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अमेरिका और उत्तर कोरिया आमने-सामने ट्रंप और जोंग-उन

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कार्रवाई करने की चेतावनी के साथ अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच बढ़ते तनाव में बड़ा मोड़ आ गया है. ट्रंप ने चीन से आग्रह किया है कि वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को रोके. उन्होंने यह भी कहा है कि यदि ऐसा नहीं होता है, तो अमेरिका अकेले ही कदम उठा सकता है. यह बयान इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसी सप्ताह दो दिनों तक राष्ट्रपति ट्रंप के साथ चर्चा करनेवाले हैं.
ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि उत्तर कोरिया इस वार्ता के दौरान एक और परमाणु मिसाइल परीक्षण कर सकता है. हालांकि जानकारों ने ट्रंप के इस बयान पर आश्चर्य व्यक्त किया है और उनका मानना है कि बिना चीन के सहयोग के उत्तर कोरिया को रोक पाना संभव नहीं है तथा किसी भी तरह की कठोर कार्रवाई एशिया के उस हिस्से में बड़े पैमाने पर अस्थिरता पैदा कर सकती है. अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका का बड़ा सहयोगी ब्रिटेन भी किसी तरह का कदम उठाने से पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और चीन को भरोसे में लेने का समर्थक है.
चीन उत्तर कोरिया का मुख्य व्यापारिक और कूटनीतिक सहयोगी है. हालांकि उसने यह भी बार-बार कहा है कि उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग-उन पर उसका पूरा नियंत्रण नहीं है. साउथ चाइना सी और ताइवान तथा व्यापारिक संरक्षणवाद के मुद्दे पर अमेरिका और चीन में भी खींचतान की स्थिति है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन अमेरिका के इस ताजा रुख का समर्थन नहीं करेगा. हालांकि उत्तर कोरिया के हाल के रवैये से जापान और दक्षिण कोरिया जैसे परंपरागत अमेरिकी सहयोगी चिंतित हैं. बहरहाल, अब सारी नजरें ट्रंप-जिनपिंग वार्ता पर टिकी हुई हैं. अमेरिका और उत्तर अमेरिका के तनाव के विविध पहलुओं पर आधारित इन-डेप्थ की यह प्रस्तुति…
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही अमेरिका और उत्तर कोरिया के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद 1994 में दोनों देशों के बीच सीधे युद्ध की नौबत तब आ गयी थी, जब अमेरिकी सेना ने उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार बनाने के लिए जरूरी संसाधन जुटाने से रोकने के लिए हस्तक्षेप का फैसला कर लिया था. उस समय से दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने के लिए कई कूटनीतिक प्रयास भी हुए हैं, जिनके नतीजे नकारात्मक रहे हैं. मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया से निपटने के लिए अब सीधी कार्रवाई की धमकी दे दी है. उनसे पहले के तीन राष्ट्रपतियों- बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश और बराक ओबामा- के कार्यकाल में हुई गतिविधियों पर एक नजरः
क्लिंटन प्रशासन की सफल कूटनीति- दोनो देशों के बीच तनाव कम करने की कोशिशों के शिथिल पड़ने की स्थिति में उत्तर कोरिया के संस्थापक राष्ट्रपति किम इल सुंग द्वार 1994 में एक परमाणु रियेक्टर को शुरू करने की घोषणा के बाद राष्ट्रपति क्लिंटन ने आर्थिक प्रतिबंध नरम करने और परमाणु अप्रसार के लिए बातचीत का रास्ता अपनाया था. इसी बीच अमेरिकी सेना ने रियेक्टर पर हमले की योजना भी बना ली थी. तब यह अनुमान लगाया गया था कि संभावित युद्ध में कम-से-कम दस लाख लोग मारे जा सकते हैं. पर दोनों देश ‘एग्रीड फ्रेमवर्क’ नामक समझौता करने में सफल रहे थे जिसके तहत ऊर्जा सहायता और सामान्य संबंधों के बदले उत्तर कोरिया ने परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने के लिए कदम उठाने पर सहमति जतायी थी. पर यह समझौता नौ साल बाद ही टूट गया.
