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दुर्गा पूजा: 25 को 12.19 बजे तक कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

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शारदीय नवरात्र 25 सितंबर यानी गुरुवार से शुरू हो रहा है। गुरुवार को ही कलश स्थापना होगी। उस दिन प्रात: काल से लेकर दोपहर 12.19 बजे तक प्रतिपदा तिथि हस्त नक्षत्र है। इसलिए 12.19 बजे तक ही कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है। इसके बाद दूज यानी द्वितीया हो जाएगा। ज्योतिषाचार्य पंडित प्रेमसागर पाण्डेय के अनुसार प्रतिपदा तिथि में ही कलश स्थापना करना चाहिए। पहले दिन कलश स्थापना के साथ प्रथम शैलपुत्री की दर्शन-पूजन प्रतिष्ठा होगी।
माताके कलश में मां के अलावा सभी देवताओं का वास होता है। मुख में विष्णु, कंठ में रुद्र यानी महादेव, मूल में ब्रह्मा, बीच में सभी सागर नदियां, ऊपरी भाग में सातों द्वीप, चारो वेद और कलश के अन्य अंगों में बाकी सभी देवताओं का वास होता है
नवरात्रोंमें मां भगवती के नौ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। मां भगवती को शक्ति कहा गया है। नवरात्रों में नौ दिन क्रमश शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, मां गौरी और सिद्धिदात्रि की पूजा की जाती है। नवरात्रों में माता की पूजा करने के लिए मां भगवती की प्रतिमा के सामने किसी बड़े बर्तन या जमीन पर मिट्टी रखकर उसमें जौ उगने के लिए रखे जाते हैं। इस के एक तरफ पानी से भरा कलश स्थापित किया जाता है। कलश पर कच्चा नारियल रखा जाता है। कलश स्थापना के बाद मां भगवती की अखंड ज्योति जलाई जाती है। यह ज्योति पूरे नवरात्र दिन-रात जलती रहनी चाहिए। सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। उसके बाद वरुण देव, विष्णु देव की पूजा की जाती है। फिर शिव, सूर्य, चन्द्र आदि नवग्रह की पूजा भी की जाती है। ऊं नवरात्र पूजनार्थ वरुण देवाय आवह्यामि… मंत्र का उच्चारण करते हुए कलश के अंदर एक पान एक सुपारी कुछ पैसे डाल दें। इसके बाद दीपक जलाकर कलश का पूजन करें।
माता रानी का फोटो, जिसमें माता शेर पर सवार हों, दैत्यों का संहार करते हुए अभय मुद्रा में दिखें। इसके अलावा दुर्गा सप्तसती पाठ का किताब, मिट्टी का कलश, ढकना, रोड़ी-सिंदूर, मधु, रोली, अरवा चावल, अबीर, पंचरत्न, पंचामृत, पंचमेवा, मिश्री, चंदन, सुपारी, पानी वाला एक नारियल, नारियल ढकने के लिए लाल कपड़ा, बेलपत्र, ओढउल अपराजिता का फूल, आम का पल्लव, पान का पत्ता, कच्चा सूत, फल, आरती के लिए दीपक, घी, कपूर, धूप, अगरबत्ती जयंत्री के लिए जौ, गंगा की मिट्टी, गंगाजल आदि होना चाहिए।
30 सितंबर मंगलवार को नवरात्र की सप्तमी तिथि है। इसलिए माता का पट मूल नक्षत्र में 30 सितंबर की रात 9.36 बजे के बाद खुलेगा। इस दिन सप्तमी रात 9.36 बजे से शुरू होकर बुधवार 1 अक्टूबर को रात्रि 8.42 बजे तक रहेगा। इस अवधि के बीच कभी भी माता का पट खुल सकता है। उसके बाद अष्टमी शुरू हो जाएगी। 2 अक्टूबर की सुबह 8.37 बजे से नवमी शुरू हो जाएगी, जो शुक्रवार को सुबह 6.34 बजे तक रहेगी। नवमी को सिद्धिदात्री का पूजन दो तारीख की रात्रि या 3 तारीख की सुबह 6.34 बजे के पहले करनी होगी। 3 तारीख को प्रात: 6.34 बजे के बाद से दशमी तिथि शुरू हो जाएगी। इसलिए 3 तारीख की शाम में जगह-जगह रावण वध समारोह ह
कन्या विवाह के लिए पीले कपड़े में हल्दी की 21 गांठ कलश के पास रखें, इससे मांगलिक दोष दूर होता है।
सुख-समृद्धि धन के लिए कमलगट्टा को लाल कपड़े में लपेट कर कलश के पास रखना चाहिए।
रोग से मुक्ति के लिए लौंग को पान के पत्ते में लपेट कर मौली से बांध कर रखना चाहिए।
कार्य सिद्धि के लिए इलायची को पान के पत्ते में लपेट कर मौली से बांध कर रखना चाहिए।
राजनीतिक लाभ के लिए: गुरुच को गुलाबी कपड़े में बांध कर रखना चाहिए एवं अकवन के पेड़ में पूरे नवरात्र जल देना चाहिए
दशहरा 3 अक्टूबर को है। इस बार माता का आगमन डोली और प्रस्थान हाथी पर हो रहा है। इसके चलते माता का आगमन कष्टकारी है। लेकिन, हाथी पर जाना शुभकारी है। माता का हाथी पर आना या जाना वृष्टिकारक माना जाता है। यानी माता की कृपा से जल की कमी नहीं होगी। यह खेती-किसानी के लिए विशेष शुभकारी होगा। विजयादशमी के दिन या उसके बाद अच्छी बारिश की संभावना है। इस बार एक तिथि की हानि होने के कारण नवरात्र आठ दिनों का ही होगा। नौवें दिन विजयादशमी होगी।

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