Comments Off on आतंक की नर्सरी कहे जाने वाला दक्षिण कश्मीर का पुलवामा के ऊखू गांव ने लिख दी पेंसिल से अपनी तकदीर, ‘मन की बात’ में पीएम मोदी ने की तारीफ 0

आतंक की नर्सरी कहे जाने वाला दक्षिण कश्मीर का पुलवामा के ऊखू गांव ने लिख दी पेंसिल से अपनी तकदीर, ‘मन की बात’ में पीएम मोदी ने की तारीफ

सम्पादकीय

आतंक की नर्सरी कहे जाने वाला दक्षिण कश्मीर का पुलवामा जिले का हर बाशिंदा अपनी काबिलियत पर फख्र कर रहा था। जिले का एक ऊखू नाम का छोटा सा गांव आज देश-विदेश में गूंज रहा था। मानों पुलवामा आतंकी हमले का बदनुमा दाग पेंसिल से तकदीर लिखने के बाद मिट गया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जब गांव के मंजूर अहमद अलाई की पेंसिल इकाई लगाने पर हौसला अफजाई की तो हर कोई गदगद हो उठा। उस समय मंजूर की आंखें भर आईं। फिर क्या था गांव से बधाइयां मिलनी शुरू हो गईं। सरकारी अफसर भी प्रोत्साहित करने पहुंच गए। मंजूर ने सबसे पहले दैनिक जागरण का आभार जताते हुए कहा कि उन्होंने हमारे गांव की ललक को पूरे देश में उजागर किया था।
पीएम मोदी से प्रशंसा पाकर फूले नहीं समा रहे पुलवामा के मंजूर अहमद अलाई
प्रधानमंत्री की सराहना से उसमें और जोश आ गया है। मंजूर अलाई पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने श्रीनगर से 26 किलोमीटर दूर पुलवामा जिले के ऊखू गांव में पेंसिल बनाने की पहली इकाई लगाई हैं। उनकी इकाई में सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। चार हजार आबादी वाले गांव में कोई भी बेरोजगार नहीं है। मंजूर बोले, प्रधानमंत्री की जुबान से अपना नाम सुनकर मुझे पहले यकीन ही नहीं आया कि वह मेरा ही जिक्र कर रहे हैं, जब उन्होंने मेरे गांव का नाम लिया तब यकीन हुआ। खुशी के मारे आधे घंटे तक मेरे आंसू ही नहीं रुके। मैंने जिंदगी में कभी नहीं सोचा था कि देश के प्रधानमंत्री मेरा नाम लेंगे और मेरे काम की प्रशंसा करेंगे। मेरी कोशिश रहेगी कि इकाई को और गतिशील बनाऊं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों के हाथों को काम मिले। फिलहाल, अभी गांव में 17 पंजीकृत इकाइयां हैं। अलाई ने कहा कि मैं बेरोजगारी की पीड़ा को समझता हूं। वर्षों पहले मैं भी रोजगार की तलाश में भटकना पड़ता था। मजदूरी कर मुश्किल से परिवार का पेट पालता था। आज संतुष्ट हूं कि दूसरों को भी रोजगार दे रहा हूं।
पेंसिल इकाई के लिए मिले मदद
मंजूर ने कहा कि प्रधानमंत्री से गुजारिश है कि हमारी पेंसिल इकाई को विकसित करने में सहायता दिलवाएं। कश्मीर में पेंसिल इकाई की अच्छी संभावनाएं हैं। यदि इसे अच्छी तरह से विकसित किया जाए, पेंसिल का खंचा बनाने के साथ इसमें ग्रेफाइट फिट करने का बंदोबस्त (यानी पूरी पेंसिल तैयार करने की प्रक्रिया) ऊखू गांव में किया जाए तो इससे लोगों को रोजगार मिलेगा।
पोपलर के पेड़ों से बनती हैं पेंसिल
ऊखू गांव पोपलर के पेड़ों से घिरा है। यही इसकी खूबसूरती और इसकी खुशकिस्मती का भी। इसकी लकड़ी में खास तरह की नमी होती है। यही वजह है कि देश-विदेश की नामी कंपनियां यहां की लकड़ी मंगाती थी। ग्रामीणों ने धीरे-धीरे इस लकड़ी को तकदीर बदलने का जरिया बना लिया। प्रशासन और पेंसिल कंपनियों के सहयोग से इन्होंने पेंसिल के खांचे (पेंसिल का ऊपरी भाग जिसमें ग्रेफाइट की बत्ती डली होती है) गांव में ही बनाने शुरू कर दिया।

Back to Top

Search