बुश कार्यकाल में बढ़ा तनाव- अक्तूबर, 2002 में अमेरिका के तत्कालीन सहायक विदेश सचिव जेम्स केली ने उत्तर कोरिया की यात्रा की. तब यह आरोप लगा था कि उत्तर कोरिया यूरेनियम शोधित करने का कार्यक्रम चला रहा है. अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने दावा किया था कि उत्तर कोरिया ने आरोपों को स्वीकार किया है, जबकि उत्तर कोरिया का कहना था कि उसने ऐसा नहीं कहा है. द्विपक्षीय तनाव इस हद तक बढ़ गये कि 2003 में उत्तर कोरिया ने परमाणु अप्रसार संधि से स्वयं को अलग कर लिया.
वर्ष 2005 में उसने यह भी घोषणा कर दी कि आत्मरक्षा के लिए उसने परमाणु हथियार बना लिया है तथा अगले साल उसने इसका परीक्षण भी कर लिया. क्लिंटन के समय हुए समझौते के टूट जाने के बाद 2003 में छह राष्ट्रों- अमेरिका, दक्षिण कोरिया, चीन, जापान और रूस- ने उत्तर कोरिया से बातचीत शुरू की ताकि उसके परमाणु कार्यक्रम को रोका जा सके. यह कोशिश भी 2009 में बेनतीजा खत्म हो गयी. उत्तर कोरियाई राष्ट्रपति किम जोंग इल ने बुश प्रशासन पर अपने देश के प्रति आक्रामक रवैया अपनाने का आरोप लगाया, तो राष्ट्रपति बुश ने 2002 में उत्तर कोरिया को ‘दुष्ट राष्ट्रों’ के समूह का हिस्सा बता दिया. हालांकि बहुपक्षीय प्रयासों का एक परिणाम यह हुआ कि 2008 मे बुश प्रशासन ने उत्तर कोरिया को आतंकवाद को राजकीय पोषण देनेवाले देशों की सूची से हटा दिया. वर्ष 1987 से वह इस श्रेणी में रखा गया था.
ओबामा प्रशासन भी असफल रहा- वर्ष 2009 में राष्ट्रपति ओमाबा के कार्यभार संभालने के बाद कूटनीतिक संबंध गतिशील नहीं हो सके. इसका बड़ा कारण अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद उत्तर कोरिया द्वारा उसी साल सैटेलाइट प्रक्षेपण करना था. तब अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक बयान में कहा था- ‘नियमों का पालन अवश्य होना चाहिए. इसका उल्लंघन करने पर दंड भी मिलना चाहिए.’
जानकारों की मानें, तो ओबामा प्रशासन ने उत्तर कोरिया के संबंध में ‘रणनीतिक धैर्य’ की नीति अपनायी थी. उत्तर कोरिया पर यह भी आरोप लगा कि उसने फिल्म ‘द इंटरव्यू’ को रोकने के लिए सोनी पिक्चर्स इंटरटेंमेंट को हैक कर दिया था. यह फिल्म उत्तर कोरिया की आलोचना थी. इसके बदले में अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाये और यह कयास भी लगाया जाता रहा था कि ओमाबा प्रशासन आतंकवाद के प्रायोजक देशों की सूची में उत्तर कोरिया को फिर से डाल सकता है.
उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण
उत्तर कोरिया के अनुसार उसने 2006, 2009, 2013 और 2016 के जनवरी और सितंबर में पांच सफल परमाणु परीक्षण किये हैं. इनमें से सितंबर, 2016 को किया गया परीक्षण उसके द्वारा किये गये सभी परमाणु परीक्षणों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना गया, क्योंकि इस परीक्षण के दौरान 10 से 30 किलोटन विस्फोटक निकला था.
यह परीक्षण कितना शक्तिशाली था इसे जानने से भी बड़ा सवाल यह है कि इस दौरान जिस हथियारों का परीक्षण किया गया वह परमाणु बम था या हाइड्रोजन बम. माना यही जाता है कि 2006, 2009 और 2013 में उत्तर कोरिया ने जो परीक्षण किये वे सभी परमाणु बम के परीक्षण थे. जबकि जनवरी, 2016 में किये गये परीक्षण के बारे में उत्तर कोरिया दावा करता है कि वह हाइड्रोजन बम था. लेकिन इस परीक्षण के दौरान जिस तरह का विस्फोट दर्ज किया गया उसके आधार पर विशेषज्ञों को उसके हाइड्रोजन बम होने के बारे में संदेह है. वहीं सिंतबर, 2016 में किये गये परीक्षण के बारे में अभी तक कोई खास जानकारी सामने नहीं आयी है.
