Comments Off on एकीकृत मछली की खेती 133

एकीकृत मछली की खेती

कृषि / पर्यावरण

एशियाई देशों का मछलीपालन में प्रथम स्थान है। मछली की खेती कई क्षेत्रों में की जाती है। जैसे कि गहरे समुद्र, स्वच्छ जल इत्यादि।
संसाधन और क्षमता– पशुपालन आधारित मछली की खेती विभिन्न प्रकार से की जा सकती है:-
मछली – गाय चारा एकीकृत खेती- 6 से 7 गायों से प्राप्त होने वाली गोबर खाद एक मछली के तालाब के लिये उपयुक्त है। मछलीपालन के तालाब से जुड़ा हुआ गाय के शेड का फर्श कांक्रीट का बना होना चाहिए ताकि गोबर को आसानी से साफ करके तालाब में डाला जा सके। गाय के गोबर में कार्बन नाइट्रोजन का अनुपात 17:1 से 35:1 होता है जो कि कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करने वाले जीवों द्वारा उपयोग कर ली जाती है। इस प्रकार की खेती के कई लाभ हैं, जैसे कि-
ऐसे किसान जिनके पास सीमित संख्या में गायें उपलब्ध हैं वे आसानी से इस प्रकार की खेती से उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, मछली के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। सामान्यत: इस प्रकार की खेती से अशुद्ध वातावरण जो कि मछलीपालन के कारण हो सकता है, वह कम किया जा सकता है।
इसके अलावा रसोई से बचने वाले अनुपयोगी खाद्य पदार्थ जैसे कि हरी सब्जी के अवशेष, चावल के टुकड़े, दलिया इत्यादि का उपयोग करके मछलीपालन पर लगने वाले खर्च को कम कर उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
प्रति एक रुपये की लागत से इस प्रकार की खेती से 4 रुपये लाभ कमाया जा सकता है बशर्ते वहां पानी की उपलब्धता अच्छी हो। इस विधि में अनुमानित लगभग 8000 से 12000 रुपये प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष का खर्च लगता है।
आंशिक सीमित पद्धति – इस प्रकार की पद्यति में किसान प्रति गायें मछली के साथ पाल सकता है। गाय के गोबर को सबसे पहले खाद बनाने वाले गड्ढे में डाला जाता है (न कि सीधे तालाब में), इसलिये इसकी हृ:ष्ट अनुपात भी ज्यादा होता है। गाय के शेड से निकलने वाले गोबर, पेशाब, भूसे के अपशिष्ट इत्यादि मछलीपालन के लिये उर्वरक के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
गाय के मूत्र में नाइट्रोजन व पोटाश अधिक मात्रा में पाया जाता है (1.1. प्रतिशत) नाइट्रोजन, 1.4 प्रतिशत पोटाश)। 500 गायों के बाड़े की सफाई से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ 1 हेक्टेयर तालाब में कार्बन: नाइट्रोजन का अनुपात संतुलित करने के लिये उपयुक्त है।
मछली भैंस जलकुंभी एकीकृत खेती – गहरे रंग के कारण भैंसे गर्मियों में तालाब में नहाती हैं। भैसें कई जलीय खरपतवार के साथ-साथ जलकुंभी को हरे चारे के रूप में खाती हैं। इस प्रकार की खेती के निम्न लाभ हैं।
यूट्रोपिक तालाबों का परिवर्तन, मछलीपालन योग्य तालाबों में होना। उदाहरण – यह इकोर्निया क्रेसिप्रिस का उपयोग करके किया जाता है। जलीय चारे का उपयोग भैंसों को खिलाने में किया जा सकता है। इकार्निया प्रजाति में प्रोटीन 12.8 प्रतिशत एवं फाइबर 24.4 प्रतिशत होता है।
उपर्युक्त मात्रा में कार्बनिक खाद (पोषणों की प्रचुर मात्रायुक्त) का उत्पादन जो कि खेती एवं मछलीपालन के लिये उपर्युक्त है।
जलकुंभी को जब कम्पोस्ट किया जाता है तब उसमें 14 प्रतिशत प्रोटीन, 45 प्रतिशत राख एवं 9.5 प्रतिशत फाइबर पाया जाता है। इस प्रकार जलकुंभी को कम वसा वाला खाद्य पदार्थ कहा जा सकता है। (17000 किलो कैलोरी/कि.ग्रा.) जिसका उपयोग राशन बनाने के लिये किया जा सकता है। बायोगैस स्लरी मछलीपालन के लिये अच्छी खाद है। इसकी लागत बायोगैस स्लरी में पाये जाने वाले पोषक तत्वों की मात्रा पर निर्भर करती है। कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अधिक लागत वाले बायोगैस संचालित है। जिससे अच्छी गुणवत्ता वाली खाद बनायी जाती है। कई पशुओं के गोबर (उदाहरण के लिये सुअर का गोबर) अपघटित होते हैं तो उसमें परजीवी उपस्थित या रोग पैदा करने वाले अन्य जीव नष्ट हो जाते हैं। भारत सरकार बायोगैस के उपयोग को बढ़ावा दे रही है, जिसका उपयोग अपरंपरागत ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में किया जा सकता है। एक बायोगैस इकाई स्थापित करने के लिए 50 कि.ग्रा. गाय का गोबर प्रतिदिन आवश्यक है। अत: 50 कि.ग्रा. गोबर 5 गायों से प्राप्त किया जा सकता है। बायोगैस से पैदा होने वाली स्लरी का उपयोग मछलीपालन के लिए 50 टन/हेक्टेयर/वर्ष की दर से किया जा सकता है।
