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उत्तर भारत में धुंध और विषाक्त हवाओं से बढ़ी घुटन

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विषैली हवाओं और धुंध की चादर में लिपटी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए आपात जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है. पीएम-2.5 समेत विभिन्न अतिसूक्ष्म कणों और जहरीली गैसों से बने स्मॉग से लोगों को सांस लेने में तकलीफें हो रही हैं. वर्षों से लगातार बिगड़ती स्थिति तस्दीक करती है कि अब तक अलग-अलग स्तरों पर हुए हर प्रयास नाकाफी रहे हैं. ऐसे में तत्काल वायु गुणवत्ता सुधार और सर्दियों में आ खड़ी होनेवाली इस विकराल समस्या के स्थायी समाधान के लिए बड़े स्तर पर प्रयास की जरूरत है. समस्या आपदा में तब्दील हो जाये, उससे पहले सरकारों और नागरिकों को अपने और अपनों के भविष्य के लिए सचेत होना होगा. स्मॉग से जुड़े कारणों, समस्याओं और निदान के उपायों की चर्चा के साथ प्रस्तुत है आज का इन दिनों पेज…
क्या है स्मॉगस्मॉग एक प्रकार का वायु प्रदूषक है, जो कोहरा, धूल और नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, पर्टिकुलेट मैटर जैसे हानिकारक पदार्थों, बेंजीन व फ्रेओंस जैसे वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों एवं सूर्य किरणों से मिलकर बना होता है. यह स्मॉग ग्राउंड लेवल पर ओजाेन परत का निर्माण करता है. यह ओजोन परत जब वातावरण में ऊंचाई पर रहता है, तो पराबैंगनी किरणों को धरती तक पहुंचने से रोकती है, लेकिन जब इसका निर्माण धरती सेे नजदीक यानी ग्राउंड लेवल पर होता है, तब यह हमारे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालता है.
कैसे बनता है स्मॉग
स्मॉग के निर्माण के लिए कई कारक जिम्मेदार होते हैं. जब किसी इलाके में बहुत ज्यादा मात्रा में कोयले या फसलों को जलाया जाता है, तो वातावरण में स्मॉग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इसके अलावा ऑटोमोबाइल एग्जॉस्ट, पावर प्लांट, फायरवर्क्स, पेंट, हेयरस्प्रे, चारकोल स्टार्टर फ्लूड और प्लास्टिक पॉपकॉर्न पैकेजिंग से उत्पन्न होनेवाले प्रदूषक भी स्माॅग निर्माण के लिए जिम्मेदार होते हैं. शहरों में कार, बस, ट्रक आदि वाहनों से गैस उत्सर्जन भी वातावरण में स्मॉग का निर्माण करते हैं. इतना ही नहीं, भारी मोटर वाहन यातायात, उच्च तापमान, धूप और ठंडी हवाओं से भी स्मॉग का संबंध है. इसके अलावा, मौसम और जलवायु भी स्मॉग के क्षेत्र और तीव्रता को प्रभावित करते हैं.
कैसे हमें बीमार बनाता है स्मॉग
-लंबे समय तक स्मॉग के संपर्क के बने रहने और ऐसे वातावरण में सांस लेने से हमारी श्वास नली में सूजन आ जाती है.
-वहीं कई लोगों के फेफड़ों में सूजन आ जाती है, जिस वजह से खून के थक्के बनने लगते हैं. नतीजा हृदय और श्वसन संबंधी रोग हमें अपनी जकड़ में ले लेते हैं.
-स्मॉग की वजह से हमारे फेफड़े की कार्यक्षमता प्रभावित हो जाती है, जिस वजह से हमारी सांसें छोटी हो जाती हैं. इतना ही नहीं, इस वजह से छाती में दर्द, खांसी, गहरी सांस लेने में परेशानी, दमा, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस जैसी समस्या भी हो सकती है. आंखों में जलन, गले में खराश आदि समस्या भी स्मॉग की वजह से हमें परेशान करती है.
-स्मॉग की वजह से संक्रमण से लड़ने की हमारी प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है. साथ ही, फेफड़े के कैंसर जैसी घातक बीमारी के चपेट में आने की संभावना भी बनी रहती है.
-बच्चे, घर या ऑफिस के बाहर ज्यादा समय गुजारने वाले व्यक्ति, दमा, एंफीसीमा, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन व हृदय संबंधी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को स्मॉग की वजह से ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है.
इस परेशानी से बचने के उपाय
वाहन प्रदूषण कम करें
वाहनों द्वारा बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं, जो स्मॉग का एक प्रमुख घटक है. नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्पादन को रोकने के लिए निजी वाहन का कम इस्तेमाल करें. जहां तक हो सके पैदल चलें, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें. कार के तेल को समय पर बदलें और ध्यान रखें कि उसकी टायर में हमेशा हवा भरी रहे, ऐसा करके हम गैस माइलेेज को बढ़ा सकते हैं, इससे गैस का उत्सर्जन कम होगा. हमेशा सुबह या शाम के समय ही कार में ईंधन डलवाएं, ताकि नाइट्रोजन ऑक्साइड सूर्य की रोशनी के संपर्क में न आये. ऐसा नहीं होने पर ओजोन परत का निर्माण होगा.
वीओसीएस उत्पाद के इस्तेमाल से बचें
घरों में इस्तेमाल होनेवाले अनेक रासायनिक पदार्थ जैसे नेल पॉलिश, ऑयल क्लीनर, पेंट स्ट्रिपर्स, एयर फ्रेशनर, कीटनाशक आदि में वाष्पशील कार्बनिक यौगिक यानी वीओसीएस होते हैं. ये वाष्पशील कार्बनिक यौगिक स्मॉग उत्पन्न करने में सहायक सिद्ध होते हैं. इसलिए इनके इस्तेमाल से बचना चाहिए.

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