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तिल उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

कृषि / पर्यावरण

तिलहनी फसलों में तिल का प्रमुख स्थान है इसकी खेती खरीफ एवं रबी मौसम में की जाती है।
भूमि का चुनाव – खेती अच्छे जल निकास वाली सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है रेतीली, दोमट भूमि अधिक उपयुक्त होती है काली भारी भूमि खरीफ तिल के लिये उपयुक्त नहीं है।
भूमि की तैयारी – तिल की खेती हल्की भूमि में की जाती है अत: नमी रोकते हुए बखर से खेत को भली-भांति तैयार करना चाहिए । साथ ही हरी खाद या गोबर की खाद या अन्य कार्बनिक खाद मिलाने से भूमि जलधारण क्षमता बढ़ती है जिससे जडें़ अधिक विकसित होकर अधिक जल सोखती है और उपज अच्छी होती है। तिल की अच्छी फसल उगाने के लिये प्रत्येक पांच मीटर के अंतर से एक नाली ढलान के आड़ी (लम्वबत) दिशा में डालें।
बीज की मात्रा – 5-6 किलोग्राम प्रति हेक्टयेर बीज प्रयोग करना चाहिए ।
बीज उपचार – बुवाई के पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम नाम फफूंदीनाशक दवा, 2 ग्राम मात्र प्रति किलो बीजदर से उपचारित करना चाहिए । इसके बाद एजोस्पाइरिलम तथा पी.एस.बी. कल्चर 5-10 ग्राम/किलोग्राम बीज के हिसाब से प्रयोग करें ।
बोने का तरीका – फसल को कतार में बांये व कतार से कतार की दूरी 30 से 35 से.मी. व पौधों से पौधेंकी दूरी 10 से 15 से.मी. होनी चाहिए ।
बोने का समय – जुलाई के प्रथम साप्ताह में की जाये । बोनी में देरी करने पर उपज में काफी कमी आ जाती है अनुसंधान प्रयोगों से स्पष्ट हुआ है कि बोनी में 10 दिन व 20 दिन देर करने पर क्रमश: उपज व 70 प्रतिशत की कमी आ जाती है।
उर्वरक की मात्रा – जहॉं गोबर की खाद उपलब हो, 8-10 गाड़ी प्रति हेक्टेयर अंतिम जुताई के पूर्व खेत में डालना चाहिए । 60 किलोग्राम नत्रजन (132 किलोग्राम यूरिया) 30 किलोग्राम स्फुर (250 किलो ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 20 किलोग्राम पोटाश (33 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटश) प्रति हेक्टयेर की दर से प्रयुक्त किया जाना चाहिए । जिन क्षेत्रों में जस्तर (जिंक) की कमी पाई जाती हो वहां 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट 3 वर्ष में (तीन फसलों के लिये) एक बार प्रयुक्त किया जाना चाहिए, जहां गोबर की खाद की पूरी मात्रा डाली गई हो वहां नत्रजन व स्फुर की एक चौथाई मात्रा अर्थात लगभग 35 किलोग्राम यूरिया व 50 किलोग्राम सुपर फास्फेट तथा पोटाश की संपूर्ण मात्राकम कर देना चाहिए ।
उपयोग की विधि – द्य गोबर की खाद अंतिम जुताई के पूर्व खेत में डालकर अच्छी तरह भूमि में मिला देना चाहिए । यदि गोबर की खाद बनाते समय 2 बोरी सुपर फास्फेट थोड़ा-थोड़ा करके उसमें डाल दिया जावे तो और अधिक लाभ होगा ।
द्य नत्रजन की आधी मात्रा तथा सुपर ॥ास्फेट ,पोटाश व जिं सल्फेट की पूरी मात्रा बुवाई के समय डाली जानी चाहिए ।
द्य नत्रजन की बची हुई आधी मात्रा का बुवाई के 25-30 दिन बाद फसल की निंदाई व छॅंटाई (विरलीकरण करने के बाद) करने के उपरान्त खड़ी ॥सल में भुरकाव कर देना चाहिए । भुरकाव दोपहर बाद करना चाहिए । ताकि पत्ते गीले न हो, नहीं तो गीले पत्तों पर यूरिया चिपककर उन्हें नुकसान पहुं्रचा सकता है सूखे में यूरिया का भुरकाव करने के बाद गुड़ाई/ होइंग की जानी चाहिए ।
द्य अधिक सूखे की स्थिति में नत्रजन की बची हुई मात्रा नहीं डाली जानी चाहिए । यदि संभव हो तो 2 प्रतिशत यूरिया का घोल बनाकर छिडकाव किया जा सकता है।

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