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चुनावी प्रक्रिया के निष्पक्ष विश्लेषण की आवश्यकता : राष्ट्रपति

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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती के लिये कड़े चुनाव सुधारों की जरुरत की वकालत की . उन्होंने कहा, यह समय है जब हमें संसदीय सीटों की संख्या बढाने के लिये कानूनी प्रावधानों पर भी ध्यान देना होगा. राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि मौजूदा भारतीय संसदीय व्यवस्था में यद्यपि कम सीटों वाले सियासी दल भी समान अधिकार का फायदा पाते हैं जैसा कि सत्ता में रहले वाली पार्टी जबकि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं” होती. उन्होंने कहा कि यह जरुरी है कि ‘‘जिस तरीके से हमारी चुनावी प्रक्रिया काम करती है उसका निष्पक्ष विश्लेषण इस नजरिये से किया जाये जिससे व्यवस्था की कमियों को दुरुस्त किया जा सके.
‘राष्ट्रपति यहां इकोनॉमिक रिफॉर्म्स विद रिफरेंस टू इलेक्टोरल इश्यूज विषय पर आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. सम्मेलन में प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर ने कहा कि चुनावी वादे नियमित रुप से अधूरे रह जाते हैं और चुनावी घोषणा-पत्र सिर्फ कागज का टुकडा रह जाता है जिसके लिये पार्टियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये.
राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, प्रधान न्यायाधीश ने बेहद सशक्त और प्रभावी तरीके से जवाबदेही को रेखांकित किया है, लेकिन संसदीय कामकाज की व्यवस्था ऐसी है कि अगर किसी को 100 में से 51 (बहुमत) मिलता है तो 51 के पास हमारी चुनावी प्रक्रिया में सभी अधिकार और शक्तियां हैं, 51 से कम वालों के पास भी सभी अधिकार और शक्तियां हैं लेकिन कोई जिम्मेदारी नहीं है.”
उन्होंने कहा कि साल 1976 में जनसंख्या के आंकडों पर रोक लगा दी गयी जिसे 2001 में एक कानून के जरिये 2026 तक बढा दिया गया जिसकी वजह से संसद आज भी 1971 की जनगणना के आंकडों का प्रतिनिधित्व करती है जबकि यह कई गुना बढ चुकी है.
उन्होंने कहा, इसी का नतीजा है कि संसद आज भी 1971 की जनगणना के जनसंख्या आंकडों का प्रतिनिधित्व करती है जबकि हाल के दशकों में हमारी जनसंख्या काफी बढ चुकी है. राष्ट्रपति ने कहा, इससे विसंगति की स्थिति को बढावा मिलता है जहां भारत में 80 करोड से ज्यादा मतदाता है और 543 संसदीय क्षेत्र 1.28 अरब लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं.”

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