कैसी रही परीक्षण पर वैश्विक समुदाय की प्रतिक्रिया
उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रमों को रोकने के लिए अमेरिका, रूस, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया के साथ कई दौर की बातचीत की. इस बातचीत को सिक्स पार्टी टॉक के नाम से जाना जाता है. इतना ही नहीं, नि:शस्त्रीकरण पर समझौते के लिए उत्तर कोरिया को मनाने के कई प्रयास हुए, लेकिन इनमें से एक भी प्रयास उसे इस समझौते के लिए राजी नहीं कर सका.
लेकिन वर्ष 2005 में उत्तर कोरिया अपनी आर्थिक सहायता और राजनीतिक स्वीकार्यता को पुन: बहाल करने के समझौते के तहत अपने परमाणु कार्यक्रमों को छोड़ने पर राजी हो गया. इस समझाैते के एक हिस्से ‘सहायता के लिए निश:स्त्रीकरण’ के तहत उसने वर्ष 2008 में योंगब्योंग स्थित अपने कूलिंग टावर को नष्ट कर दिया. लेकिन समझौते को लागू करने में परेशानी आने लगी अौर बातचीत 2009 तक रूक गयी. वर्ष 2010 में उत्तर कोरिया ने बिजली उत्पादन के लिए यूरेनियम संवर्धन करने का खुलासा किया. इसके बाद 2012 में अचानक से इसने घोषणा की कि अमेरिका से खाद्य सहायता मिलने के बदले उसने अपने परमाणु कायक्रमों और मिसाइल परीक्षण को कुछ समय के लिए टाल दिया है. लेकिन उसकी कही बात तब गलत साबित हो गयी जब उसी वर्ष अप्रैल में उसने एक रॉकेट लॉन्च करने की कोशिश की.
उत्तर कोरिया द्वारा किये गये परीक्षणों को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाये गये प्रतिबंध के कारण मार्च, 2013 में अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच तीखी बहस हुई. वहीं, 2016 में इस देश द्वारा किये गये परमाणु परीक्षण की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई, जिसमें उत्तर कोरिया का एकमात्र व्यापार साझीदार चीन भी शामिल था. इस परीक्षण के बाद इस देश पर लगाये गये प्रतिबंधों का दायरा बढ़ा दिया गया.
तनाव का इतिहास
1948 : स्वतंत्रता से युद्ध की तरफ
द्वितीय विश्वयुद्ध के आखिरी दौर में जापानी सेना ने अपने 35 वर्ष से कब्जेवाले कोरियाई क्षेत्र को सरेंडर कर दिया. अमेरिकी और रूसी सैनिकों ने कोरियाई नागरिकों को आजादी तो दिला दी, लेकिन कोरिया दो हिस्सों में बंट गया. अमेरिका की निगरानी में दक्षिणी हिस्से पर सिंग्मेन री के नेतृत्व में दक्षिण कोरिया के रूप में साम्यवाद-विरोधी नये देश का उदय हुआ, तो दूसरे यानी उत्तरी हिस्से पर रूसी नियंत्रण किम इल-सुंग के नेतृत्व में उत्तर कोरिया का निर्माण हुआ. सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन की मदद से किम ने साम्यवादी विचारधारा के तले पूरे कोरिया पर कब्जे की तैयारी शुरू कर दी. हालांकि, बर्लिन संकट से जूझ रहे स्टालिन योजनाबद्ध हमले के लिए किम की मदद नहीं कर सके. इस बीच वैश्विक स्तर पर साम्यवादी संघ बनाने के लिए चीनी नेता माओत्से-तुंग और स्टालिन ने एक समझौता किया, जिससे किम को अपनी योजना लागू करने के लिए सहमति मिल गयी. 25 जून, 1950 को सोवियत की मदद से उत्तर कोरियाई सैनिकों ने सियोल पर कब्जा कर लिया.
