आपको दिखें ये लक्षण, तो तुरंत कराएं चिकनगुनिया का टेस्ट
ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, दिल्ली September 17, 2016 , by ख़बरें आप तकचिकनगुनिया का नाम सुनते ही सबसे पहले ये ख्याल आता है कि ये बीमारी कहीं मुर्गी या चिकन से तो नहीं होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। ये मच्छर के काटने से ही होती है। ऐसे ही कई सारे तथ्य हैं जिनसे हम अंजान हैं। चिकनगुनिया दिन प्रतिदन अपना कहर बरसाता जा रहा है, लेकिन हमें अब तक इसका बेसिक इलाज या इसके लक्षण नहीं समझ आ रहे हैं।
कई मरीज तो इसलिए भी इस बीमारी से लंबे समय तक लड़ते हैं क्योंकि उन्हें समझ नहीं आता आखिर उन्हें डेंगू है या चिकनगुनिया। उन्हें टेस्ट कराना चाहिए या नहीं। हालांकि डॉक्टर भी यही कहते हैं कि चिकनगुनिया तुरंत नहीं पकड़ में आता है, तीन दिन के बाद इसका असर ज्यादा दिखने लगता है। ऐसे में आपको कब समझ आएगा कि आपको टेस्ट की जरूरत है या आपको चिकनगुनिया हुआ है।
आईए हम आपको इसके कुछ तरीकें बताते हैं और चिकनगुनिया के कुछ ऐसे लक्षण हैं जिससे समझ आता है कि ये बीमारी हमारे शरीर को ग्रसित कर रही है।
-जब आपको 102-104 बुखार हो। मतलब बुखार अगर इससे भी ऊपर चला जाए तो आप तुरंत टेस्ट के लिए जाएं।
-अगर आपके जोड़ों और हड्डियों में बहुत तेज दर्द हो, घुटने, ऊंगलियां और पीठ में जकरन हो, सिर में दर्द हो तो टेस्ट के लिए जाएं।
-ज्वाइंट पेन और बहुत तेज बुखार चिकनगुनिया के सबसे अहम लक्षण हैं। जब आपको बुखार हो और बिल्कुल हिल भी ना पाएं, आपके शरीर में जकरन हो और दर्द हो। तो समझें आपको डेंगू या चिकनगुनिया है। हालांकि टेस्ट से पहले कुछ भी कहना मुश्किल होता है।
-चिकनगुनिया को काबू किया जा सकता है, लेकिन अगर वक्त रहते इसका पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है।
-कुछ लोग एक हफ्ते में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कई बार एक महीने तक बेड से उठना मुश्किल होता है।
-ये एक तरह का इंफेक्शन है, जो एक दूसरे से भी फैलता है। आस-पड़ोस से भी चिकनगुनिया फैलता है। इसका वायरस आपके शरीर में चंद रोज तक रहता है और आपको बिल्कुल कमजोर बना देता है। -अगर आपको वोमेट की फीलिंग हो रही हो और आप घर में रहने की स्थिति में ना हो तो पास के अस्पताल में भर्ती हो जाएं। -अगर आप 60 से ज्यादा के हैं और आपको डायबिटीज है तो आपको बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
गौरतलब है कि इस साल दिल्ली एनसीआर में चिकनगुनिया का कहर इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि पिछले एक हफ्ते में 13 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। साल 2006 में भारत में पहली बार इसका पता चला था।
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