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जायद मौसम में उड़द की खेती

कृषि / पर्यावरण

दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ों में बनने वाली गांठों में उपस्थित जीवाणु वायुमण्डलीय नत्रजन को भूमि में स्थिर करके भूमि को उपजाऊ बनाती है। इस प्रकार यह फसल भूमि की उर्वराशक्ति को बनाये रखने में भी सहायक है।
भूमि का चुनाव – हल्की रेतीली दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसका पीएच 7-8 के मध्य हो व पानी की निकास की समुचित व्यवस्था हो वह उड़द के लिये उपयुक्त है।
बीज की मात्रा उपचार एवं बुआई
15-20 किग्रा बीज प्रति हे. के मान से उपयोग करें। बीज को बाविस्टीन की 2 मात्रा द्वारा उपचारित कर बोये। कतार से कतार की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखें साथ ही ध्यान रहे कि बीज डेढ़ से दो इंच गहराई पर बोयें।
खाद एवं उर्वरक
मृदा परीक्षण के उपरांत खाद एवं उर्वरक की सुझाई गई मात्रा का उपयोग करेें। यूरिया, सिंगलसुपर फास्फेट तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश की 43:375:33 किग्रा प्रति हेक्टेयर के मान से उपयोग करें। इस हेतु 40 किग्रा डीएपी के साथ 10 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ उपयोग भी किया जा सकता है।।
सिंचाई – ग्रीष्मकालीन फसल होने के कारण की उड़द फसल को 5-6 सिंचाईयों की आवश्यकता पड़ती हैं। फूल-फल बनने की अवस्था पर यदि खेत में नमी न हो तो एक सिंचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण- फसल एवं खरपतवावर की प्रतिस्पर्धा की अंतिम अवधि बुवाई के 15-30 दिनों तक रहती है इस बीच निंदाई करने या डोरा चलाने से खरपतवार नष्ट हो जाते हंै साथ ही वायु का संचार होता है जिससे पौधों की ग्रंथियों में क्रियाशील जीवाणुओं द्वारा वायुमण्डलीय नत्रजन एकत्रित करने में सहायता मिलती है। रसायनिक नियंत्रण हेतु खेत तैयार करते समय, बोने से पहले पेंडीमिथालीन 3 ली. या एलाक्लोर (लासो) 2 ली. को 500 ली. पानी में मिलाकर बोने के बाद व अंकुरण से पूर्ण भूमि में फ्लेटफेन नोजल युक्त पम्प से मिलायें।
उन्नतशील जातियां – जवाहर उड़द-2, पीयू-30, पीयू-19, एलबीजी-20 का स्वस्थ, सुडौल, रोगरोधी बीज उपयोग करें।
रोग – कीट नियंत्रण – मूंग व उड़द की फसल में पानी पीला मोजेक, भभूतिया रोग व फली छेदक कीट का प्रकोप मुख्यत: होता है। पीला मोजेक एक विषाणु जनित रोग है, जो सफेद मक्खी नामक कीट द्वारा फैलता है। रोग कारक पौधे की पत्तियों में हरे पर्णिम के बीच-बीच में पीले दाग बनते हैं। जो आपस में मिलकर पूरी पत्ती को सुखा देते हैं। रोकथाम हेतु मिथाइल डिमेटान अथवा डाइमिथियेट की 300 मिली मात्रा का प्रति एकड़ छिड़काव करें। फली छेदक कीट, फलियों के दानों को नुकसान पहुंचाता है, इनके नियंत्रण हेतु क्विनाफॉस 400 मिली का प्रति एकड़ छिड़काव करें। भभूतिया रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण की सतह दिखाई देती है, यह चूर्ण रोगकारक फफूंद के बीजाणु व कवकजाल होता है। पर्णदाग रोग में गहरे भूरे धब्बे पत्तियों पर बनते हैं जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। दोनों रोगों के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की 250 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के मान से छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई- जब 70-80 प्रतिशत फलियां पक जाने तक कटाई आरंभ करें। फसल को खलिहान मेंं 3-4 दिन तक सुखाकर गहाई करें। इस प्रकार उन्नत तरीके से खेती करने पर 8-10 क्विं. उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।

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