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दागी नेताओं को राजनीतिक दल का नेतृत्व करने से रोकने की मांग संबंधी याचिका पर केंद्र को नोटिस

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उच्चतम न्यायालय ने दोषी नेताओं को राजनीतिक दल चलाने और उनका नेतृत्व करने से रोकने की मांग करने संबंधी जनहित याचिका पर सरकार और निर्वाचन आयोग से शुक्रवार को जवाब मांगा. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर तथा न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29ए की वैधता एवं रूपरेखा की समीक्षा करने पर सहमति जतायी.
यह जनहित याचिका दायर करनेवाले वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि कानून के अनुसार दोषी नेता चुनाव नहीं लड़ सकता, लेकिन वह राजनीतिक दल चला सकता है और उसमें पदों पर बने रह सकता है. इसके अलावा वह यह निर्णय भी ले सकता है कि कौन सांसद या विधायक बनेगा. याचिका में केंद्र और निर्वाचन आयोग को यह आदेश दिये जाने की मांग की गयी कि वे चुनावी प्रणाली को अपराधमुक्त करने के दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तैयार करें और संविधान के कामकाज की समीक्षा करनेवाले राष्ट्रीय आयोग (एनसीआरडब्ल्यूसी) के प्रस्ताव के अनुसार पार्टी के भीतर लोकतंत्र को सुनिश्चित करें.
याचिका में ऐसे कई शीर्ष नेताओं के नाम लिये गये हैं, जो दोषी ठहराये जा चुके हैं या जिनके खिलाफ आरोप तय किये गये हैं और वे ऊंचे राजनीतिक पदों पर आसीन हैं और राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसमें दावा किया गया है कि ऐसा व्यक्ति भी राजनीतिक दल गठित कर सकता है और उसका अध्यक्ष बन सकता है जो हत्या, बलात्कार, तस्करी, धनशोधन, लूटपाट, देशद्रोह या डकैती जैसे जघन्य अपराधों का दोषी है. इसमें यह भी कहा गया है कि राजनीतिक दलों की संख्या तेजी से बढ़ना चिंता का एक बड़ा कारण बन गया है क्योंकि कानून की धारा 29ए कम लोगों के एक समूह को भी एक बहुत सादी घोषणा करके एक पार्टी का गठन करने की अनुमति देती है.

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