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नवरात्र का पहला द‌िन,शैलपुत्री माता

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देवी के 9 रूपों में सबसे पहला रूप शैलपुत्री का है। इसल‌िए नवरात्र के पहले के द‌िन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। माता का यह रूप बहुत ही शौम्य और भक्तों को शांत‌ि एवं मोक्ष प्रदान करने वाला है। आइये नवरात्र के पहले द‌िन देवी के इस स्वरूप की उन 7 न‌िराली बातों को जानें जो भक्तों के ल‌िए कल्याणकारी है।देवी सती का जन्म पर्वतराज ह‌िमालय के घर में हुआ था। ह‌िमालय पर्वत के राजा हैं। पर्वत की पुत्री होने के कारण देवी पार्वती और शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के पहले द‌िन देवी पार्वती की ही पूजा होती है जो शैलपुत्री कहलाती है।ऐसी मान्यता है क‌ि मां पार्वती भगवान श‌िव से व‌िवाह के बाद हर साल नवरात्र के द‌िनों में कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर आती हैं। इस मौके पर पर्वतराज अपनी पुत्री का स्वागत करते हैं। पृथ्वी माता का मायका माना जाता है। इसल‌िए नवरात्र के पहले द‌िन देवी पार्वती के शैलपुत्री रूप की पूजा होती है।भगवान श‌िव की अर्धांग‌िनी होने के कारण माता भगवान श‌िव के समान त्र‌िशूल धारण करती हैं और वृष के वाहन पर सवार होती हैं।मां शैलपुत्री के एक हाथ में कमल का फूल है। कमल का पुष्प इस बात का प्रतीक है क‌ि माता अपने भक्त‌ों को दुःख से उबाड़ कर सुख समृद्ध‌ि प्रदान करती हैं।शैलपुत्री देवी वन्य जीवों और वनों की संरक्षक मानी जाती हैं। जहां कहीं नई बस्ती बस रही हो वहीं शैलपुत्री की पूजा जरुर करनी चाह‌िए। इससे बस्ती की रक्षा होती है।उपन‌िषद् की कथा के अनुसार देवी शैलपुत्री का नाम हेमवती भी है। इस देवी ने देवताओं के गर्व को चूर क‌िया था।

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