मछली सूकर एकीकृत खेती
इस प्रकार की खेती कई गरीब किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकती है, मुख्यत: गांवों में ऐसे किसान जो मुख्यत: सुअरपालन का धंधा कर रहे हैं। कई विदेशी सुअर की अच्छी नस्लें जैसे कि यार्कशायर, बर्कशायर एवं हैम्पशायर का उपयोग मछलीपालन के साथ एकीकृत खेती के रूप में कर सकते हैं, जिससे अधिक लाभ कमाया जा सकता है। इस प्रकार की खेती में सुअर का बाड़ा तालाब के किनारे बनाया जा सकता है एवं बाड़े के अवशेष को धोकर सीधे तालाब में प्रवाहित किया जा सकता है। सुअर के मल में लगभग 70 प्रतिशत पाचनशील पदार्थ होते हैं। सुअर के मल में पाये जाने वाले पोषक तत्वों की मात्रा खानपान एवं पाचन पर निर्भर करती है।
सूकरबाड़े का निर्माण – एक बाड़े में एक या अधिक पैन हो सकते हैं। एक पैन में एक या एक से अधिक सुअरों को रखा जा सकता है. सुअरबाड़ा तालाब के किनारे बांध बनाकर बनाया जा सकता है। प्रति सुअर 16 वर्गफीट की जगह होनी चाहिए। सुअरपालन के लिए कई जलीय पौधे जैसे कि एजोला, लेम्ना, पिस्टिया, जलकुंभी इत्यादि का उपयोग कर सकते हैं। प्रति हेक्टेयर जल में 10 टन में अधिक जलीय पौधों का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। और यह 10 सुअरों के खाद्य पदार्थों के लिये उपर्युक्त है। इन पौधों को अन्य खाद्य पदार्थों जैसे मछली चूर्ण इत्यादि के साथ मिलाकर सुअरों को खिलाया जा सकता है।
सुअर के मल की खाद एवं मूत्र में निम्न पोषक तत्व मौजूद होते हैं।
अवयव मल प्रतिशत मूत्र प्रतिशत
नमी 77.00 90-95
कार्बनिक पदार्थ 15.00 2.5-4.0
अकार्बनिक पदार्थ – –
कुल कार्बन 2.72-4.00 –
कुल नाईट्रोजन 0.60 0.4
अमोनिया नाइट्रोजन 0.24-0.27 –
फास्फोरस 0.50 0.10
पोटेशियम 0.40 0.70
कार्बन: पोटेशियम
अनुपात 14.1 –
पीएच 6.6-6.8 7.6
मछली – मुर्गी एकीकृत खेती
तालाब के ऊपर मुर्गीपालन से कई लाभ हैं जैसे –
मुर्गीपालन के लिये बाड़ा, तालाब के ऊपर ही बनाया जाता है। अत: जमीन का दुरुपयोग नहीं होता है।
मुर्गी की बीट सीधे तालाब में डाली जाती है जिससे वातावरण में अशुद्धि एवं गंदगी नहीं होती है।
मुर्गी, मुर्गा की बीट मछलियों के भोजन का कार्य करती है।
भारत में वैज्ञानिकों ने एकीकृत मछली एवं मुर्गीपालन के लाभदायक तरीके खोजें हैं जिसमें किसी भी प्रकार के उर्वरक एवं खाद्य पदार्थों की जरूरत नहीं होती है। इस प्रकार की खेती से साल भर में 4500-5000 कि.ग्रा. मछली 70,000 से अधिक अंडे एवं 1250 कि.ग्रा. मुर्गी का मांस, 500-600 मुर्गियों से प्रति हे. तालाब से उत्पन्न की जा सकती है।
मुर्गियों का चुनाव – मुर्गियों को उनकी उपयोगिता के आधार पर कई प्रकार में विभाजित किया जाता है। दोनों मांस एवं अंडा उत्पादन के लिये पाले जाने वाली मुर्गियों की मछली के साथ खेती की जा सकती है। वैबकाक या लेगहार्न नस्लों की मुर्गियां उपर्युक्त पायी गयी है। लगभग 500-600 अंडे देने वाली मुर्गियों से एक हेक्टेयर तालाब के लिये खाद प्राप्त किया जा सकता है। 8 हफ्ते की उम्र वाली मुर्गियों को टीकाकरण करके तालाब के पास स्थित मुर्गीपालन के बाड़े में रख सकते हैं।
प्रति मुर्गी/मुर्गे से लगभग 40 ग्राम खाद प्रतिदिन उत्पन्न होता है एवं यह एक संपूर्ण उर्वरक है। इसमें दोनों कार्बनिक एवं अकार्बनिक उर्वरकों के गुण विद्यमान रहते हैं। यह देखा गया है कि जिन तालाबों में मुर्गी से प्राप्त होने वाली खाद डाली गई है, उसमें मछलियों की वृद्धि गोबर खाद डालने की तुलना में अधिक होती हैं। मुर्गी की खाद सूक्ष्म जीवों के द्वारा मछलियों के आहार में परिवर्तित हो जाती है जिसमें प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व इस प्रकार है –
अवयव ताजा कुक्कुट मल डीप लीटर
प्रोटीन (सीपी) 10 प्रतिशत 19 प्रतिशत
नाइट्रोजन 1.4-1.6 प्रतिशत 3 प्रतिशत
फास्फोरस 1.5 प्रतिशत 2 प्रतिशत
पोटाश 0.8- 0.9 प्रतिशत 2 प्रतिशत
पीएच 6.9 7.8
बसा (ईई) 11.98 प्रतिशत –
फाइबर(सीएफ) 9.59 प्रतिशत –
कार्बन (सी) 26 प्रतिशत 23 प्रतिशत

Back to Top

Search