात में
वासना और हिंसा के हाथों बुझा
उसकी ज्योति मगर आज भी हमारे साथ है
वह ज्योति है यह पूछती
जो हुआ क्यों हुआ,
जो हुआ वो कब तक आखिर होता रहेगा
तुम मुझे याद करते हो बस इतना काफी नहीं है
वासना और हिंसा के इस गंदे सैलाब को रोकना है तुम्हे
तुम यह सोचो कि यह करने के लिए
तुमको करना है क्या, हमको करना है क्या
सबको करना है क्या
निर्भया पर जो अत्याचार हुआ, उसके बाद भी कई सवाल उठे जैसे वह वहां क्या कर रही थी। इतनी रात में वह फिल्म देखने गई थी। माता-पिता ने कैसे भेज दिया थावृंदा करात
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