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आधार की अनिवार्यता पर अब संविधान पीठ करेगा फैसला, नवंबर के अंतिम सप्ताह में होगी सुनवाई

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उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार की अनिवार्यता के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार के लिए संविधान पीठ गठित की जायेगी.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ इन याचिकाओं पर नवंबर के अंतिम सप्ताह में एक वृहद पीठ सुनवाई शुरु करेगी.
इससे पहले, आज दिन में शीर्ष अदालत ने सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार अनिवार्य करके केंद्र के निर्णय के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा याचिका दायरे करने के औचित्य पर सवाल पूछे. न्यायालय ने जानना चाहा कि संसद द्वारा बनाये गये कानून को राज्य कैसे चुनौती दे सकता है.
न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार की मुख्यमंत्री से भी कहा कि वह व्यक्तिगत रुप से याचिका दायर करें. हाल ही में आधार की वैधानिकता को चुनौती देने और इसे निजता के अधिकार का हनन बताने वाली याचिकाओं पर नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में संविधान के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था.
आधार योजना का विरोध करने वालों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम और श्याम दीवान ने इन याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया था. केंद्र ने 25 अक्तूबर को शीर्ष अदालत से कहा था कि सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए आधार से जोड़ने की अनिवार्यता की समय सीमा उन लोगों के लिए 31 दिसंबर से बढ़ाकर अगले साल 31 मार्च तक करने का फैसला किया है जिनके पास अभी तक 12 अंकों की बायोमेट्रिक पहचान नहीं है और वे ऐसा कराने के इच्छुक हैं.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील दी है कि विशिष्ठ पहचान प्राधिकरण के नंबर को बैंक खातों और मोबाइल से जोड़ना गैर कानूनी तथा असंवैधानिक है. याचिकाओं में परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों के लिए आधार अनिवार्य करने के सीबीएसई के कदम पर भी आपत्ति की गयी है.
कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से श्याम दीवान की दलील थी कि आधार के मुख्य मामले में शीघ्र सुनवाई जरुरी है क्योंकि सरकार नागरिकों को बैंक खातों या मोबाइल नंबरों से आधार जोड़ने के लिए बाध्य नहीं कर सकती है.

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