अगर प्रणब पीएम होते तो 2014 में कांग्रेस नहीं हारतीः- सलमान खुर्शीद
ताज़ा ख़बर, ताज़ा समाचार, प्रमुख ख़बरें, बड़ी ख़बरें December 16, 2015 , by ख़बरें आप तकपूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा है कि 2004 में प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी की जगह मनमोहन सिंह के चयन से ना सिर्फ कांग्रेस, बल्कि बाहरी लोगों को भी आश्चर्य हुआ और कई लोगों का कहना है कि अगर प्रणब प्रधानमंत्री बनते तो 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार नहीं होती।खुर्शीद ने अपनी नई किताब ‘द अदर साइड ऑफ द माउंटेन’ में लिखा है, बदतरीन घटने के बाद अक्लमंदी दिखाना हमेशा आसान होता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि समूचे राष्ट्र ने नरसिंह राव सरकार (जून 1991 से मई 1996) के दौरान दिशा बदल देने वाले वित्तमंत्री के रूप में डा़ मनमोहन सिंह की तारीफ की थी।उन्होंने कहा, लेकिन जब डा़ सिंह ने 1999 का लोकसभा चुनाव उस सीट से, दक्षिण दिल्ली, से चुनाव लड़ा, जिसे उनके लिए देश में सबसे सुरक्षित सीट समझी गई थी तो उन्हें एक ऐसे उम्मीदवार ने परास्त कर दिया जिनका नाम बहुत लोग याद नहीं कर पाएंगे, यह भाजपा के प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा थे।
खुर्शीद ने अपनी किताब को एक शख्स का नहीं बल्कि बहुत सारे लोगों की संक्षिप्त जीवनी बताई है जो संप्रग के हिस्सा थे। बहरहाल, पूर्व विदेश मंत्री कहते हैं कि कुछ प्रारंभिक अनिच्छा के बाद, संप्रग-1 का नेतृत्व करने के लिए सिंह को चुनने के सोनिया गांधी के फैसले का न केवल व्यापक स्वागत हुआ बल्कि पांच साल बाद के चुनावी जनादेश से सही भी साबित हुआ जब हम ज्यादा बहुमत से सत्ता में वापस आए।
संप्रग-2 में विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारियां संभाल चुके खुर्शीद ने कहा कि वह खुशनसीब हैं कि उन्हें सिंह का विश्वास हासिल था। अलबत्ता सिंह ने एक बार बड़ी नरमी दिखाते हुए मीडिया के समक्ष की गई एक टिप्पणी के लिए उनसे कैफियत तलब की थी। इस टिप्पणी में उन्होंने इंगित किया था कि भारत अफगानिस्तान के लिए घातक हथियार उपलब्ध नहीं कराएगा।
उन्होंने कहा, विदेश मंत्री के रूप में, ज्यादातर मामलों में मुझे खासी खुली छूट हासिल थी। प्रधानमंत्री पड़ोसी देशों में, अमेरिका की हमारी फिर से खोज, चीन के साथ सहस्राब्दी वार्ता और जापान के साथ कदम से कदम मिलाने की उत्तेजना में विशेष रूचि ले रहे थे।
खुर्शीद ने कहा, मुझे बस एक बार की याद आती है जब डा़ सिंह ने उस प्रेस टिप्पणी के लिए मुझे नरमी से झिड़का था जिसमें इंगित किया गया था कि हम अफगानिस्तान को घातक हथियार प्रदान नहीं कर सकते। यह (तत्कालीन अफगान) राष्ट्रपति हामिद करजाई के लगातार आग्रह पर की गई थी, अलबत्ता उन्होंने कभी इसे मुददा नहीं बनाया।
खुर्शीद ने महसूस किया कि अपनी उसूली रूखों के बारे में साफगोई से बोलने में कोई हर्ज नहीं है जिससे हटने की कोई संभावना नहीं है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि सैन्यकर्मियों ने मुझसे कहा था कि हमारे पास अनगिनत टैंक रिजर्व में हैं, जिनकी सेना में उपयोग की उम्मीद नहीं है और जिसे बिना किसी ज्यादा खर्च के चुस्त-दुरूस्त किया जा सकता है।
खुर्शीद ने कहा, मृदुभाषी प्रधानमंत्री ने मुझे सलाह दी थी, राष्ट्रपति करजई एक संदिग्ध व्यक्ति हैं। आपको विदेश मंत्री के रूप में सावधान रहना होगा। मैं बुदबुदाया और मामले को वहीं छोड़ दिया, निश्चित ही दूसरों के मामले में जबरन दखलंदाजी करने वाले किसी व्यक्ति ने प्रधानमंत्री को कहानी सुनाई होगी।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव का परिणाम 16 मई को घोषित होने के शीघ्र बाद इस पुस्तक ने आकार लेना शुरू कर दिया था और हम संप्रग मंत्री देश भर के चुनाव क्षेत्र से नयी दिल्ली लौट आए। उन्होंने कहा कि उस वक्त मंत्री मात खाए हुए थे लेकिन इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं होने वाले योद्धा की तरह थे।
उन्होंने कहा, हम अतीत थे और यह सिर्फ अतीत का साया बना रहा। तब कांग्रेस में कुछ ऐसा ही उदास माहौल था। खुर्शीद को यह भी लगता है कि कांग्रेस अस्तित्व के बहुत ही गंभीर संकट में है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग इसे संकट में नेतृत्व के तौर पर देखते हैं, अन्य का मानना है कि यह राजनीतिक विचार के बारे में है कि देश काफी आगे बढ़ गया है और अन्य लोगों का साफ मानना है कि जमीनी स्तर के लोगों से संपर्क कट गया है।
खुर्शीद के मुताबिक सोनिया और राहुल गांधी दोनों ही लोकप्रिय हैं और कांग्रेस के चुने हुए नेता हैं तथा दूऱ़-दूर तक वैकल्पिक नेतृत्व प्रदान करने वाला कोई नहीं है। उन्होंने अपनी पुस्तक के जरिए कहा है कि वह सही बात कहना चाहेंगे क्योंकि पिछले कुछ साल से काफी झूठ फैलाया गया लेकिन सच सामने आना चाहिये।उन्होंने कहा कि टूजी स्पेक्ट्रम, 2010 के राष्ट्रमंडल खेल और कोलगेट जैसे घोटालों ने संप्रग की छवि धूमिल की। खुर्शीद ने अपनी किताब में लिखा है कि इन सभी मामलों में जिनकी जांच कानून लागू करने वाली विभिन्न एजेन्सियों ने जांच की, कहीं भी धन का लेन देन होने या किसी भी आरोपी राजनीतिक नेता या अधिकारी के पास बेहिसाबी संपत्ति की बात सामने नहीं आयी, या ऐसा कुछ जांच में सामने नहीं आया।उन्होंने कहा कि अवैध काम होने या भ्रष्टाचार होने का अनुमान लगाने के लिये यही पर्याप्त था कि निर्णय गलत थे या अन्य व्यक्ति द्वारा दूसरे तरीके से किये गये थे।
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