इसके 10 दिन बाद अमेरिकी सेना भी मोर्चा लेने पहुंचे. अमेरिकी कमांडर जनरल डगलस मैकआर्थर के नेतृत्व 70,000 सैनिकों ने सियोल के निकट कार्रवाई शुरू कर दी. उत्तर कोरिया की मदद के लिए चीन अपने सैनिकों भेजता रहा. तीन साल तक चले इस युद्ध में 30 लाख से अधिक कोरियन मारे गये या घायल हुए. इसके अलावा नौ लाख चीनी सैनिक और 54,000 अमेरिकी सैनिक मारे गये या घायल हुए.
1968 : जासूसी जहाज और घुसपैठ
दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के उद्देश्य से 23 जनवरी, 1968 को संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया के अधिकारियों की एक बैठक प्रस्तावित हुई. इस बीच उत्तर कोरिया के पूर्वी तट पर कोरियाई पेट्रोल बोट ने ऑपरेशन ‘क्लिकबिटल’ के लिए निकले अमेरिकी जहाज ‘यूएसएस पेब्लो’ को घेर लिया. माना जाता है कि क्रू मेंबर बिना किसी हस्तक्षेप के गुप्त जानकारी इकट्ठा करने के फिराम में थे. उत्तर कोरिया की निगरानी में यह जहाज वोन्सन पोर्ट पर लाया गया. समुद्री सीमा क्षेत्र के मुद्दे पर दोनों देश कई दिनों तक उलझते रहे. हालांकि, अमेरिकी सेना के मेजर जनरल गिलबर्ट बुडवार्ड के आधिकारिक रूप गलती स्वीकार किये जाने के बाद सभी क्रू-मेंबर को छोड़ दिया गया.
1976 : कुल्हाड़ी के हमले से बढ़ा युद्धोन्माद
लंबे युद्ध विराम के बाद 18 अगस्त, 1976 को दोनों देश एक बार फिर आमने-सामने आ गये. दरअसल, दो अमेरिकी ऑफिसर, चार अमेरिकी मिलिट्री पुलिस और नौ दक्षिण कोरियाई डीएमजेड (डिमिलिट्राइज्ड बॉर्डर जोन) क्षेत्र में एक पॉपुलर के पेड़ को छांटने पहुंचे थे. उनके मुताबिक पेड़ की वजह से यूएन चेकप्वाइंट्स स्पष्ट नहीं दिखता था. उत्तर कोरियाई लेफ्टिनेंट ने काम रोकने को कहा. वाद-विवाद खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया. इस बीच कुल्हाड़ी से हमले में दो अमेरिकी सैनिकों की मौत गयी. हालांकि, हमले की शुरुआत किधर से हुई, यह स्पष्ट नहीं हो सका. इस हत्या के लिए राष्ट्रपति फोर्ड ने उत्तर कोरिया की निंदा की. हफ्ते भर बाद अमेरिका की तरफ से 26 हेलीकॉप्टर गनशिप, तीन बी-52 बॉम्बर, कई लड़ाकू विमान और 300 अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई सैनिक डीएमजेड क्षेत्र में तैनात कर दिये गये. हालांकि, बाद में उत्तर कोरियाई राष्ट्रपति किम-इल सुंग ने आधिकारिक रूप से इस वारदात के लिए माफी मांगी.
1991 : सुपरपावर का अंत
दुनिया की निगाह दिसंबर, 1991 के उस वक्त पर टिकी हुई थी, जब सोवियत यूनियन टूट कर 15 स्वंतत्र देशों में विभाजित हो गया. साथ ही 15 वर्षों से जारी शीतयुद्ध का भी अंत हो गया. इस बड़ी घटना के बाद उत्तर कोरिया का भविष्य तमाम अनिश्चितताओं के भंवर में प्रवेश कर गया. खाद्यान्न के कमी के कारण उत्तर कोरिया भयावह भुखमरी की चपेट में आ गया था.
एक अनुमान के मुताबिक भुखमरी से करीब 30 लाख उत्तरी कोरियाई नागरिकों की मौत हो गयी. तमाम समस्याओं को नजरअंदाज करते हुए कम्युनिस्ट नेता किम ने पश्चिम के साथ संबंधों को बेहतर बनाने का प्रयास किया. लेकिन, यूएस राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने किम के आमंत्रण को ठुकरा दिया.

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