ग्रामीण इलाकों में करेंसी क्राइसिस ज्यादा गहराया
ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, बिहार November 15, 2016 , by ख़बरें आप तकनोटबंदी के छह दिन बाद बैंक शाखाओं की कमी के कारण गांवों में करेंसी क्राइसिस (पैसे की समस्या या किल्लत) गहरा गयी है. इसे देखते हुए केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने बिहार समेत सभी राज्यों के मुख्य सचिव को निर्देश जारी किया है. इसमें कहा गया है कि अपने-अपने राज्य के उन ग्रामीण इलाकों की पहचान करें, जहां नोटों की किल्लत ज्यादा है.
इन इलाकों में छोटे नोटों को पहुंचाने या लोगों तक बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराने के लिए मोबाइल बैंकिंग वैन और बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंस की व्यवस्था करें. अस्पतालों व ऐसे अन्य प्रमुख स्थानों पर भी मोबाइल एटीएम वैन की व्यवस्था की जाये. राज्य की 8471 पंचायतों में महज 3173 में ही बैंकों की शाखाएं हैं. शेष 5298 पंचायतें बैंकविहीन हैं. बैंकिंग सेवा केंद्र या बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंस की सुविधा भी करीब दो हजार बैंकविहीन पंचायतों तक ही पहुंच पायी हैं. फिर भी लगभग तीन हजार से ज्यादा पंचायतों में किसी तरह की बैंकिंग सुविधा नहीं हैं. न बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंस हैं और न ही कोई शाखा हैं. राज्य की करीब 11 करोड़ की आबादी में 85 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में ही बसती है. एक आंकड़े के अनुसार राज्य में छह-सात हजार गांव ऐसे हैं, जहां से बैंकों की दूरी करीब 20 किमी या इससे भी ज्यादा है. ऐसे में इतनी बड़ी आबादी का प्रभावित होना लाजमी है.
यह है राज्य में बैंकों की स्थिति
राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी (एसएलबीसी) के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 17 हजार की जनसंख्या पर एक बैंक शाखा है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 11 हजार की जनसंख्या पर एक बैंक शाखा है.
आरबीआइ के अनुसार वर्ष 2016-17 के लिए पांच हजार से ज्यादा की जनसंख्यावाले कुल 1640 गांवों या उनकी पंचायतों में प्राथमिकता के आधार पर 31 मार्च, 2017 तक बैंकों की शाखाएं खोलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. लेकिन, अब तक महज 31 शाखाएं ही खुल पायीं हैं, जो लक्ष्य का मात्र 1.89% है. दो हजार से कम जनसंख्यावाले पांच प्रतिशत गांवों में बैंकों की शाखाएं खोलने का लक्ष्य दिया गया है, लेकिन अभी तक इनमें बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंस से ही बैंकिंग सुविधाएं मुहैया करायी जा रही हैं. वर्तमान में बिहार में बैंक शाखाओं की संख्या 6692 हैं, जिनमें 3686 ग्रामीण, 1711 अर्ध शहरी और 1295 शहरी शाखाएं हैं.
बैंकों की लाचारी बड़ी समस्या
नोटबंदी की घोषणा के छह-सात दिन बाद ग्रामीण इलाकों में लोगों को अब रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी पैसे कम पड़ने लगे हैं. पुराने नोटों को बदलने या जमा पैसे निकालने के लिए बैंकों तक पहुंचना मजबूरी बन गया है. इस स्थित में मौजूद बैंक शाखाएं क्षमता के अनुरूप नहीं होने की वजह से लोगों को सुविधाएं नहीं मुहैया करायी जा पा रही हैं. अधिकतर ग्रामीण बैंकों में नयी करेंसी (नोट) नहीं पहुंची है या इनकी उपलब्धता जरूरत से काफी कम है. ऐसे में ग्रामीण इलाके के बैंक 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट खाते में जमा तो ले रहे हैं, लेकिन इन्हें एक्सचेंज करने का काम पूरी गति से नहीं कर रहे हैं. लोगों को बैंक खातों से रुपये निकालने में भी काफी परेशानी हो रही है.
रविवार को लेन-देन में चार-पांच गुना का इजाफा
रविवार (13 नवंबर) को छुट्टी के दिन बैंक खुले होने के कारण डिपॉजिट और एक्सचेंज जम कर हुआ. पिछले चार दिनों की तुलना में राज्य की सभी बैंक शाखाओं में चार से पांच गुना ज्यादा रुपये जमा हुए. राज्य में यह आंकड़ा 2500 करोड़ से ज्यादा तक पहुंच गया.
इसी तरह पुराने नोटों को बदलने के लिए भी लोगों का काफी हुजूम रहा. हालांकि, सोमवार (14 नवंबर) को शहरी इलाकों के बैंकों में थोड़ी कम अफरा-तफरी देखने को मिली. केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अनुसार देश भर में 10 से 13 नवंबर के बीच करीब तीन लाख करोड़ रुपये के 500 और हजार के नोट बैंकों में डिपॉजिट किये गये. करीब 50 हजार करोड़ के नोट एक्सचेंज हुए या एटीएम या खातों के निकाले गये. पिछले चार दिनों में बैंकों में करीब 18 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए.
शहर में नोट बदलने को लेकर सोमवार को भी बैंकों में लाइन लगी रही, पर जो पांच िदनों अफरा-तफरी थी वह आज कम देखने को िमली. बैंकों में करीब 40% भीड़ कम देखी गयी.
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