Comments Off on घर संभालनेवाली महिलाएं चुनाव में भी भूमिका में 2

घर संभालनेवाली महिलाएं चुनाव में भी भूमिका में

आधीआबादी, उत्तर प्रदेश, चुनाव, ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, दिल्ली, प्रमुख ख़बरें, बड़ी ख़बरें, बिहार, राज्य, लोक सभा

देश में आगामी लोकसभा चुनावों के लिए राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए सभी पार्टियों में रस्साकशी जारी है. ऐसे में बात महिलाओं की करें तो सामान्यतया परदे के पीछे रह कर घर संभालनेवाली महिलाएं चुनाव में भी लगभग इसी भूमिका में हैं.
खुद के प्रतिनिधित्व का उनका प्रदर्शन तो बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन प्रतिनिधि चुनने में वह पुरु षों से ज्यादा अहम फैक्टर बन चुकी हैं. छह राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में तो महिला मतदाताओं की संख्या भी पुरुषों से अधिक है. जाहिर है कि महिलाओं का उत्साह भी चुनाव की दिशा और दशा तय करेगा.
पुरुष महिला अनुपात की तरह ही चुनावी आंकड़ों में महिला मतदाताओं की संख्या कम है, लेकिन अपने हक को लेकर वे पुरु षों के मुकाबले ज्यादा आक्रामक हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में वे यह साबित कर चुकी हैं.
पिछली बार संख्या में कम होने के बावजूद लगभग तीन करोड़ ज्यादा महिलाओं ने वोट डाला था. चुनाव मैदान में कूदनेवाले उम्मीदवारों के लिए यह आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि महिला वोटरों की संख्या पुरु षों से लगभग तीन करोड़ कम है. 2009 में पुरु ष वोटर 37.47 करोड़ थे तो महिला 34.22 करोड़. कुछ इतने ही अंतर से कांग्रेस ने भाजपा पर जीत हासिल की थी.
चुनाव आयोग के नये आंकड़ों में भी महिला वोटरों की संख्या पुरुषों से कम है, लेकिन पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में आनुपातिक रूप से उनकी भागीदारी ज्यादा रही है. लोकसभा की 31 सीटों पर तो इसका सीधा असर होनेवाला है. केरल, मणिपुर, मिजोरम, गोवा, मेघालय, अरु णाचल प्रदेश, पुडुचेरी और दमन दीव में महिला वोटरों की संख्या पुरु षों से ज्यादा है. केरल में 20 सीटें हैं और महिला वोटर पुरुषों से लगभग चार फीसदी ज्यादा हैं.
यह और बात है कि खुद चुनावी मैदान में महिला उम्मीदवारों का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. पिछले लोकसभा चुनाव में 556 महिलाओं ने दावा ठोका था, लेकिन जीत सिर्फ 59 को मिली. इनमें से 43 महिलाएं राष्ट्रीय दलों से थीं.
राष्ट्रीय स्तर पर पुरु ष वोटर 52.4 और महिला 47.6 फीसदी हैं, लेकिन, 21 राज्यों में आनुपातिक रूप से उनका प्रभाव राष्ट्रीय आंकड़े से ज्यादा है. हालांकि यह अफसोस की बात है कि देश की राजधानी में महिला वोटरों का अनुपात सबसे कम 44.57 फीसदी है.
राजनीतिक दलों को चुनाव में महिला शक्ति का अहसास है. यही कारण है कि ठीक चुनाव से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी सरकार से गैस सिलेंडर बढ़वा लिये. निर्भया फंड और महिला बैंक भी उसी दिशा में लिया गया कदम है. बिहार की जदयू सरकार की जीत में लड़कियों के लिए साइकल योजना का असर दिखा था, तो उत्तर प्रदेश में बालिकाओं के लिए छात्रवृत्ति योजना से आशा लगायी जा रही है.

Back to Top

Search