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टाटा स्टील के यूरोपीय इकाई को बेचने के फैसले से ब्रिटेन में हड़कंप

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टाटा स्टील ने घाटे में चल रही यूरोपीय इकाई को बेचने का फैसला किया है। इस कदम से ब्रिटेन स्थित कंपनी के 17,000 कर्मचारियों और वहां की सरकार में हड़कंप मच गया है। यूरोपीय इकाई वही कोरस है जिसे वर्ष 2006 में खरीदकर टाटा रातोंरात दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी स्टील कंपनी बन गई थी।
पांच गुना बड़ी कोरस को टाटा स्टील ने करीब 52,000 करोड़ रुपये में खरीदा था। टाटा स्टील 55वें स्थान से विश्व की पांचवी सबसे बड़ी स्टील कंपनी बन गई थी। यह किसी भारतीय कंपनी का विदेश में सबसे बड़ा अधिग्रहण था। टाटा स्टील का कुल राजस्व करीब 1.50 लाख करोड़ रुपये है। वहीं कर्मचारियों की कुल संख्या 80,000 है।टाटा स्टील की भारत, योरोपीय और एशियाई इकाई की सालाना संयुक्त उत्पादन क्षमता 2.90 करोड़ टन है। इसमें 1.3 करोड़ टन क्षमता जमशेदपुर और कलिंगनगर (उड़ीसा) की एवं 1.6 करोड़ टन यूरोपीय इकाई की है।
यूरोपीय इकाई की बिक्री के बाद टाटा स्टील शीर्ष 10 बड़ी कंपनियों की सूची से बाहर हो जाएगी। महज 1.3 करोड़ टन क्षमता के साथ टाटा स्टील दुनिया की 20 बड़ी कंपनियों की फेहरिस्त में भी नहीं रहेगी। पहले स्थान पर भारतीय मूल के उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल की अर्सेलर मित्तल है जिसकी क्षमता करीब 9.8 करोड़ टन सालाना है।
पिछले पांच वर्षों में टाटा स्टील यूरोप में करीब तीन हजार कर्मचारियों की छंटनी कर चुकी है। मौजूदा समय में करीब 17,000 कर्मचारी हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने गुरुवार को आपात बैठक बुलाकर हर संभव उपाय का वादा किया। वहीं मजदूर संगठनों ने इसका राष्ट्रीयकरण करने की मांग की है।यूरोप वर्ष 2008 की मंदी से अभी तक नहीं उबर सका है। ऐसे में वहां स्टील की मांग घटी है। वहीं चीन के सस्ते स्टील की आपूर्ति ने वहां के स्टील उद्योग की हालत और बिगाड़ दी है। भारत में भी कंपनियां चीन से आयातित सस्ते स्टील पर शुल्क बढ़ाने की मांग कर रही हैं।
निर्माण उद्योग का अहम हिस्सा होने की वजह से स्टील को अर्थव्यवस्था का आईना माना जाता है। निर्माण गतिविधियां तेज होने पर स्टील की मांग बढ़ती है जिससे कंपनियों की आय में इजाफा होती है। वहीं मांग घटने से कमाई में गिरावट आती है।

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