जस्टिस खेहड़ बने प्रधान न्यायाधीश, राष्ट्रपति ने दिलायी शपथ
ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, दिल्ली January 4, 2017 , by ख़बरें आप तकन्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहड़ ने 44वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में बुधवार को शपथ ली. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने न्यायमूर्ति खेहड़ को राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी. उन्होंने ने ईश्वर के नाम पर अंग्रेजी में शपथ ग्रहण की. पिछले माह तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश यानी न्यायमूर्ति खेहड़ को अपने बाद इस पद पर नियुक्त किए जाने की सिफारिश की थी.
लगभग सात माह का होगा कार्यकाल
न्यायमूर्ति खेहड़ का कार्यकाल सात माह से कुछ अधिक का होगा. वे 27 अगस्त तक इस पद पर बने रहेंगे. 64 वर्षीय खेहड़ सिख समुदाय से ताल्लुक रखने वाले प्रथम प्रधान न्यायाधीश हैं.
मालूम हो कि न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहड़ न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़े विवादित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून को निरस्त करने वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों के संवैधानिक पीठ का नेतृत्व कर चुके हैं. इसके अलावा न्यायमूर्ति खेहड़ उस पीठ की भी अध्यक्षता कर चुके हैं, जिसने अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को खारिज कर दिया था. न्यायमूर्ति खेहड़ उस पीठ के भी सदस्य थे, जिसने सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय की दो कंपनियों में लोगों द्वारा निवेश किये गये धन की वापसी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान रॉय को जेल भेज दिया था.
लक्ष्मणरेखा के रूप काम करती है न्यायपालिका
वे नियमित कर्मचारियों जैसे कर्तव्यों का निवर्हन करने वाले दिहाड़ी मजदूरों, अस्थायी एवं अनुबंध कर्मचारियों के लिए ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ के सिद्धांत की पैरोकारी करने वाला अहम फैसला सुनाने वाले पीठ के भी अध्यक्ष रहे हैं. हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मुद्दे पर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तकरार तेज होने पर 26 नवंबर को संविधान दिवस के मौके पर न्यायमूर्ति खेहड़ ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के आक्षेप पर कहा था कि न्यायपालिका अपनी ‘लक्ष्मणरेखा’ के बीच काम कर रही है. उन्होंने कहा, ‘न्यायपालिका भेदभाव और सरकारी शक्ति के दुरूपयोग से सभी लोगों, नागरिकों और गैर-नागरिकों की समान भाव से रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है. देश में न्यायपालिका की अग्र-सक्रिय भूमिका के कारण ही भारत में नागरिकों की स्वतंत्रता, समानता और सम्मान पर्याप्त रूप से समृद्ध बने हैं.’
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