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तकाकी कजीता और ऑर्थर मैक्डोनाल्ड को भौतिकी का नोबेल

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जापान के तकाकी कजीता और कनाडा के ऑर्थर मैक्डोनाल्ड को मंगलवार को भौतिकी-शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई। न्यूट्रीनो की गिरगिट की तरह रंग बदलने वाली प्रकृति की खोज के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। इस खोज से यह अहम नजरिया विकसित हो सका है कि सूक्ष्म कणों में भी द्रव्यमान होते हैं।रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने कहा कि दोनों शोधकर्ताओं ने उन प्रयोगों में अहम योगदान किए जिनमें दिखाया गया कि न्यूट्रीनो ब्रहमांड में जब गुजरते हैं तो लगभग प्रकाश की गति से अपनी पहचान बदलते हैं। न्यूट्रीनोज परमाणु अभिक्रियाओं, जैसे- सूर्य, तारों या परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, में पैदा होने वाले सूक्ष्म कण होते हैं। न्यूट्रीनोज तीन तरह के होते हैं और नोबेल पुरस्कार के लिए चुने गए वैज्ञानिकों ने दिखाया कि वे एक प्रकार से दूसरे प्रकार में दोलित होते हैं। इससे यह मान्यता कमजोर होती है कि वे द्रव्यमानविहीन होते हैं।
एकेडमी ने कहा कि इस खोज ने पदार्थ की आंतरिक क्रियाओं को लेकर हमारी समक्ष को बदल दिया है और ब्रह्मांड को हम जिस तरह से देखते हैं, उसमें यह अहम साबित हो सकता है। 56 साल के कजीता जापान की यूनिवर्सिटी ऑफ तोक्यो के प्रोफेसर और इंस्टीट्यूट फॉर कॉस्मिक रे रिसर्च के निदेशक हैं। 72 साल के मैक्डोनाल्ड कनाडा के किंग्सटन में क्वींस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एमेरिटस हैं।
भौतिकी के नोबेल के लिए चुने गए दोनों वैज्ञानिक 80 लाख स्वीडिश क्रोनर (करीब 960,000 अमेरिकी डॉलर) आपस में साझा करेंगे। 10 दिसंबर को आयोजित किए जाने वाले पुरस्कार समारोह में प्रत्येक विजेता को एक डिप्लोमा और एक स्वर्ण पदक से भी नवाजा जाएगा। कजीता और मैक्डोनाल्ड ने यह खोज तब की जब वे क्रमश: जापान के सुपर केमियोकेंडे डिटेक्टर और कनाडा के सडबरी न्यूट्रीनो ऑब्जर्वेटरी में काम करते थे।एकेडमी ने कहा कि कजीता ने 1998 में दिखाया कि डिटेक्टर में इकट्ठा किए गए न्यूट्रीनोज वायुमंडल में कायांतरण की प्रक्रिया से गुजरे हैं। तीन साल बाद मैक्डोनाल्ड ने पाया कि सूर्य से आ रहे न्यूट्रीनोज ने भी अपनी पहचान बदली। मैक्डोनाल्ड ने स्टॉकहोम में कहा कि यूरेका वाला पल यानी खोज की उपलब्धि हासिल कर लेने का मौका वह था जब यह साफ हो गया कि उनके प्रयोग से यह साबित हो गया है कि न्यूट्रीनोज सूर्य से धरती की यात्रा के दौरान एक प्रकार से दूसरे प्रकार में बदलते रहते हैं।
यह पूछे जाने पर कि उन्हें उस वक्त कैसा महसूस हुआ जब पता चला कि अब उनके काम पर अचानक दुनिया भर का ध्यान आकर्षित होगा, इस पर मैक्डोनाल्ड ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण अनुभव है। मैक्डोनाल्ड ने कहा कि वैज्ञानिक फिर भी जानना चाहेंगे कि न्यूट्रीनो का असल द्रव्यमान क्या है। यूनिवर्सिटी ऑफ तोक्यो ने एक बयान जारी कर कजीता को बधाई दी और कहा कि वह 2002 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से नवाजे गए मासातोशी कोशिबा के छात्र रहे हैं। कोशिबा ने भी जापान के न्यूट्रीनो शोध में योगदान किया था।

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